For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रूठे घर में मानमनौव्‍वल/के दीपों को पलने दो

रूठे घर में मानमनौव्‍वल

के दीपों को पलने दो

बहुत हो चुकी

टोका-टोकी

लस्‍टम-पस्‍टम

जीवन झांकी

बंद गली को

चौराहों से

गलबहियां दे

चलने दो

कोरी रातों में कलियों को

पल-दो-पल तो खिलने दो

अंधेरे में

डूबे घर भी

हमें देख

सकुचाते हैं

कल तक लगते

थे जो अपने

अब बरबस

डर जाते हैं

जंजीरों में बंधे बहुत अब

पंख जरा तो मलने दो

आओ हम तुम

चैती गाएं

चौसर खेलें

कुछ भसियाएं

बहुत हो चुका

सूखा सावन

फागुन को

कुछ जलने दो

प्रभु-प्रिया हैं पास खड़े अब

मंदिर पट तो खुलने दो

चलो करें

कुछ सैर सपाटा

छोड़ शहर का

ये सन्‍नाटा

चूल्‍हे-चौके

थके-थके से

उन्‍हें बुतों में

ढलने दो

पानी-पूरी सी रातों में

कुछ तारों को गलने दो

(पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 711

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on March 11, 2013 at 6:39pm

सादर आभार आदरणीय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 9, 2013 at 2:43am

आदरणीय राजेश झाजी, आपका कल्पनालोक अत्यंत विस्तृत है. जिसमें भावनाएँ हैं, उनके लिये शब्द हैं, उन शब्दों के अपने अर्थ हैं. सारा कुछ प्रवहमान है, गेय है. यह अवश्य है कि गेयता एक श्रेणीबद्ध आयोजन है जिसे आपका कवि-हृदय अक्सर सरसरी आखों से देखता हुआ फलांगता आगे निकल जाता है. उत्सवधर्मी रचनाएँ शायद ऐसे ही जीती हैं. ..

आओ हम तुम
चैती गाएं
चौसर खेलें
कुछ भसियाएं
बहुत हो चुका
सूखा सावन
फागुन को
कुछ जलने दो

बुझियउ त, हमर मोनक विस्तारम ई पंक्तिटा मुदा पइठ गेल. प्रवाहक उत्साह एनाही बनल रहबाक चाही.. . आगा फेर आगू..

धन्य-धन्य

Comment by राजेश 'मृदु' on March 8, 2013 at 12:28pm

आप सभी सुधी जनों का हार्दिक आभार, आपके स्‍नेह की धारा में हम हमेशा ही भंसियाते रहें यही कामना है, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on March 8, 2013 at 12:27pm

भसियाना देशज शब्‍द ही है जिसके दो अर्थ हैं 1. विसर्जन के और 2. धारा के साथ बिना प्रयास के बहते जाना,  यहां धारा के साथ स्‍वच्‍छंद रूप से बहते जाने के लिए इसे रखा है ।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 8, 2013 at 12:18pm

बहुत सुंदर रचना आदरणीय राजेश जी .....................बहुत सुंदर तरीके से देशज शब्दों को गूथा है आपने
बेहतरीन अंदाज भाई वाह
बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Arun Sri on March 8, 2013 at 11:47am

कमाल की कविता ! प्रगतिशीलता के इस दौर में जरूरत है ऐसे ही प्रयास की जो संभाल सके लड़खड़ाते जीवन को ! बहुत अच्छी रचना ! कमाल की कल्पनाशीलता , शब्द संयोजन !
//भसियाएं// शायद मैथिलि भाषा का शब्द है ! जो "सठिया जाने" के बाद कि स्थिति है संभवतः ! स्मृति लोप का प्रारंभिक चरण ! बूढ़े जब बच्चे जैसे होने लगते हैं !

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 8, 2013 at 8:51am

चलो करें

कुछ सैर सपाटा

छोड़ शहर का

ये सन्‍नाटा

चूल्‍हे-चौके

थके-थके से

उन्‍हें बुतों में

ढलने दो

पानी-पूरी सी रातों में

कुछ तारों को गलने दो.......वाह! कमाल की कल्पनाशीलता.

आदरणीय राजेश झा जी सादर, इतनी सुन्दर भावपूर्ण रचना पर तहे दिल से बधाई स्वीकारें.

Comment by वेदिका on March 7, 2013 at 10:46pm

आदरणीय राजेश कुमार झा जी!
सुन्दर कविता ... देशज शब्दों के प्रयोग के साथ। आपने लिखा "कुछ भसियाएं" इसका आशय नही समझ आया। क्या आप बतियाए लिखना चाहते थे?
शुभकामनायें
सादर वेदिका

Comment by बृजेश नीरज on March 7, 2013 at 8:13pm

बहुत ही प्रभावी! देशज शब्दों का बहुत ही सुन्दर प्रयोग!

Comment by vijay nikore on March 7, 2013 at 6:15pm

आदरणीय राजेश जी:

 

कविता के कोमल भाव छू गए।

बधाई।

 

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"एक छोटा सा अंतर है किसी को अपना उस्ताद या गुरु मानते हुए संबाेधित करने और मंच पर किसी…"
21 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
44 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने गिरह भी ख़ूब है बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
46 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय दयाराम जी नमस्कार एक ग़ज़ल क ही आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
47 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इतनी मुश्किल भी नहीं सच्ची कहानी लिखना एक राजा की मुहब्बत में है रानी लिखना उसकी तारीफ़ में जो…"
49 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
50 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय लक्ष्मण जी  बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
51 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय Aazi जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
51 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय गजेन्द्र जी बहुत शुक्रिया आपका बेहतरी का प्रयास करूंगी सादर"
51 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
52 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय दयाराम जी  बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
52 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश जी नमस्कार  अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिए गिरह भी ख़ूब  सादर"
54 minutes ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service