For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राह के वो हाशिये थे.....

राह के वो हाशिये थे एक पल में हट गये 
रास्ते चौड़े हुए तो पेड़ सारे कट गये 


एक है चेहरा हमारा और खूं का रंग भी 
क्या रही मज़बूरी जो हम मज़हबों में बंट गये 


ग़मज़दा हूँ मैं कि मेरे पैर में जूते नहीं 
क्या गुज़रती होगी उसपे पांव जिसके कट गये 


न रहे दादा न दादी जो रटाये राम- राम 
देखकर माहौल घर का, तोते गाली रट गये 


रिज्क़ की तंगी कुछ ऐसी हो गई अब गाँव में 
औरतें तो रह गईं पर मर्द काफी घट गये 


ज़िन्दगी के क़ीमती लम्हे मिले थे जो हमें 
कुछ तकब्बुर और कुछ हिर्सो हवस में कट गये 


मक्खियों को देखकर सीखा है 'साहिल' ने बहुत 
जिस तरफ़ सत्ता की देखी चाशनी, वो सट गये 

.
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 411

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on July 15, 2013 at 12:11am

रिज्क़ की तंगी कुछ ऐसी हो गई अब गाँव में 
औरतें तो रह गईं पर मर्द काफी घट गये 


वाह वा
कवाफ़ी को जिस शानदार अंदाज़ में निभाया गया है उसकी जो तारीफ़ की जाए कम होगी ...
एक और बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरो दाद कबूल करें .....

Comment by vijay nikore on July 13, 2013 at 10:32am

//ग़मज़दा हूँ मैं कि मेरे पैर में जूते नहीं 

क्या गुज़रती होगी उसपे पांव जिसके कट गये //

बहुत ही सुन्दर खयाल पेश किया है, आदरणीय। बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by बृजेश नीरज on July 12, 2013 at 4:56pm

आदरणीय इस सुन्दर प्रयास के लिए आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय अनन्त जी के कहे पर ध्यान दें।
सादर!

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2013 at 12:02pm

आदरणीय सुशील जी आपने ग़ज़ल की बहर २१२२, २१२२, २१२२, २१२ रखी है, किन्तु कुछ शे'र बहर से भटके हुए हैं. एक बार पुनः देख लें जैसे :- बहरहाल प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

एक है चेहरा हमारा और खूं का रंग भी 
क्या रही मज़बूरी जो हम मज़हबों में बंट गये  ... ये शेर बहर में नहीं है.

CTRL + Q to Enable/Disable GoPhoto.it
CTRL + Q to Enable/Disable GoPhoto.it
Comment by Sumit Naithani on July 12, 2013 at 9:51am

sunder 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2013 at 9:43am

सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० सुशील जी 

यथार्थ बखान करते कई अशआर बहुत पसंद आए ..........हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service