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माँ की ममता कोई कल्पना नहीं,

ये सृष्टि संरचना की एक दास्तां 

जो जन्म लेती अनंत गहराई में  

पुष्पित,पल्लवित होती धरातल पर

एक कल्पतरु का सुंदर रूप लेकर

सदियों से चल रहा यह शिलशिला

ये हृदय से निकली प्यार ज्योति 

सूर्य की रोशनी में हर दिन बढ़ती

बांधती सभी को एक प्रेम डोर में

अपने खुशियों की देती तिलांजली

नन्ही सी चिड़िया लड़ती साँप से  

अपने प्राणों को संकट में डालकर

उसे बचाती मुसीबतों को झेलकर

उसके प्यार को शब्दों में बांध सके

किसी लेखक की कलम में दम नहीं ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 21, 2016 at 4:55pm

बहुत खूब , आदरणीय राम आश्रय भाई , माँ की ममता पर अच्छी कविता रची है आपने , हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2016 at 11:49pm

आदरणीय राम आश्रय जी, माँ पर बढ़िया भावाभिव्यक्ति. हार्दिक बधाई. शिलशिला या सिलसिला ?

Comment by नाथ सोनांचली on December 20, 2016 at 1:00pm
आद0 राम आश्रय जी सादर आभिवादन, वाह खूब..... माँ को समर्पित बहुत उम्दा सर्जना मिली , बधाई आपको
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 18, 2016 at 7:05pm
बहुत ही सुन्दर भावों से ओतप्रोत रचना
Comment by Samar kabeer on December 18, 2016 at 5:26pm
जनाब राम आश्रय जी आदाब,बहुत ख़ूब वाह, माँ को समर्पित बहुत बढ़िया कविता लिखी आपने,इस लाइन ने तो दिल जीत लिया"उसके प्यार को शब्दों में बांध सके,किसी लेखक के क़लम में दम नहीं"इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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