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ग़ज़ल-- मेरे हँसने हँसाने पे शक़ है उसे

212  212  212  212
मेरे हँसने हँसाने पे शक़ है उसे
बेव़जह मुस्कुराने पे शक़ है उसे
.................
अलव़िदा कह गया जाता-जाता मग़र
आज़तक भूलपाने पे शक़ है उसे
....................
हर किसी से करूँ ज़िक्र मैं यार का
पर व़फायें निभाने पे शक़ है उसे
...................
कब से तनहाई दुल्हन बनी है मेरी 
पर तुझे भूल जाने पे शक़ है उसे
.................
आँसुओं से समन्दर भी मैंने भरा
मेरे आँसू बहाने पे शक़ है उसे


उमेश कटारा 
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 9:49am

अलव़िदा कह गया जाता-जाता मग़र
आज़तक भूलपाने पे शक़ है उसे
आदरणीय उमेश जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |


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Comment by गिरिराज भंडारी on February 1, 2015 at 12:14pm

आदरणीय , अच्छी गज़ल कही , बधाई स्वीकारें ।

Comment by ram shiromani pathak on February 1, 2015 at 10:20am
सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय।।बधाई
Comment by मोहन बेगोवाल on January 31, 2015 at 11:54pm

 उमेश जी , मुझे गज़ल का मक्ता बहुत प्यारा लगा 

आँसुओं से समन्दर भी मैंने भरा
मेरे आँसू बहाने पे शक़ है उसे - बधाई कबूल करें 

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on January 31, 2015 at 10:35am

 

 कब से तनहाई दुल्हन बनी है मेरी 
पर तुझे भूल जाने पे शक़ है उसे waah   bhaee waah

Comment by vijay on January 30, 2015 at 10:58pm
शेर दर शेर दाद कुबूल करें
Comment by ram shiromani pathak on January 30, 2015 at 3:36pm
ज़ोरदार कहन आदरणीय।।बधाई
Comment by umesh katara on January 30, 2015 at 7:59am

बहुत शुक्रिया श्री Shyam Mathpal जी

Comment by umesh katara on January 30, 2015 at 7:59am

बहुत शुक्रिया श्री Er. Ganesh Jee "Bagi"जी

Comment by umesh katara on January 30, 2015 at 7:59am

बहुत शुक्रिया श्री मिथिलेश वामनकर जी

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