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"माँ तो माँ है न "- (लघु कथा)

गुड्डी पर स्नेह की वर्षा पर उस समय क्षणिक विराम लगा जब सुमित ने अचानक कक्ष में प्रवेश किया।
"अरे, क्या आज ज़ल्दी आ गयीं थीं स्कूल से?"- सुमित ने आश्चर्य से पूछा।
"नहीं, आज मैं गई ही नहीं, छुट्टी ले ली मैंने ! मालूम है न तुम्हें, आज मैं कितनी अपसेट हूँ !"
"तुमसे कितनी बार कहा दीपा कि जब हमारे बीच बहस शुरू हो जाती है, तो तुम कुछ देर के लिए चुप्पी साध लिया करो। कहीं की भड़ास कहीं निकाली तुमने। सोचो अगर ये फोम का गद्दा न होता तो क्या होता। गुड्डी को इतनी ज़ोर से चांटा मारा तो मारा...... तुमने तो ताक़त से उसे बिस्तर पर भी पटक दिया ? कोई चोट -मोच आ जाती तो ?"

दीपा के बड़े बड़े नैत्रों से फिर से पश्चाताप के आँसू बहने लगे। गुड्डी को सीने से लगा कर उसने सारा गुबार निकाल दिया -" भड़ास तो मुझ पर निकाली जा रही है ।काम काज में सास- ननंद का कोई सहारा नहीं । ऊपर से दूध पर्याप्त नहीं उतरता। गुड्डी ऊपर का कुछ लेती ही नहीं अभी । ये भी तो कुछ चिड़चिड़ी सी हो गयी है। इसका क्या कसूर। दादी को तो पोता चाहिए था । पर माँ तो माँ है न !"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 2, 2015 at 10:45pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय Krishna Mishra "jaan" Gorakhpuri जी कथा को पसंद कर प्रोत्साहन देने के लिए। क्षमा करें , कथा को अंत तक पढने पर सब स्पष्ट हो जाता है कि यह पति-पत्नि के मध्य वार्तालाप है। फिर भी यह सही है कि एक पंक्ति में सुधार कर यह लिखने से पाठकगण को परेशानी न होती-
"सुमित ने आश्चर्य से अपनी पत्नी से पूछा।" - संकेत करने के लिए सादर बहुत बहुत धन्यवाद।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 2, 2015 at 10:38pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी मेरी रचना पर उपस्थिति दर्ज कर समीक्षा करते हुए मुझे प्रोत्साहित करने के लिए।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 2, 2015 at 11:44am

वार्तालाप ले क्रम में कौन-किससे कह रहा है,इसे समझने में समय लग रहा है, जिससे कथा बाधित सी लगी मुझे!

सार्थक विषय पर सुन्दर लघुकथा हार्दिक बधाई आ० शेख़ शहजाद उस्मानी ज़ी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 2, 2015 at 8:33am

कामकाजी महिला को किसी का सहारा न होने पर यूं चिडचिडा होना स्वाभाविक है हर तीसरे घर की समस्या हो गई है ये पर मेरा विचार ये ही है कि जब तक बच्चों की परवरिश का सवाल है या तो उनका कोई सही बंदोबस्त हो ,या नौकरी मत करो या बच्चे सही वक़्त पर पैदा करो ,किन्तु इस लघु कथा में माँ बहन हैं किन्तु सहायता नहीं करती क्यूंकि उन्हें लड़का चाहिए था यह भी एक मुख्य पहलु है जो विचारणीय है बहुत कुछ प्रश्न खड़े करती हुई इस सुन्दर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आपको आ० शेख़ शहजाद जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 29, 2015 at 4:59am
तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया Nayana(Arati) Kantikar जी मेरी रचना पर उपस्थिति दर्ज कर प्रोत्साहन देने के लिए।
Comment by नयना(आरती)कानिटकर on September 28, 2015 at 11:12pm

वाह बढिया लघु कथा हुई.

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