For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से-ग़ज़ल

2122/ 2122/ 2122/ 212

इस ख़मोशी से कभी तो एक मुबहम शोर से

दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से

 

कौन सा है रास्ता महफूज़ जाऊँ किस तरफ़

आफ़तें तो आफ़तें हैं आयें चारों ओर से

 

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर

इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से

 

और कितने राज़ अँधेरा अब छुपा ही पाएगा

इक किरण उठने लगी आफ़ाक़ के उस छोर से

 

बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई

आँसुओं के नाम पर टपका लहू बस कोर से*

 

मुबहम =अस्पष्ट, आफ़ाक़ =दुनिया

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 10:39pm

ग़ज़ल तो काबिले तारीफ़ तो है ही, विशेषकर मतले ने दिल खुश कर दिया, शिज्जू भाईजी.

दाद कुबूल करें..

Comment by mrs manjari pandey on July 17, 2014 at 8:09pm
आदरणीय शिज्जू शकूर जी उम्दा ग़ज़ल.

कौन सा है रास्ता महफूज़ जाऊँ किस तरफ़
आफ़तें तो आफ़तें हैं आयें चारों ओर से

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर
इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2014 at 4:20pm

आदरणीय गुमनाम जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2014 at 4:19pm

आदरणीय कल्पना जी आप जैसी वरिष्ठ रचनाकार की सराहना से उत्साह दोगुना हो जाता है आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2014 at 4:18pm

आदरणीय गिरिराज सर रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2014 at 4:17pm

आदरणीय करुण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 15, 2014 at 4:06pm

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर

इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से

"बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई

आँसुओं के नाम पर टपका लहू बस कोर से

बहुत बधाई ॥

Comment by कल्पना रामानी on July 14, 2014 at 10:50pm

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर

इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से.....वाह! क्या शानदार शेर कहा है

इस सुंदर गजल के लिए आपको बहुत बधाई आदरणीय शिज्जु जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 14, 2014 at 9:12pm

आदरणीय शिज्जु भाई , बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ ॥

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर

इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से ---- लाजवाब बात कही भाई , बहुत बधाई ॥

Comment by Santlal Karun on July 14, 2014 at 8:06pm

आदरणीय शिज्जू शकूर जी,

उम्दा ग़ज़ल, विशेष रूप से यह शेर --

"बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई

आँसुओं के नाम पर टपका लहू बस कोर से"

 ...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी।"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"नमस्कार। प्रदत्त विषय पर एक महत्वपूर्ण समसामयिक आम अनुभव को बढ़िया लघुकथा के माध्यम से साझा करने…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीया प्रतिभा जी आपने रचना के मूल भाव को खूब पकड़ा है। हार्दिक बधाई। फिर भी आदरणीय मनन जी से…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"घर-आंगन रमा की यादें एक बार फिर जाग गई। कल राहुल का टिफिन बनाकर उसे कॉलेज के लिए भेजते हुए रमा को…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदाब। रचना पटल पर आपकी उपस्थिति, अनुमोदन और सुझाव हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।…"
10 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आपका आभार आदरणीय वामनकर जी।"
11 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आपका आभार आदरणीय उस्मानी जी।"
11 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीया प्रतिभा जी,आपका आभार।"
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"  ऑनलाइन शॉपिंग ने खरीदारी के मापदंड ही बदल दिये हैं।जरूरत से बहुत अधिक संचय की होड़ लगी…"
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीय मनन सिंह जी जितना मैं समझ पाई.रचना का मूल भाव है. देश के दो मुख्य दलों द्वारा बापू के नाम को…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"जुतयाई (लघुकथा): "..और भाई बहुत दिनों बाद दिखे यहां? क्या हालचाल है़ंं अब?""तू तो…"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service