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यूं ही बचपन गया शरारत में

यूं  ही बचपन गया शरारत  में
औ' जवानी गयी  मुहब्बत  में

और जो वक़्त जिंदगी के बचे
वो भी गुज़रे फ़क़त तिजारत में  

बादे मुश्किल मिले जो पल वो भी
हो गए रायगाँ शिकायत में

मुफ्लिसों को भला  बुरा  कहना
है शुमार आज सबकी आदत में


फूल बेलपत्र के अलावा शिव
जान  मांगे है अब ज़ियारत में


फ़ासला तू औ' मैं का जब न मिटे
तो मज़ा ख़ाक है मुहब्बत में


गाँव से वो कपास की कतरन
जाके चुनता है शह्रे सूरत में


वो ही होगा वजीर कल, जो कि
आज है राहजन की शोहबत में

.

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on July 11, 2013 at 2:01am

सुशील जी बहुत दिन के बाद किसी ग़ज़ल में कतअ पढ़ रहा  हूँ अब तो इसका प्रचलन ही नहीं रहा ....

आग के अशआर दमदार रहे ..

इस शेर के उला पर बहर के हवाले से नज़रे सानी फारमा लीजिए ...

फूल बेलपत्र के अलावा शिव
जान  मांगे है अब ज़ियारत में

Comment by Sushil Thakur on July 8, 2013 at 12:04pm

Thanks Dr sab sahi rukn diya hai aapne. aap to aruz ke bhi dr. hai.

 Shukriya Geetika jee, aapki komal bhawnaaoo ka me tahe dil se qadr karta hoo.

Jitendra bhai ko dhanyawad meri hosala afjai ke liye.

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 7, 2013 at 9:52pm
आदरणीय सुशिल ठाकुर जी 
 
वाह वाह वाह , क्या बात हैं . 
फाइलातुन मुफ़ाइलुन  फेलुन 
फाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन 
 
Comment by वेदिका on July 7, 2013 at 6:09am

ये कहूँगी की कुछ भी कह लीजिये किन्तु ये मत कहिये //यूं  ही बचपन गया शरारत  में // ,, शरारत केवल यूँ ही जाने की चीज तो नही,, इन शरारतो ने ही तो अब तक बचपन की यादे ताज़ा रखी है, जो हमे यदाकदा हंसा देती है,, वरना समझदारी में तो रोना ही रोना है!

बहुत ही अच्छा रचना कर्म ,, रचना पर हार्दिक बधाईया!

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 7, 2013 at 12:54am
"मुफ्लिसों को भला बुरा कहना है शुमार आज सबकी आदत में"...वाह! आदरणीय..शुशील जी, बहुत खूब,, सच सभी की आदत में है...""फ़ासला तू औ' मैं का जब न मिटे तोमज़ा ख़ाक है मुहब्बत में""....बहुत ही खूबसूरत, रचना पर हार्दिक बधाईयां

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