For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन के उपजे कुछ हाइकू  आपके समक्ष --

मन के भाव

शांत उपवन में 

पाखी से उड़े .

उड़े है  पंछी

नया जहाँ बसाने

नीड है खाली ।

मन की पीर

शब्दों की अंगीठी से

जन्मे है गीत।

सुख औ दुःख

नदी के दो किनारे

खुली किताब।

मै का से कहूँ

सुलगते है भाव

सूखती जड़े।

मोहे न जाने

मन का सांवरिया

खुली पलकें

मन चंचल

बदलता मौसम

सर्द रातों में।

मन उजला

रंगों की चित्रकारी

कलम लिखे।

मौलिक और अप्रकाशित

 

-- शशि पुरवार

Views: 677

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 12, 2013 at 11:44pm

अति सुंदर रचना, बधाई आदरणीया शशि जी

Comment by बृजेश नीरज on September 12, 2013 at 11:19pm

वाह! बहुत ही सुन्दर हाइकु! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by shashi purwar on September 12, 2013 at 10:23pm

सभी मित्रो का तहे दिक् से आभार

Comment by shashi purwar on September 12, 2013 at 10:23pm

नमस्ते सौरभ जी

चाह  कर भी नहीं आ सकी नेट पर फिलहाल स्वास्थ की परेशानी के कारन कम सक्रीय हूँ चाहकर भी नहीं आ पाती , पर पढ़ती सबको हूँ ,और हमारे आयोजन भी ,टाइप नहीं कर सकती दर्द के कारन इसीलिए कमेंट्स नहीं कर पाती।  आपका रचना पर आकर , समीक्षा देना और बात करना अच्छा  लगा , आभार आपका

Comment by shashi purwar on September 12, 2013 at 10:21pm

प्राची जी नमस्ते आभार , आपकी बात मान्य है , पर दूसरे में तीनो पंक्तियाँ अलग है , और तीसरे में दूसरी और अंतिम पंक्ति में साम्य दिखाई देता है।  इस तरह के अनेक हाइकू  मैंने हाइकू कोष में पढ़े , और एक हाइकू की किताब में भी बहुत पहले , हाइकू के अनेक प्रकार  भी पढ़े थे , उस समय हाइकू साहित्य में पहला कदम था , नया ही लिख रही थी , पर आगे आपकी बात ध्यान रखूंगी , इस बारे में हम और चर्चा खुल कर करेंगे , आभार स्नेह बनाये रखें।

Comment by shashi purwar on September 12, 2013 at 10:13pm

सभी मित्रो का तहे दिल से आभार , आपको हाइकु पसंद आये और आपने यहाँ आकर अपने अनमोल शब्दों से उत्साहवर्धन किया

Comment by vijayashree on September 12, 2013 at 6:49pm

भावपूर्ण हैं 

हर एक हाइकू 

मनभावन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 11, 2013 at 11:32pm

आदरणीया शशिजी,  एक अरसे बाद आपकी किसी रचना को देख रहा हूँ. अच्छा लगा है. 

वैसे, कुछ हाइकु शिल्प की कसौटी पर तनिक और स्पष्टता की चाहना रखते हैं. अर्थ यह कि कइयों में कमसेकम दो पंक्तियाँ ऐसी हैं जो परस्पर सम्बन्ध में हैं. ऐसा होना हाइकु के शिल्प के लिहाज से कमी है.

इसके बावज़ूद कई पाठक ऐसे हैं जो इस ओर इंगित नहीं कर पाये हैं जबकि उनको इस मंच पर बने एक अरसा हो आया है.

आदरणीया आपके माध्यम से यह कह देना चाहता हूँ कि पाठकों द्वारा बिना तथ्य की समझ के वाह-वाह का तुमुलनाद करना ओबीओ की परम्परा नहीं रही है. नये पाठकों से मुझे कोई शिकायत नहीं है. लेकिन अब कई पुराने हो चले पाठक ऐसा कर रहे हैं तो देख कर दुख होता है. ऐसी वाहवाहियों से गंभीर रचनाकार को कोई लाभ नहीं होता. 

सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 11, 2013 at 9:58pm

आदरणीया शशि जी बेहद भावपूर्ण हाइकू बधाई स्वीकारें.

Comment by ram shiromani pathak on September 11, 2013 at 8:42pm

आदरणीया शशि जी,बहुत सुन्दर हायकू हार्दिक बधाई आपको..............

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आपने कविता में संदर्भ तो महत्वपूर्ण उठाए हैं, उस दृष्टि से कविता प्रशंसनीय अवश्य है लेकिन कविता ऐसी…"
24 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" पर्यावरण की इस प्रकट विभीषिका के रूप और मनुष्यों की स्वार्थ परक नजरंदाजी पर बहुत महीन अशआर…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"दोहा सप्तक में लिखा, त्रस्त प्रकृति का हाल वाह- वाह 'कल्याण' जी, अद्भुत किया…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीया प्राची दीदी जी, रचना के मर्म तक पहुंचकर उसे अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार। बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी इस प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका मेरे प्रयास को मान देने के लिए। सादर"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह एक से बढ़कर एक बोनस शेर। वाह।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"छंद प्रवाह के लिए बहुत बढ़िया सुझाव।"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"मानव के अत्यधिक उपभोगवादी रवैये के चलते संसाधनों के बेहिसाब दोहन ने जलवायु असंतुलन की भीषण स्थिति…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" जलवायु असंतुलन के दोषी हम सभी हैं... बढ़ते सीओटू लेवल, ओजोन परत में छेद, जंगलों का कटान,…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी है व्योम में, कहते कवि 'कल्याण' चहुँ दिशि बस अंगार हैं, किस विधि पाएं त्राण,किस…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"भाई लक्षमण जी एक अरसे बाद आपकी रचना पर आना हुआ और मन मुग्ध हो गया पर्यावरण के क्षरण पर…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service