आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में
हैरतज़दा खड़ा हूँ नक़ाबों के शह्र में
आलूदा है फज़ाए बहाराँ भी इस क़दर
खुशबू नहीं नसीब गुलाबों के शह्र में
तहज़ीबे कोहना और तमद्दुन नफासतें
आया हूँ सीखने में नवाबों के शह्र में
ऐसी हसीं वरक़ को यहाँ देखता है कौन
हर सम्त जाहेलां है किताबों के शह्र में
बेहोश होने का न गुमां हमको हो सका
हर शख्स होश में है शराबों के शह्र में
चेहरे पे सादगी है तो जुल्फें सुफैद हैं
ये कौन आ गया है खिज़ाबों के शह्र में
अल्लाह वाले खौफज़दा होते ही नहीं
नेकी के शहर में, न अज़ाबों के शह्र में
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
ऐसी हसीं वरक़ को यहाँ देखता है कौन
हर सम्त जाहेलां है किताबों के शह्र में...
वाह
जिंदाबाद भाई जिंदाबाद
मअयारी ग़ज़ल कही है .... मज़ा आ गया
आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में
हैरतज़दा खड़ा हूँ नक़ाबों के शह्र में... बहुत ही सुंदर गजल आदरणीय .. हार्दिक बधाई आपको
वाह!
बेहद ही सुंदर गजल!!
एक निवेदन करना चाहती थी आपकी गजल के माध्यम से, जो की पहले भी कई बार किया जा चुका है, "अगर गजल की प्रस्तुति के साथ साथ में बहर भी दे दी जाये, तो हम जैसे नौसिखियों का बहुत भला होगा!!
bahut sundar gajal
चेहरे पे सादगी है तो जुल्फें सुफैद हैं
ये कौन आ गया है खिज़ाबों के शह्र में
waah
चेहरे पे सादगी है तो जुल्फें सुफैद हैं
ये कौन आ गया है खिज़ाबों के शह्र में...............बहुत खूब!
आदरणीय सुशिल साहिल
तहज़ीबे कोहना और तमद्दुन नफासतें ---// इसमें और की जगह शायद 'ओ' आना था. टंकन की ग़लती लगती है
आया हूँ सीखने में नवाबों के शह्र में
सुंदर रचना
बहुत खूबसूरत गज़ल पेश की है आ० सुशील ठाकुर जी
ह्रदय से बहुत बहुत बधाई
वाह भाई जी वाह-
सादर बधाइयां -
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