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"भोपाल- तीन दिसम्बर" -मेरे सर्वप्रथम हाइकू : अर्पणा शर्मा

गैस त्रासदी,
पीड़ित मानवता,
कराह उठी...!!

भीड़ उन्मादी,
कारखाने बाहर,
देखे बर्बादी,

की है मुनादी
मिलेगा मुआवजा,
क्या है ये काफी???

कैसे भगाया,
एंड़रसन यहाँ,
है अपराधी,

नासूर से ही,
जख़्म यहाँ रिसते
वर्षों बाद भी,

बही थी यहाँ,
भूलेगा नहीं कभी,
मौत की नदी...!!!

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2016 at 3:09pm

अच्छा प्रयास , हइकू  की तीनो पंक्तिया स्वतंत्र हों एक दुसरे से लिंक न हों  कितु तीनों का एक संयुक्त प्रभाव/अर्थ  हो . इस लिहाज से एक बार फिर रचन को मांजने का प्रयास करें . सादर .

शोर था बड़ा 

मिला मुआवजा 

ऊँट के मुख ------


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 4, 2016 at 9:26pm

आदरणीया अर्पणा जी, भोपाल गैस त्रासदी के दर्द को शाब्दिक करते प्रभावशाली हाइकू पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Samar kabeer on December 4, 2016 at 4:53pm
मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी दुखद घटना थी ये,जिन लोगों ने इस पीड़ा को भोगा है वही जानते हैं,लेकिन इसका एक पहलू ये भी है कि कुछ लोगों ने इस पीड़ा को नहीं झेला लेकिन जब मुआवज़े का ऐलान हुआ तो बहुत से ऐसे लोग भी मुआवज़ा लेने के हक़दार बन गये जो उस समय भोपाल में या भोपाल के नहीं थे,ऐसे कुछ लोगों को मैं ज़ाती तौर पर जानता हूँ जिन्होंने कई वर्षों तक बिना कुछ सहे मुआवज़ा लिया है,ख़ैर अब तो यही दुआ है कि अल्लाह हमें ऐसी घटना से बचाये ।
Comment by Arpana Sharma on December 4, 2016 at 9:11am
आ.श्रीमान् समर कबीर साहब - हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत शुक्रिया । जी मैं भोपाल में पैदा हुई और यहीं पली बढ़ी हूँ । गैस त्रासदी हमने भी भोगी है। मुझे आज भी याद है कैसे हमारे घरों में मिथाइल आइसोसाइनाइड़ गैस भर गई थी। हम बाहर भी नहीं भाग पाए। फिर अपने घर में अंदर का एक कमरा गीले कपड़ों से सील करके हम सब कई घंटों वहाँ बंद रहे। ठंड़ के कारण जहरीली गैस भारी होकर नीचे ही रही। जब पास के मिलिट्री एरिया से आक्सीजन छोड़ी गई तब थोड़ी राहत मिली। सुबह बाहर निकले तब देखा हर जगह लाशें पटी पड़ीं थीं । पेड़ काले पड़ गये थे। पक्षी, मवेशी हर जगह मरे पड़े थे। उनके पेट वीभत्स रूप से फूल गये थे। सुबह फिर गैस लीक हुई तो हमें भी भागना पड़ा। चारों ओर लोग भाग रहे...सब शहर से बाहर...

गैस के दुष्प्रभाव से ही मेरे कानों का सामान्य सा संक्रमण इतना बढ़ गया कि अंततः मैं अपनी श्रवण शक्ति पूरी तरह खो बैठी।
नामालूम सा मुआवजा इन नुकसानों की कतई भरपाई नहीं कर सकता। उस दिन तो मौत की नदी बही थी ....
Comment by Samar kabeer on December 3, 2016 at 4:55pm
मोहतरमा अर्पणा शर्मा जी आदाब,बहुत अच्छे हाइकू लिखे आपने,दर्द पूरी तरह बयान हो रहा है,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
आप भोपाल से हैं क्या ?

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