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आज का सूरज नया तू सींच ले (नवगीत 'राज ')

मुक्त कर तम से जकड़ती मुट्ठियाँ

भोर की पहली किरण को भींच ले

व्योम से तुझको पटक कर 

पस्त करके होंसलो को

चिन रही है गेह तुझमे

भावनाएँ हीन गुपचुप

मार सूखे का हथौड़ा

तोड़ कर तेरी तिजौरी

बाँध खुशियों की गठरिया

जा रहा है मेघ छुप छुप  

भेद बादल की गगरिया

अपने हिस्से की ख़ुशी तू खींच ले

भान तुझको ही नहीं है

छटपटाहट की जमीं के  

 गर्भ में आकार लेती   

 तल्खियों की बेल शापित

जो सुखाती जा रही है  

ख्वाहिशों की क्यारियों को  

खुद तुझे करना पड़ेगा

हिम्मतों का बीज रोपित

भाग्य का पौधा उगाने

आज का सूरज नया तू सींच ले  

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2016 at 11:57am

प्रिय प्रतिभा जी ,आपको ये नवगीत पसंद आया मेरा प्रयास सफल हुआ दिल से आभारी हूँ .

Comment by pratibha pande on June 23, 2016 at 10:47am

रचना के तेवर शब्द चयन और प्रवाह मुग्ध कर रहे हैं   तहे दिल से बधाई प्रेषित है आपको आदरणीया राजेश कुमारी जी ,     


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2016 at 9:50pm

आद० सौरभ जी,इस नवगीत पर आपकी समीक्षा पाकर उत्साहित हूँ आपका दिल से बहुत बहुत आभार |लिखते वक़्त शापित और रोपित को लेकर मैं भी असमंजस  में थी किन्तु कोई भी उपयुक्त शब्द नहीं मिल पाया कोई और शब्द ले रही थी तो भाव के साथ छेड़ हो रही थी सो ऐसे ही रहने दिया |आपको पता है नवगीत मैंने बहुत कम लिखे हैं ये समझो नवगीत के मामले में प्राइमरी की छात्रा हूँ धीरे धीरे साधने का प्रयास करुँगी  सादर . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2016 at 9:45pm

आद० गिरिराज जी,प्रस्तुति के मर्म से उपजे हुए अपने विचार रखकर अनुमोदित करने के लिए दिल की गहराई  से  बहुत- बहुत शुक्रिया |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 22, 2016 at 5:29pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, 

नवगीत के तथ्य से जो कुछ प्राप्त हो रहा है वह वस्तुतः मुग्धकारी है. आपने जिस सकारात्मकता के साथ गीति-तत्त्व को साधा है और प्रस्तुत किया है वह प्रभावी है.

यह अवश्य है कि कथ्य की शैली को लेकर थोड़ी चर्चा हो सकती है. नवगीत विधा शब्द-चयन को लेकर तत्सम की आग्रही नहीं होती. दूसरे, ’शापित’ और ’रोपित’ की तुकान्तता एक ग़ज़लकार से क्षम्य है क्या ? .. ;-))

हार्दिक शुभकामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2016 at 9:59am

आदरणीया राजेश जी , नित बिगड़ते जा  रहे पर्यावरण के कारण उपजी  विभीषिका के प्रति न केवल सचेत कर रही है आपकी रचना वरन हिम्मत भी बंधा रही है। बहुत बढिया , बहुत बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2016 at 10:10am

आ० डॉ० आशुतोष जी ,नवगीत पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिया तोषकारी है मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभार आपका . 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 21, 2016 at 8:01am
आदरणीया राज जी लखनऊ में मूसलाधार बारिश हो रही है सूखे कीभीषण यताबही के बाद ऐसा मंजर देखने केबाद आपके इस शानदार गीत को पदकरगुंगुणाने में बड़ा लुत्फ़ आ रहा है इस ऊर्जा से भरते आपकर इस शानदार गीत के लिए हार्दिक बधायी स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2016 at 7:13pm

आपको ये नवगीत पसंद आया आ० श्याम नारायण जी आपका बहुत- बहुत आभार .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2016 at 7:10pm

आ० तेजवीर सिंह जी ,आपकी प्रतिक्रिया से हर्षित हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका .

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