For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हैं दरख़्त जाने कितने , पर कहीं नही है साया , 

मेरी ज़िंदगी में यारों , ये क्या मुकाम आया |

बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,

इस वक़्त के दरिया में ,इक  ऐसा तूफान आया |

फुटपाथ पर सड़क के , कड़ी ठंड मे ठिठुर के ,

सोया जो रात में तो , रोटी का ख्वाब आया |

वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,

मै तो लापता हूँ कब सेये खत कहाँ से आया |

ये ग़ज़ल नहीं है यारों,   ये तलाश है उसी की,

जिसे आज तक है 'शेखर ', बस ख्वाब मे ही पाया |

मौलिक एवं अप्रकाशित 

अरविंद भटनागर ' शेखर'

Views: 549

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 26, 2013 at 4:02pm

आदरणीय अरविंद जी लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर सुन्दर बन पड़े हैं खास कर ये शेर अधिक पसंद आया, ग़ज़ल पर मेरी ओर बधाई स्वीकारें.

फुटपाथ पर सड़क के , कड़ी ठंड मे ठिठुर के ,

सोया जो रात में तो , रोटी का ख्वाब आया |

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 8:20pm

आ0 अरविन्द भाई जी,  सादर प्रणाम!   वाह! वाह!  बेहद सुन्दर गजल प्रस्तुति के लिए तहेदिल से बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 2:05pm

हैं दरख़्त जाने कितने , पर कहीं नही है साया , 

मेरी ज़िंदगी में यारों , ये क्या मुकाम आया |        क्या बात है अरविन्द जी बहुत् मन्मोहक भीी भीनी गज़ल  . बधाई .

Comment by ARVIND BHATNAGAR on August 25, 2013 at 1:49pm

आप सभी को हौसला अफज़ाई का शुक्रिया | अभी OBO पर नया हूँ , इसके तौर तरीके सीखने की कोशिश कर रहा हूँ | आशा है जल्दी ही आप लोगो से OBO के द्वारा विचारों का आदान प्रदान करने लगूंगा | आप सभी को मेरी हार्दिक शुभ कामनाएँ|

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 25, 2013 at 1:31pm

बेहतरीन ,,

वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,

मै तो लापता हूँ कब सेये खत कहाँ से आया |,,आपको जिसकी तलाश है उसने आपको तलाश लिया ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on August 25, 2013 at 10:01am

बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है। आपको हार्दिक बधाई! कृपया बहर का भी जिक्र किया करें जिससे पाठक को शिल्प समझने में आसानी होती है।

Comment by annapurna bajpai on August 24, 2013 at 11:01pm
आदरणीय अरविंद जी बहुत बढ़िया गजल के लिए बहुत बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 10:49pm

सुन्दर , मार्मिक गज़ल , अरविन्द भाई , बधाई !!

बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,

इस वक़्त के दरिया में ,इक  ऐसा तूफान आया |----------------- वाह क्या बात है !!

Comment by रमेश कुमार चौहान on August 24, 2013 at 10:07pm

बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,

इस वक़्त के दरिया में ,इक  ऐसा तूफान आया |

सुंदर मार्मिक  पंक्ति शेखरजी आपके भाव एवं कलम को नमन

Comment by D P Mathur on August 24, 2013 at 8:03pm

वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,

मै तो लापता हूँ कब सेये खत कहाँ से आया |

क्या बात है शेखर जी आप तो छा गये, आपको बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service