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आप मेरे पाँव के आबलों को देखिये

फिर मेरी तै की हुई दूरियों को देखिये

 

गोद में वादी लिए हो कोई खरगोश ज्यूं

घाटियों में आप इन बादलों को देखिये

 

रो रहा है फूटकर आसमां किस बात पर

आँसुओं की है झड़ी बारिशों को देखिये

 

दुश्मनों की चाल से बाख़बर हरदम रहे

दोस्तों की भी ज़रा साज़िशों को देखिये

 

रहजनों से रास्ता पूछते हैं बारहा

मंज़िलों से बेख़बर रहबरों को देखिये

 

आपके सर पर चलो एक छत है तो सही

जी रहे हैं किस तरह बेघरों को देखिये

 

आजकल ‘खुरशीद’ भी बादलों में जा छुपा

तीरगी है हर तरफ़ गर्दिशों को देखिये

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 15, 2015 at 2:44pm

आदरणीय खुर्शीद जी ..हर शेर उम्दा है 

आपके सर पर चलो एक छत है तो सही

जी रहे हैं किस तरह बेघरों को देखिये. ..वाकई सोचने की बात है ..दुसरे शेर में थोड़ी गेयता बाधित लगी ..ऐसा मुझे लगा है संभवतः गलत भी हो सकता है ..इस रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:37am

आदरणीय राहुल जी , सादर आभार |

Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:35am

आदरणीय उमेश कटारा जी , आ. दिनेश भाई , मुहब्बत है आपकी |नज़ारे-करम बनाये रखियेगा |सादर आभार |

Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:33am

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,प्रतिभा जी , ग़ज़ल पर आपका अनुराग ही असली दाद है | आशा है यह अनुराग बना रहेगा ,आशीर्वाद मिलता रहेगा |सादर आभार 

Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:31am

आदरणीय सौरभ सर ,आपका मेरी ग़ज़ल पर आना ही सौभाग्य की बात है ,उस पर आपका आशीर्वाद मिल जाना परम सौभाग्य है |सादर आभार |

Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:29am

आदरणीय विजयशंकर सर , मिथिलेश जी , हरिप्रकाश जी , सोमेश भाई ,आप सभी का स्नेह इसी तरह बना रहें |सादर आभार 

Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:26am

आदरणीय श्याम नारायण जी , आदरणीय गोपालनारायण सर ,आपका हार्दिक आभार |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर |

Comment by somesh kumar on January 14, 2015 at 3:02pm

आपके सर पर चलो एक छत है तो सही

जी रहे हैं किस तरह बेघरों को देखिये

 सुंदर गज़ल ,हर मतला खुबसुरत 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 14, 2015 at 10:45am

आप मेरे पाँव के आबलों को देखिये

फिर मेरी तै की हुई दूरियों को देखिये---बहुत बढ़िया मतला 

दाद कबूलें इस सुन्दर ग़ज़ल पर |

 

Comment by umesh katara on January 14, 2015 at 8:03am

दुश्मनों की चाल से बाख़बर हरदम रहे

दोस्तों की भी ज़रा साज़िशों को देखिये
उम्दा गजल कही है सर वाह

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