For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चैनल दर चैनल ( लघु कथा ) जानकी बिष्ट वाही

"कितने मिष्ठ भाषी,सौम्य और मिलनसार थे तेरे पापा ।आज़कल न जाने उन्हें क्या हो गया।" माँ ने राघव से कहा।
" माँ ! मुझे भी ऐसा ही लग रहा है।मैं आज़ ही अपने मनोचिकित्सक दोस्त विवेक से इस बारे में बात करता हूँ।कि इस बदले व्यवहार का क्या कारण है।"
छः महीने पुरानी बात थी ज़ब पापा रिटायर हुये थे खूब खुश थे।
" बहुत काम कर लिया ।अब तो जिंदगी जीनी है।"
बस तभी से घर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। चैनल दर चैनल ये सिलसिला बढ़ता ही गया।
सुबह होते ही हिदायतें शुरू हो जाती।" आरव को ,स्कूल ठीक से पहुँचाओ,कहीँ अपहरण न हो जाये।"
माँ पर बरसते " सजी-धजी सीरियल की औरतों की तरह मत समझना अपने को ,ये घर है।"
" साले, सब के सब चोर हैं।"महंगाई के साथ उनका ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता।
रात होते ही घर किले में बदल जाता।" आज़क्ल किसी का भरोसा नहीं सब खूनी- डकैत हैं।" हर बात पर क्राइम पेट्रोल झलकता उनकी बातो से।
ये सारी बातें सुनकर डॉक्टर विवेक बोला-" इतनी नकारात्मकता ? अगर इनका ये हाल है तो पूरे देश का क्या होगा ?"
" अब ये देश कहाँ से आ गया बीच में " राघव बोला ।
" राघव! समस्या बड़ी विकट है।मर्ज़ और अधिक बढ़े उससे पहले रोकना पड़ेगा।"
" ज़ल्दी कुछ कर विवेक । मुझे पापा की बहुत चिन्ता हो रही है।"
" राघव ! ज्यादा कुछ नहीं करना।अंकल का टीवी देखना बन्द करवा दो सब ठीक हो जायेगा।" विवेक मुस्कुराते हुए बोला।

जानकी बिष्ट वाही
मौलिक एवम् अप्रकाशित

Views: 833

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Janki wahie on November 17, 2015 at 11:32am
सादर आभार प्रतिभा जी सुंदर सार्थक टिप्पणी से मनोबल बढ़ाने के लिए।नमन।
Comment by Janki wahie on November 17, 2015 at 11:30am
सादर आभार आ.राजेश कुमारी जी आपने कथा को इतना मान दिया। आपने कथा को पसन्द उसको सार्थक कर दिया।नमन।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 15, 2015 at 9:57pm

वाह  वाह  जानकी जी सही पकड़ा ..हाहाहा  यह हालत आजकल ये टीवी सीरियल कर रहे हैं मैं तो कहती हूँ की आजकल सास बहु के झगडे भी इन सीरियल्स ने बढ़ा दिए हैं क्या क्या हथकंडे सिखाते हैं बहुओं और सास को .बहुत- बहुत बधाई इस शानदार लघु कथा के लिए |

Comment by pratibha pande on November 15, 2015 at 9:29pm

 वाह ,मज़ा आ गया आदरणीया , कितनी सहजता से आपने आज समाज में  व्याप्त इस ' केमिकल लोचे ' को बयां कर दिया ,ढेरों बधाई आपको 

Comment by Janki wahie on November 14, 2015 at 9:46am
आभार सुनील जी।
Comment by Janki wahie on November 13, 2015 at 8:56am
तहे दिल से शुक्रिया शहज़ाद जी। कथा को सुंदर टिप्पणी से सराहने के लिए।
Comment by Janki wahie on November 13, 2015 at 8:54am
सादर आभार आ.मिथिलेश सर जी कथा पसन्द करने के लिए।
Comment by Janki wahie on November 13, 2015 at 8:53am
सादर आभार आ.सौरभ सर जी कथा पर सुंदर टिप्पणी कर उसका मान बढ़ाने के लिए।नमन।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 13, 2015 at 8:36am
बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया जानकी वाही जी, हिट हो गई आपकी यह रचना भी। मैं तो कहता हूँ कि आज की नई पीढ़ी ही नहीं, टीवी देखने, इन्टरनेट पर अधिक समय देने वाला हर व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के पूर्वाग्रहों या मनोविकारों से पीड़ित है,जो समाज व देश के स्वरूप व विकास में बाधक है। बहुत बढ़िया कथानक के साथ बहुत बढ़िया कटाक्ष किया है आपने। रचना और भी अच्छी हो सकती थी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 12, 2015 at 11:53pm

तीर सीधा निशाने पर लगा है. प्रहार सटीक हुआ है ! एक कार्मिक व्यक्ति जब रिटायर हो कर अधिक समय आज के चैनलों पर आते कार्यक्रमों के साथ गुजारे तो .. :-))

एक अच्छी कोशिश के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद व शुभकामनाएँ, आदरणीया जानकी वाही जी. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
44 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
15 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
16 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service