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मरासिम उनसे था मेरा सूफियाना सा
गा भी लेते थे हम
सुना भी लेते थे हम
इबादत उनकी किया करते थे
खुदा से रूठ जाते थे
मना भी लेते थे हम
वक़्त-ए-फुरकत
उनसे वादा किया था
एक कतरा न गिरेगा कभी
ये आब-ए-जमजम
मेरी आँखों से
तो पाकीजा आब से भरे ये प्याले
रोज भरते तो हैं
पर छलकते कभी नहीं
और लोग हमें संगदिल सनम कहते हैं
ये कैसा वादा लेकर वो गए हैं
उस दिन से लेकर आज तक
जोड़ रहा हूँ
ग़मों के कंकर
जो मिलते हैं हर उस जगह
जहां उनकी यादें चली आती हैं
बिन बुलाये
अब ये कंकर जोड़ते जोड़ते
दर्द कोह होता जा रहा है
दिल में उठती हैं मौजें
पर डुबा नहीं पाती
इस कोह को
फिर भी तकिया सूखा ही रहता है
भीगने को बेताब
चादरों की सलवटें चीखती हैं
हर सुबह
तड़प उनके खोने की
कौन जानता है
उनसे बेहतर
पर वो हैं के आते नहीं
और वादा खिलाफी
हमें नहीं आती
सिखा दिया है
इंतज़ार करना
पलकें बिन झपके
दरवाजे पे टकटकी लगाए रहती हैं निगाहें
सन्नाटे चीखते हैं कानों में
कहते हैं भूल जाऊं
कमबख्त कहीं के
उनसे क्या कहूँ
उनको तो कब का भूल चुका हूँ में
पर उनकी याद बेशर्म है
रोज चुपके से मिलने चली आती है
और तुमको लगता है
मैं कुछ भी नहीं भूला
चलो चलो
तन्हाई आज फिर से मेरा
इंतज़ार कर रही होगी
बहुत मुश्किल होता है
इंतज़ार करना
मुझसे बेहतर कौन जानता है ये
बेचैनी होती है
इंतज़ार में
चलो चलो कहीं तन्हाई भी छोड़ गयी
तो मैं फिर तन्हा हो जाऊँगा
उसका कलाम किससे कह पाऊंगा
के "मरासिम उनसे था मेरा सूफियाना सा "

....संदीप पटेल "दीप".........

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Comment by Yogi Saraswat on July 4, 2012 at 4:55pm
तन्हाई आज फिर से मेरा
इंतज़ार कर रही होगी
बहुत मुश्किल होता है
इंतज़ार करना,|
तन्हाई से है जन्मों का रिश्ता ,
कभी तन्हाई को और कभी मुझे 
रहता है इक दूजे का इंतज़ार ,अति सुंदर रचना , बधाई
Comment by Rekha Joshi on July 4, 2012 at 12:07pm

संदीप जी ,

तन्हाई आज फिर से मेरा
इंतज़ार कर रही होगी
बहुत मुश्किल होता है
इंतज़ार करना,|
तन्हाई से है जन्मों का रिश्ता ,
कभी तन्हाई को और कभी मुझे 
रहता है इक दूजे का इंतज़ार ,अति सुंदर रचना , बधाई 
Comment by आशीष यादव on July 4, 2012 at 1:26am

रचना की वाह और तड़प की आह दोनो एक साथ स्वीकारिये।

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 3, 2012 at 11:11pm

भाई संदीप पटेल बहुत बहुत बहुत ही बेहेतरिन है ..सच्चे प्यार को परिभाषित किया है

प्यार को सुफियाना रूप दिया है ...तडपन  की टीस..की प्रतीति कराती रचना 

सादर बधाई

Comment by Bishwajit yadav on July 3, 2012 at 8:58pm
उनको तो कब का भूल चुका हूँ में
पर उनकी याद बेशर्म है
रोज चुपके से मिलने चली आती
बहुत सुन्दर भाई टच माई दिल

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