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मधु मधुऋतु मधुकाल हे! कुसुमाकर ऋतुराज।
रंग-बिरंगे पुष्प हैं, स्वागत में सुर-साज।।
स्वागत में सुर-साज, आज मन नाचे गाये।
अंग-अंग मदमात, पात नव तरु पर आये।।
वसुधा पुलकित आज, सजी जैसे नूतन वधु।
कोयल गाये राग, मधुप इतराएं पी मधु।।

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 20, 2016 at 8:44pm
सुंदर कुंडलिया छंद आदरणीय।
Comment by रामबली गुप्ता on March 17, 2016 at 6:19pm
आदरणीय समर सर, केवल सर एवं रवि सर
रचना पसंद करने के लिए हृदयतल से आभार।सादर
Comment by Ravi Shukla on March 17, 2016 at 3:02pm

आदरणीय राम बली जी आपको इस कुण्‍डलिया के लिये हार्दिक बधाई

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 16, 2016 at 6:57pm

आ० रामबली भाई जी,   सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें.  किंतु....'मदमात'.....के स्थान पर 'मदमस्त; कर लें. सादर

Comment by Samar kabeer on March 16, 2016 at 6:03pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,बहुत बढ़िया,इस प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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