For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जोड़ी बिना अधूरा है |

जीवन के अनजाने पथ पर  , मोड़ अनेको आते हैं |
पथिक अकेला चलता रहता , मिल  लोग  बिछड़ जाते हैं |
कुछ तो मिलकर मन बहलाते ,  कुछ मौन चले जाते हैं | 
कोई दे  सर्द हवा  झोंका ,      कोई ग़म  दे जाते  हैं |  
पर कही मिले कोई नैया , जीवन पार लगा जाती |
गर विरान मरुस्थल में रहे , नई हरीयाली लाती |  
अलग खुशी भरती जीवन में, फूलों से घर महकाती | 
हँसी खुशी से  साथ निभाये ,  घर घर घरनी कहलाती | 
विवेक होता नर नारी में , मन रमा गाड़ी चलाते |
मानव दानव में अंतर क्या , जो घर बसा बिछड़ जाते |
दोनों हाथ मिल  बजे  ताली , जुदा शोर  ना कर पाते | 
जीवन में ग़म भर जाता है ,  जुदा राह जब अपनाते |
पर नर नारी के मिलन बिना ,  जीवन पुष्प अधूरा है | 
तनहा रहकर जो खुशी मिले , जोड़ी  बिना अधूरा  है | 
जाना है एक दिन जहाँ  से , होत  समय जब पूरा है |
वर्मा फिर  ना आने वाला , ठोकर लगा जो गिरा है |
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 717

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on May 24, 2014 at 4:12pm
आपका ह्रदय से आभारी हूँ...
सादर!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 11:24pm

रचना भावपूर्ण है.. आदरणीय

अनेकों शब्द का प्रयोग सुधीजन नहीं करते..  हम भी उनका अनुकरण करें.

सादर

Comment by Shyam Narain Verma on May 21, 2014 at 10:49am

रचना को सराहने के लिये आदरणीय गिरिराज जी , आदरणीया मुखर्जी जी एवं  आदरणीय शिज्जु शकूर जी का  हार्दिक आभार |
सादर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 21, 2014 at 10:40am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, बढ़िया भावपूर्ण रचना के लिए बधाई...................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 20, 2014 at 9:39pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी अच्छी भावाभिव्यक्ति है बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on May 20, 2014 at 8:32pm
जीवन के अनजाने पथ पर  , मोड़ अनेको आते हैं |
पथिक अकेला चलता रहता , मिल  लोग  बिछड़ जाते हैं |
कुछ तो मिलकर मन बहलाते ,  कुछ मौन चले जाते हैं | 
कोई दे  सर्द हवा  झोंका ,      कोई ग़म  दे जाते  हैं |.....शायद यहीं दुनिया की रीत है....फिर भी मुसाफिर को चलना तो पड़ता ही है......बहुत अच्छा प्रयास है..नारायण जी....आप  लिखते रहें.....शुभकामनाएँ......सादर. 

...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 20, 2014 at 6:35pm

आदरनीय श्याम नारायण भाई , खूब सूरत भाव पूर्ण रचना के लिये बधाइयाँ ॥ गेयता थोड़ी बाधित लगी ॥

Comment by Shyam Narain Verma on May 19, 2014 at 3:48pm

रचना को सराहने के लिये आदरणीया मीना पाठक जी , आदरणीय जितेंद्र ' गीत ' जी और आदरणीय लक्ष्मण धामी जी का  हार्दिक आभार |
सादर!

 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 19, 2014 at 10:52am

आदरणीय श्याम नारायण जी, इस सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 19, 2014 at 8:43am

बहुत सुंदर रचना आदरणीय श्याम नारायण जी, हार्दिक बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
5 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service