For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तोहफा
सुबह से घर की सफाई और किचन में जुटी नीना चौंक गई “बाप रे अतुल के आने सिर्फ दो घंटे बचे हैं और मैं भूत जैसी घूम रही हूँ. माँ आप ज़रा गैस बंद कर देना प्लीज मै नहाने जा रही हूँ.”अतुल की पसंद की पीली साड़ी में तैयार होकर आई तो माँ अर्थ पूर्ण ढंग से मुस्कुरा रही थी “वाह जी खाने से लेकर सजावट तक सब अतुल का मनपसंद, अब तो साड़ी भी.” माँ ने कहा तो नीना शरमा गई “क्या बात हुई थी वैसे तेरी? माँ ने उत्सुकता से पूछा. “आवाज़ कट रही थी माँ अतुल की. वो अमेरिका से पिछले ही सप्ताह लौटा है मुझसे मिलने तो सीधे यहीं आना चाहता था मगर माता-पिता सबसे पहलें हैं. तो अब आ रहा है उसकी माँ को अब शादी की बहुत जल्दी है” शादी के नाम पर नीना की रंगत और गुलाबी हो गई. माँ नें दुलार से नीना के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा बेटा तूने बहुत तपस्या की. पांच साल बहुत होते हैं. “दीदी आपके लिए तो गिफ्ट-शिफ्ट भी आ रहें होगे ना” छोटे भाई ने बहन को छेड़ते हुए कहा. “वो खुद आ गया वापस इस से बड़ा क्या तोहफा होगा” माँ ने कहा. तभी बाहर घंटी बजी नीना ने दौड़ कर दरवाजा खोला.हाँ ये अतुल ही था. हाथ मे बड़ा सा पैकिट पकडे “अरे रुक क्यों गए अंदर आओ ना’” नहीं बहुत जल्दी में हूँ ये सारे बांटने हैं फिर कभी जरुर आउंगा अभी ये पकड़ो सबको आना है बहाना नही चलेगा. और नीना को कार्ड थमा कर चला और वापस मुड कर आँख दबाते हुए कहा “गज़ब लग रही हो अब तो तुम भी शादी कर ही डालो...”
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 531

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Seema Singh on May 6, 2015 at 6:24pm
आप सभी का ह्रदय से आभार....अभी मैने नया नया ही यहाँ ज्वाइन किया है। थोड़ा समय लगेगा यहाँ के तौर तरीके समझने में ।आप सब ने जो मेरा हौसला बढाया है उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 12:16am

वाह! बहुत सुंदर प्रस्तुति ,आदरणीया सीमा जी.हार्दिक  बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 5, 2015 at 10:52pm

वाकई जोर का झटका धीरे से  दे गई लघुकथा 

बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 8:01pm

वाह! बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है!अंतिम पंक्तियों ने आह निकाल दी! आपको हार्दिक बधाई व् शुभकामनाए!

Comment by Mohinder Kumar on May 5, 2015 at 3:06pm

जोर का झटका धीरे से.... कभी कभी हम किसी से आवश्यकता से अधिक आशायेँ जोड लेते हैँ एँव इस बाँध के टूटते ही सँजोया हुआ सब कुछ बाढ मेँ बह जाता है.... सार्थक प्रस्तुति 

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 5, 2015 at 10:08am
आदरणीय सुश्री सीमा सिंह जी , आपकी प्रथम प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए बधाई, और आगे के लिए शुभकामनाएं , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आ. समर सर,मिसरा बदल रहा हूँ ..इसे यूँ पढ़ें .तो राह-ए-रिहाई भी क्यूँ हू-ब-हू हो "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"धन्यवाद आ. समर सर...ठीक कहा आपने .. हिन्दी शब्द की मात्राएँ गिनने में अक्सर चूक जाता…"
yesterday
Samar kabeer commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"जनाब नीलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई, बधाई स्वीकार करें । 'भला राह मुक्ति की…"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, सार छंद आधारित सुंदर और चित्रोक्त गीत हेतु हार्दिक बधाई। आयोजन में आपकी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,छन्नपकैया छंद वस्तुतः सार छंद का ही एक स्वरूप है और इसमे चित्रोक्त…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरी सारछंद प्रस्तुति आपको सार्थक, उद्देश्यपरक लगी, हृदय से आपका…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, आपको मेरी प्रस्तुति पसन्द आई, आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार। "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service