For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इंतज़ार ...

छोड़िये साहिब !
ये तो बेवक़्त
बेवज़ह ही
ज़मीं खराब करते हैं
आप अपनी उँगली के पोर
इनसे क्यूं खराब करते हैं
ज़माने के दर्द हैं
ज़माने की सौगातें हैं
क्योँ अपनी रातें
हमारी तन्हाईयों पे
खराब करते हैं
ज़माने की निगाह में
ये
नमकीन पानी के अतिरिक्त
कुछ भी नहीं
रात की कहानी
ये भोर में गुनगुनायेंगे
आंसू हैं,निर्बल हैं
कुछ दूर तक
आरिजों पे फिसलकर
खुद-ब-खुद ही सूख जायेंगे
हमारे दर्द हैं
हमें ही उठा लेने दीजिये
आप आये हैं
तो महफ़िल में
तबले की थाप पे
घुंघरू की आवाज़ का
मज़ा लीजिये
साजिंदों के साज पे
तड़पते नग्मों का
साथ दीजिये
शुक्र है इन घुंघरुओं का
जो अपनी झंकार में
पाँव के दर्द को
पी जाते हैं
इनकी आवाज के भरोसे
हम कुछ लम्हे
और जी जाते हैं
अपने कद्रदानों की
हर वाह पे
हम जाँ निसार करते हैं
जानते हैं
फरेब है
ये शब् भर की महफ़िल
फिर भी
ये कम्बख्त घुंघरू
इक
नई फरेबी रात का
बेसब्री से
इंतज़ार करते हैं

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 597

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 20, 2017 at 1:06pm

आदरणीय  Dr. Vijai Shanker जी सृजन आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का हार्दिक आभारी है।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 20, 2017 at 6:18am
सुन्दर, बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी , सादर।
Comment by Sushil Sarna on January 19, 2017 at 7:13pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी प्रस्तुति को अपना आत्मीय सम्मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by नाथ सोनांचली on January 19, 2017 at 3:47pm
आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन, सुंदर भावभियक्ति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें
Comment by Sushil Sarna on January 19, 2017 at 3:35pm

आदरणीय समर कबीर साहिब सृजन आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का हार्दिक आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on January 19, 2017 at 3:35pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति को अपना आत्मीय सम्मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on January 19, 2017 at 2:31pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत ही जज़्बाती कविता लिखी है आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 1:56pm

आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Sushil Sarna on January 19, 2017 at 1:52pm

आदरणीया सीमा मिश्रा जी सृजन के भावों को अपने स्नेह से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 19, 2017 at 1:51pm

आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी प्रस्तुति आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया की आभारी है। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
37 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
58 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion रोला छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"आदरणीय सौरभ सर, रोला छंद विधान से एक बार फिर साक्षात्कार कर रहा हूं। पढ़कर रिवीजन हो गया। दोहा…"
1 hour ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
22 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service