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वज्न - 2122 1122 22

 

महफिलें यूँ ही सजाये रखना

हौसला अपना बनाये रखना

 

चाँद के पहलू में अन्धेरा है

इन चिरागों को जलाये रखना

 

रविशे-आम आज हरीफ़ाना है

संग हाथों में उठाये रखना 

 

अपनी यादों के वही दिलकश पल

इन निगाहों में छिपाये रखना

 

दरमियां फूलों के गुज़रो तुम तो

गुलचीं से खुद को बचाये रखना

 

(हरीफ़ाना= दुश्मनों सा. संग= पत्थर

गुलचीं= फूल तोड़ने वाला)

 

-मौलिक अप्रकाशित*

 

*संशोधित

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Comment by Abhinav Arun on August 7, 2013 at 5:49pm

भा गयी ग़ज़ल श्री शिज्जू जी

चाँद के पहलू में अन्धेरा है

इन चिरागों को जलाये रखना

बहुत बधाई आपको

Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 12:03am

भाई जे आपने जो बहर ले ली है उसमें लय का अटकाव निश्चित है ...
इस ग़ज़ल को इस मात्रा के अनुसार कर लें तो ग़ज़ल गुरुसत हो जायेगी
२१२२ / ११२२ / २२
या
२१२२ / १२१२ / २२
लय में आपके कई मिसरे इन्हीं दो बहर पर आ रहे हैं मगर आपको एक को चुनना होगा ....


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 26, 2013 at 9:56am

वीनस जी आपका आभार जो आपने ग़ज़ल पसंद किया,

//कुछ मिसरे आपकी दी हुई मात्रा से भटक रहे हैं .//

शायद आपका इशारा दूसरे शे'र और मकते की तरफ है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 26, 2013 at 9:37am

अजय जी आपका आभार

Comment by वीनस केसरी on July 26, 2013 at 3:52am

बहुत खूब
शानदार अभिव्यक्ति

कुछ मिसरे आपकी दी हुई मात्रा से भटक रहे हैं ...
पुनः विचार कर लीजिए

Comment by ajay yadav on July 21, 2013 at 12:23pm

आदरणीय सादर अभिवादन 

"महफिलें यूँ ही सजाये रखना

हौसला अपना बनाये रखना"......................सुंदर पंक्तियाँ 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 20, 2013 at 10:12pm

केतन जी आपका आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 20, 2013 at 10:11pm

शुक्रिया प्रियंका जी जो आपने मेरी इस रचना को पसंद किया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 20, 2013 at 10:10pm

आपकी इस तारीफ के लिए गीतिका जी बहुत बहुत धन्यवाद, निगाहे-मेह्र कायम रखें.

Comment by Priyanka singh on July 19, 2013 at 9:33pm

bahut khub...badhaayi

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