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ग़ज़ल: असर दिखा है जमाने में खास बातों का

1212 1122 1212 22(112)

असर दिखा है जमाने में खास बातों का ।
मिटा है खूब खज़ाना रईजादों का ।।

है फ़िक्र उस को नसीहत रुला गई यारों ।
गया है चैन , सुना है तमाम रातों का ।।

लुटे थे लोग जो अपने गरीबखानों से ।
हिसाब मांग रहे है वही हजारों का ।।

न पूछिए की चुनावों में हाल क्या होगा ।
बड़ा अजीब नज़ारा है इन सितारों का ।।

सफ़ेद पोश से पर्दा हटा गया कोई ।
पता चला है लुटेरों के हर ठिकानों का ।।

गरीब हक़ का निवाला पचा नही सकते ।
दिया जबाब है तुझको तेरे फसानों का ।।

बिका टिकट तो वो दूकान खोल के बैठी।
यकीन बेच के आयी है हुक्मरानों का ।।

गए हैं भूल मनाना वो जन्मदिन अपना ।
बड़ा हिसाब भी देना है बन्द खातों का ।।

जो पत्थरों से मदरसों पे जुल्म ढाते थे ।
बने शिकार वही मुल्क के निशानों का ।।

तमाम चोर हुए एक जुट मुसीबत में ।
बुरा हुआ है यहां हाल सख्त थानों का ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on December 2, 2016 at 8:34pm
आ0 कबीर सर विशेष आभार । आ0 गोपाल नारायण सर सादर आभार ।
आ0 गिरिराज सर ग़ज़ल तनफुर दोष को स्पष्ट करने के लिए तहेदिल से शुक्रिया ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2016 at 7:05pm

आदरबीय नवीन भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने , मुबारकबाद कुबूल करें । बाक़ी बातें आ. समर भाई और आ. गोपाल भाई बता ही चुके हैं , खयाल कीजियेगा । सातवें शे र से ऐबे तनाफुर के लिये मुल्क को देश किया जा सकता है ....

Comment by Samar kabeer on November 26, 2016 at 5:29pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल आपकी उम्दा हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
मैं जनाब डॉ.गोपाल नारायण जी की बात से सहमत हूँ ।
9वें शैर में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,' मुल्क के'देखियेगा ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2016 at 4:20pm

आ० नवीन जी , कबीर सर तो उस्ताद हैं ,अवश्य ही अपनी बात कहेंगे , आपने गजल भी अच्व्ची कही है  पर मुझे  कुछ  शेर में रब्त दिखता हैकी कमी दिखती है चौथे और आठवें शेर में लाज्त्मा -ए -जुज्ब -ए -रदीफैन और  सातवें शेर की सानी में ऐब-ए -तनाफुर जान पड़ता है   गुनीजन सही क्या है यह बताएँगे . सादर .   .  

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 25, 2016 at 10:33pm
आ0कबीर सर की प्रतीक्षा में

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