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उम्दा तैराक कभी था तो यकीनन पर सुन

2122   1122   1122   22/112

हुस्न है रब ने तराशा न जुबाँ से कहिये 

आप हैं  बुझते दिए आप जरा चुप रहिये 

आईना देख के बालों की सफेदी देखें 

गाल भी लगते हैं अब आपके पंचर पहिये

 

आप तैराक थे उम्दा ये हकीकत है पर

बाजू कमजोर हवा तेज न उल्टे  बहिये 

इश्क का भूत नहीं सर से है उतरा माना 

पर सही क्या है ये, इस उम्र में खुद ही कहिये ?

लोग जिस मोड़ पे अल्लाह के हो जाते हैं 

आप उस मोड़ पे मत दर्दे मुहब्बत सहिये

मौत महबूब तड़प कर  के मिलेगी तुझसे 

दिल में ले उसकी तड़प आप भी जगते रहिये

मैकदा जाम सुराही हैं सभी मेरे लिए 

इस हकीकत पे कभी आप भी तो कुछ कहिये 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 8, 2015 at 1:54pm

आदरणीय सौरभ सर ..आपका मशविरा मेरे लिए बहुमूल्य है ..आदरणीय सर ये ग़ज़ल मेरे कालेज जीवन की ग़ज़ल है ..इसे दोस्तों में कई बार सुनाने के कारण इसे प्रकाशित करते समय तकनीकी पक्ष की ध्यान बिलकुल नहीं दे पाया ..कहीं न कहीं चूक मुझसे बार बार हो जाती है इन गलतियों से बचने का प्रयास करूंगा सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 8, 2015 at 10:43am

आदरणीय गोपाल सर ..आपने बिलकुल सही कहा है ..मैं समय नहीं दे पाया ..करिए शब्द गलत है मैं ग़ज़ल पुनः संसोधित करूंगा सादर प्रणाम के साथ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 11:16pm

बोलचाल के शब्द रचनाओं में हों लेकिन ग़ज़लों के शब्द इतने भी बोलते-चलते नहीं हुआ करते. वैसे आपने हास्य-ग़ज़ल पर बहुत ही गंभीर प्रयास किया है. इसकेलिए आपकी प्रशंसा अवश्य होनी चाहिये. शायद आपको पहली बार हास्य ग़ज़ल पर हाथ आजमाता हुआ देख रहा हूँ.

हार्दिक बधाइयाँ.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 7, 2015 at 9:59pm

आशुतोष जी

कुछ समय और देना था

इस हकीकत पे कभी आप यकीं तो करिये ------कहिये, रहिये, बहिये में यह 'करिए 'कहाँ से आ गया --- सादर .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 7, 2015 at 9:59am

आदरणीय वीनस जी ..आपकी प्रतिक्रिया में इंगित मशविरे के अनुरूप सुधार करते हुए भविष्य में इस तरफ बिशेस ध्यान रखूंगा ..का के गलती से लिख गया ..कर के  था ......चहिये ..मैं आपका इशारा समझ गया चाहिए होना था पर यह बहर से ख़ारिज होगा ..ये शेर में हटा दूंगा ..उमर की जगह उम्र करते हुए संसोधन करूंगा ...आपके उत्साहित करती...मार्गदर्शन देते और सचेत करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार ज्ञापित करता हूँ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 7, 2015 at 9:46am

आदरणीय गिरिराज भाई साब ..का के गलती से हो गया मौत महबूब तड़प ...कर  ..के मिलेगी तुझसे...कर की जगह का टाइप हो गया था मैं फिर से अवलोकन करके संसोधन करने का प्रयास करूंगा .आपके मशविरे और स्नेह का आभारी हूँ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 7, 2015 at 9:42am

आदरणीय विजय सर ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by वीनस केसरी on May 7, 2015 at 1:21am

खूब ग़ज़ल कही है कुछ बिन्दुओ को साझा करना चाहता हूँ ....

पंचर पहिये वाला शेर मजाहिया हुआ जा रहा है ...उम्र को उम्र जैसा भी निभा सकते हैं उमर करने की क्या ज़रुरत थी ...

का के ने मुझे भी हैरान किया है

मतला बढ़िया बनते बनते रह गया ...

हुस्न है रब ने तराशा न जुबाँ से कहिये 

आप हैं बुझते दिए आप जरा चुप रहिये

करी करिए जैसे शब्द आम बोल-चाल में तो हैं मगर सिन्फे-ग़ज़ल जब तक इनसे बच सके बचाए रखिये ...
क्या आपने सोचा कि चहिये जैसे काफिये को कितना स्वीकार किया जाएगा .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 6, 2015 at 8:46pm

आदरणीय  आशुतोष भाई , गज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है , एक बार ध्यान से सभी अश आ र और पढ़ लीजिये , कुछ समय कम दिये हैं ऐसा लग रहा है  । पहले शे र मे दो बार आप है  , ठीक नही लग रहा है

छठवें  शे र मे  ---- का  के  आपने लिखा है , मै समझ नही पाया । प्रयास के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 6, 2015 at 7:54pm
वाह! मजा आ गया। ऐसे भी चेतावनी दी जाती है, सही है, बधाई आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , सादर।

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