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ग़ज़ल--ज़हर आकर पिला दे तू

मुहब्बत को निभा दे तू
ज़हर आकर पिला दे तू
....
नज़र से उठ नहीं पाऊँ
मुझे ऐसा गिरा दे तू
....
व़फायें जानता हूँ मैं
नया कुछ तो सिख़ा दे तू
....
मुझे मँझाधार मैं लाकर
मेरी कश्ती हिला दे तू
....
कभी सोचा न हो मैंने
मुझे ऐसा सिला दे तू
....
क़यी मुद्दत से तन्हा हूँ
मुझे मुझसे मिला दे तू
..
..
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 716

Comment

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Comment by umesh katara on January 28, 2015 at 10:00pm

डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव ji बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 28, 2015 at 9:00pm

क़यी मुद्दत से तन्हा हूँ
मुझे मुझसे मिला दे तू------------------बेहतरीन कटारा जी i

Comment by umesh katara on January 28, 2015 at 7:02pm

seema agrawal ji बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by umesh katara on January 28, 2015 at 7:01pm

गिरिराज भंडारी ji बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by umesh katara on January 28, 2015 at 7:01pm

ajay sharma ji बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by umesh katara on January 28, 2015 at 7:00pm

somesh kumar ji बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by umesh katara on January 28, 2015 at 6:59pm
Comment by umesh katara on January 28, 2015 at 6:59pm

vijay ji बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by umesh katara on January 28, 2015 at 6:58pm
Comment by umesh katara on January 28, 2015 at 6:58pm

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