For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - रात गहरी पहले तो आती ही है

2122 2122. 212

बात आ ना जाए अपने होठ पर
देखिए पीछे पड़ा सारा शहर

मत कहो तुम हाले दिल चुप ही रहो
क्यों कहें हम खुद कहेगी ये नजर

देखो कलियाँ खुद ही खिलती जाएँगी
गीत अब खुद गुनगुनाएँगे भ्रमर

हाथ थामें जब चलेंगे साथ हम
वक्त थम जाएगा हमको देखकर

रात गहरी पहले तो आती ही है
पर पलट करती है ऐलाने- सहर

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 828

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 15, 2015 at 12:12pm

आदरणीया पूनम जी ..इस बेहतरीन ग़ज़ल का हर शेर उम्दा है ..रात गहरी पहले तो आती ही है
पर पलट करती है ऐलाने- सहरयह शेर मुझे बेहद पसंद आया ..ढेर सारी बधाई के साथ 

Comment by Anurag Prateek on December 31, 2014 at 7:17pm

बात ये  भी आ न जाए होठों पर – एक कोशिश मेरी भी- 

बात आ ना जाए अपने होठ पर- सुधारें --होंठ एक नहीं होता 


देखिए पीछे पड़ा सारा शहर

मत कहो तुम हाले दिल चुप ही रहो
क्यों कहें हम खुद कहेगी ये नजर  - वाह

आज कलियाँ खुद ही खिलती जाएँगी
गीत अब खुद गुनगुनाएँगे भ्रमर – वाह

हाथ थामें जब चलेंगे साथ हम
वक्त थम जाएगा हमको देखकर—वाह

रात गहरी लाख है अपनी जगह—मेरी कोशिश

सब उलट देती  है एलाने-सहर  

रात गहरी पहले तो आती ही है
पर पलट करती है ऐलाने- सहर- सुधारें


Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 30, 2014 at 3:53pm

आदरणीया पूनम जी इस शानदार ग़ज़ल के लिये हादिक बधाई सादर 

Comment by मोहन बेगोवाल on December 28, 2014 at 10:14pm

  आदरनीया पूनम जी , सादगी कि संग कही गई  अर्थ भरपूर गज़ल पेश करने की बधाई हो 

Comment by LOON KARAN CHHAJER on December 25, 2014 at 6:55pm
आदरणीया पूनम शुक्ला जी,
जयजिनेन्द्र
शानदार ग़ज़ल...हार्दिक बधाई। मैं अपने अख़बार थार एक्सप्रेस में साभार प्रकाशित कर रहा हुँ.

धन्यवाद
Comment by भुवन निस्तेज on December 20, 2014 at 12:14am

रात गहरी पहले तो आती ही है
पर पलट करती है ऐलाने- सहर

क्या खूब कहन है आदरणीया....

बधाई स्वीकार करें...

Comment by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 2:35am

आदरणीया पूनम शुक्ला जी,शानदार ग़ज़ल...हार्दिक बधाई !

Comment by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 8:13pm
पूनम जी सुन्दर ग़ज़ल।।बधाई
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on November 25, 2014 at 5:32pm

niceee

Comment by Meena Pathak on November 25, 2014 at 4:14pm

खूबसूरत गज़ल ..बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service