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शब ही नहीं सहर भी तू है।

22 22 22 22
शब ही नहीं सहर भी तू है।
मेरी ग़ज़ल बहर भी तू है।।

मेरे ज़ख्मों पे यूँ लगती।
मरहम साथ असर भी तू है।।

बहुत खूबसूरत है दुनियाँ।
ऐसी एक नज़र भी तू है।।

जीवन के हर पथ में मेरे।
मंजिल और सफ़र भी तू है।।

शाहिल तक पहुचाने वाली।
मेरी वही लहर भी तू है।।
**********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 9:24pm
डॉ गोपाल जी हार्दिक आभार।।सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2014 at 6:53pm

बहुत उम्दा  पाठक जी i

मेरे ज़ख्मों पे यूँ लगती।
मरहम साथ असर भी तू है।।

बहुत खूबसूरत है दुनियाँ।
ऐसी एक नज़र भी तू है।।

Comment by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 5:40pm
डॉ आशुतोष जी बहुत आभार आपका।।सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 29, 2014 at 4:41pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी ..सुंदर बिचारों से सुसज्जित इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई ..

Comment by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 3:56pm
मिथिलेश भाई बहुत आभार आपका।।
Comment by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 3:55pm
राम अवध जी अमूल्य सुझाव हेतु हार्दिक आभार आपका
Comment by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 3:54pm
सोमेश भाई बहुत आभार आपका।
Comment by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 3:52pm
हरि प्रकाश जी बहुत आभार
Comment by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 3:51pm
जी आदरणीय गणेश जी।।सादर 22 22 22 22
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 29, 2014 at 7:43am

शिज्जू भाई ठीक फरमा रहे हैं गजल में कर्म का करम हो सकता है , धर्म का धरम हो सकता है जन्म का जनम हो सकता है समुदृ का समन्दर हो सकता है परन्तु बह्र का बहर नहीं हो सकता है जह्र का जहर नहीं हो सकता है।

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