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बुद्धिजीवियों की एक ही हसरत

बुद्धिजीवियों की एक ही हसरत

सुख समृद्धि को देश में है लाना ।

संभालकर रखना अपनी विरासत,

आपसी झगड़ों से सबको बचाना ।   

इसके लिए खुद से करते कसरत

बिना किए कभी कोई भी बहाना ।

कोसों दूर रहती है इनसे मुसीबत 

मिलती इन्हे खुशियों का खजाना ।

सभी लोग जानते इनकी हकीकत

आलसी सदा करते अनेकों बहाना ।

ऐसे लोगों की होती एक फितरत

दूसरों की कमी पर उंगली उठाना ।  

समाज को दिखाते अपनी लियाकत,

समाज के सुधार से सदा मुंह चुराना ।  

पूरी नहीं होती इनकी कोई हसरत

तो अपने लोगों पर गुस्सा दिखाना ।

देश प्रेमी करता नहीं कोई शरारत,

उसे आता है समस्या को सुलझाना ।

उन्हें काम से कभी मिलती न फुरसत

बैठ परिवार के संग कुछ वक्त बिताना ।

प्रेम से लिखा राम आश्रय इसके बावत

सभी लोगों ने सीख लिया रिश्ता निभाना ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

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Comment by Ram Ashery on December 14, 2016 at 4:07pm

आपको मेरा आभार आपके महत्वपूर्ण मार्ग दर्शन के लिए मैं आपका आभारी हूँ । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 13, 2016 at 12:09am

आदरणीय राम आश्रय जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. साथ ही "आलसी लोग करते अनेकों बहाना।" इस पंक्ति पर पुनर्विचार निवेदित है. सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on December 12, 2016 at 2:01pm
आदर्णीय राम आश्रय जी सादर अभिवादन, अच्छी सर्जना हुयी हा सादर बधाई निवेदित हाँ।
Comment by Samar kabeer on December 12, 2016 at 10:36am
जनाब राम आश्रय जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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