For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो बदल जाए खुदारा बस इसी उम्मींद पर-- (ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर

2122---2122---2122---212

 

वो बदल जाए खुदारा बस इसी उम्मींद पर

हर दफा उनकी ख़ता रखते रहे ज़ेरे-नजर

 

ये इशारे मानिए दरिया बहुत गहरा मियाँ

आबजू गंभीर हो, बर-आब भी खामोश गर

 

अब्र ने सूरत बदल दी चैन हमको मिल गया 

चिलचिलाती धूप में साए सुहाने देखकर

 

हार जाता, खोजते इंसान, पर सद्शुक्र है

बंद दरवाजों की बस्ती में खुला था एक दर

 

बेबसी का सिलसिला, ये मुब्तला थमता नहीं

मिल गई परवाज़ लेकिन कट गए है आज पर

 

आदमी की ख्वाहिशों का पेट है कितना बड़ा

दो जहां है हाथ में पर कह रहा बाक़ी कसर

 

हाथ दोनों खोल के फ़य्याज़ मौला है खड़ा

कौन क्या हासिल करेगा जात पर ये  मुनहसर          आश्रित

 

तीरगी फिर तो मचल के बेवफा हो जाएगी

रात जब रोने लगेगी शाम की दहलीज़ पर

 

वक्त-रौ मौजे-समंदर मुन्तजिर होते कहाँ

मंजिलें हो दूर लेकिन कर शुरू गर्दे-सफ़र

 

गर खुदा से कुर्बतों की आरज़ू है आपकी

पाक हो रूहे-बशर और आप हो फर्दे-बशर

 

जान की बाजी लगाना है सफ़र ये, इश्क का

है बहुत गहरा समंदर एहतियातन तू उतर

 

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 1038

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2015 at 4:12am

आदरणीय आशुतोष जी, इस प्रयास पर आपका अनुमोदन आश्वस्त करता हुआ सा है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 23, 2015 at 9:09am

आदरणीय मिथिलेश जी इस शानदार ग़जल के हर शेर के लिए दाद क़ुबूल करें ..आपकी रचना पर बिद्वत जनों की प्रतिक्रिया से भी बहुटी कुछ सीखने को मिला ...बहुत दिनों बाद आज मंच पर आना हुआ ..आपको ढेर सारी बधाई के साथ सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 23, 2015 at 12:04am

आदरणीय समर कबीर जी, आपके मार्गदर्शन में पुनः प्रयास किया है, निवेदित है-

गर खुदा से कुर्बतों की आरज़ू है आपकी
बंदगी हो पुर-असर औ' पाक हो रूहे-बशर 

Comment by Samar kabeer on September 22, 2015 at 11:09pm
"गर ख़ुदा से कुर्बतों की आरज़ू है आपकी
पाक हो रूहे-बशर और आप हो फर्दे-बशर"

"फ़र्द-ए-बशर" का अर्थ है तशख़्ख़ुस (व्यक्तित्व),आपके शैर के सानी मिसरे में "बशर" शब्द दो बार आया है और दोनों ही बार इज़ाफ़त के साथ है जो भला नहीं लगता,"फ़र्द-ए-बशर" से पहले का टुकड़ा इसके अर्थ को उजागर नहीं कर पा रहा है,मेरी इस बात को मद्दे नज़र रखते हुए इस शैर को पुनः देखें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 1:14pm

आदरणीय समर कबीर जी,  ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 

 'फ़र्दे-बशर' की तरकीब की जानकारी नेट आधारित है बस मैंने  फ़र्द-ए-बशर को फ़र्दे-बशर किया है. आपसे मार्गदर्शन निवेदित है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 1:11pm

आदरणीय गिरिराज सर, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 

मिसरे मे एहतियातन का अर्थ  सावधानी से उतरना ही श्रेयकर है, कहना चाह रहा हूँ. यदि कथ्य सही न हो या बेहतर की गुंजाइश हो तो आपसे मार्गदर्शन निवेदित है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 1:09pm

आदरणीय गोपाल सर, आपके आशीर्वचन सदैव मेरा उत्साह बढ़ाते है, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 1:07pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 1:07pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Samar kabeer on September 21, 2015 at 11:49pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

"गर खुदा से कुर्बतों की आरज़ू है आपकी
पाक हो रूहे-बशर और आप हो फर्दे-बशर"

इस शैर में 'फर्दे-बशर' की तरकीब ठीक नहीं है,देख लीजियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service