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गीत- इश्क का जला/एक कोशिश

मुखडा -१६
अन्तरा- १४
इश्क का जला,इश्क का जला।
इश्क का जला, इश्क का जला ।

दिल से मेरे निकले धुआँ
कैसे करूं ये गम बयाँ
ये बेबसी की दास्ताँ
है कौन समझेगा यहाँ
जो अब तलक दिल में रहा
वो भी न मुझको पढ़ सका
इश्क का जला------

इक बार भी सोचा नहीं
परखा नहीं समझा नहीं
दिल से कभी देखा नहीं
तूने मुझे जाना नहीं
मजबुरीयों ने रोक रक्खा
है मेरा हर रास्ता
इश्क का जला-------

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on July 20, 2015 at 2:39pm
जनाब राहुल डांगी जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 19, 2015 at 4:26pm
मजबुरीयों को मजबूरियों पढे । सादर
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 19, 2015 at 4:25pm
जी मनोज भाई गीत में कोशिश की है । एक मित्र एक फिल्म रहें है उनके कहने पर उनकी स्टोरी पर लिखने की कोशिश की। गुनीजनों का मार्ग दर्शन चाहता हूँ।
Comment by मनोज अहसास on July 19, 2015 at 10:57am
आप ग़ज़ल बहुत खूब लिखते है सर
सादर

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