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राह आसां नहीं है उल्फत की

२१२२     १२१२     २२

जिंदगी और इम्तिहान न ले

कुछ भी ले ले मेरा गुमान न ले 

मशविरा है यही फकीरों का  
यूं कभी दी हुई ज़बान न ले  


राह आसां नहीं  है उल्फत की

नन्हे से दिल मे आसमान न ले

चल खिलोनों से खेलते हैं हम

तू अभी हाथ में कृपान न ले 

जो पड़ोसी है मुल्क उसको बता  
असलहों से भरी दुकान न ले

खुल के जी खुद भी, सब को दे जीने  

अपनी मुट्ठी मे तू जहान न ले  

जिन की झोली में बस दुआयें हों  

उन फकीरों से उन की आन न ले

मौलिक एवं अप्रकाशित 

डॉ आशुतोष मिश्र 

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Comment

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Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 10, 2013 at 12:18pm

मिश्रा जी छोटे बहर मे अच्छी ग़ज़ल हुई है खास कर ये शेर तो बहुत उम्दा हुआ है॥

राह आसां नहीं  है उल्फत की

नन्हे से दिल मे आसमान न ले

दाद कुबूल हो ! 

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 8:34pm

सुंदर भावों का संप्रेषण है आदरणीय आशुतोष जी......  बधाई स्वीकारें....

Comment by वेदिका on October 24, 2013 at 8:47am

बहर दे दें तो हमे आसानी हो जाए गज़ल समझने में|

सादर!!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2013 at 8:00am

बेहद प्रभावकारी ग़ज़ल ...बधाई,  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 23, 2013 at 11:26pm

जिन की झोली में बस दुआयें हों  

उन फकीरों से उन की आन न ले......वाह! अति प्रभावशाली

हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय डा.आशुतोष जी

Comment by Meena Pathak on October 23, 2013 at 7:10pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ... हार्दिक बधाई स्वीकारें | सादर 

Comment by annapurna bajpai on October 23, 2013 at 6:32pm

जो पड़ोसी है मुल्क उसको बता  
असलहों से भरी दुकान न ले

खुल के जी खुद भी, सब को दे जीने  

अपनी मुट्ठी मे तू जहान न ले ................. प्रभाव शाली पंक्तियाँ बहुत बधाई आपको । 

Comment by राजेश 'मृदु' on October 23, 2013 at 5:10pm

इस सुंदर प्रस्‍तुति पर आपको हार्दिक बधाई

Comment by ram shiromani pathak on October 23, 2013 at 4:11pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल //// //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by विजय मिश्र on October 23, 2013 at 4:07pm
"जो पड़ोसी है मुल्क उसको बता
असलहों से भरी दुकान न ले
खुल के जी खुद भी, सब को दे जीने
अपनी मुट्ठी मे तू जहान न ले |" ---- बहुत सही फरमाया जनाब , शुक्रिया .

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