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मेहनत की घड़ी का बुरा वक्त (लघुकथा)

चार लोग अलग-अलग देशों की यात्रा कर पानी के जहाज़ से अपने घर लौट रहे थे|

पहले ने कुछ दिखाते हुए कहा, "यह एक विशेष प्रकार की बन्दूक ली है, इसका निशाना कभी नहीं चूकता|"

दूसरे ने कहा, "मैं बारूद लेकर आया हूँ, यह देखो|"

तीसरे ने बताया, "और मैं बारूद से कारतूस बनाने का यह सामान|"

चौथे ने गर्व से कहा, "मैं सालों मेहनत कर अपने परिवार के लिये धन ले जा रहा हूँ, देखो मेरी हीरों से जड़ी घड़ी|"

यह सुनकर तीनों ने अपने साथ लाई चीज़ों को मिला दिया और चौथे का जीवन-काल समाप्त कर दिया|

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 2, 2015 at 7:46pm

आदरणीय प्रशांत जी, आदरणीया  कांता जी, आदरणीया  अर्चना जी, आदरणीया  राजेश जी, आप सभी का रचना को पसंद करने और अपनी टिप्पणी द्वारा मेरा मनोबल बढाने हेतु तहे दिल से धन्यवाद|


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Comment by rajesh kumari on July 27, 2015 at 10:54am

कौन किस मकसद से किसकी हत्या करे ,,किस पर विश्वास करें ..आज के वक़्त का सबसे बड़ा प्रश्न है ये| एक  घटना के माध्यम से बम ब्लास्ट कर आतंकवाद पर अच्छा कटाक्ष किया है लघु कथा अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब है बहुत- बहुत बधाई चंद्रेश जी |

Comment by Archana Tripathi on July 27, 2015 at 1:12am
विश्वास के नाकारात्मक भाव को दर्शाती उत्कृष्ट रचना ।हार्दिक बधाई चन्द्रेश जी ।
Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 10:36pm
आज के सामाजिक परिदृश्य में फैले असमाजिक तत्वों को बेहद सटीक तरीके से रोपित किया है आपने चंद्रेश जी । दुसरे की जीवन भर की मेहनत को बल का प्रयोग करके उसको मौत देना ...... ये सच में एक विभत्स रूप है समाज में व्याप्त , जिसका अंकण बेहद सार्थकता के साथ हुआ है । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Prashant Priyadarshi on July 26, 2015 at 9:49pm

बढ़िया...

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