For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ खरी-खरी 

(१)
घर के बीच खिंच रही दीवार 
बुजुर्गों के दिलों में पड़ी दरार  
कैसा दर्दनाक मंजर है किसे देखूं |
(२)
तेरे इस गूंगे घर से तो 
खंडहर  ही बेहतर हैं 
वहां कम से कम पत्थर तो बाते करते हैं |
(३)
तुम लाये हो इक बवंडर छिपा के अपने सीने में 
एक बार तो ये सोचा होता 
ताश के पत्तों से बना है मेरा घर|
(४)
बड़ी हसरतों से जमा किये थे शबनम के मोती 
स्वर्ण रथ पर आया लुटेरा 
सब चुरा के ले गया |
(५)
मेरे अपने ही फूलों ने 
झुका दिया इस डाली को 
वर्ना मेरी गर्दन ने कभी झुकना नहीं सीखा |
(६)
खुद को जलाकर जग को देते हो उजाला 
फिर भी एक नजर तुझे कोई देखना नहीं चाहता  
कोई तुझसा बेचारा नहीं देखा | 
(७)
ऐ तितली जरा संभल के उड़ना 
घात में बैठे है कांटे फूलों की आड़ में 
चीर देंगे तेरे कोमल पर 

Views: 592

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 30, 2012 at 2:11pm

महिमा जी बहुत सुखद प्रतिक्रिया दी है आपने आभारी हूँ 

Comment by MAHIMA SHREE on April 30, 2012 at 1:42pm
तुम लाये हो इक बवंडर छिपा के अपने सीने में
एक बार तो ये सोचा होता
ताश के पत्तों से बना है मेरा घर|
आदरणीया राजेश दी , नमस्कार
लाजवाब है ..........आपकी कुछ खड़ी खड़ी .......
बधाई स्वीकार करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 30, 2012 at 1:08pm
  
शलेन्द्र कुमार जी हार्दिक आभार खरी खरी की सराहना हेतु  
Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 30, 2012 at 12:31pm

सुन्दर सशक्त रचना आदरणीया  राजेश कुमारी मैम  हार्दिक बधाई इस रचना के लिए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 29, 2012 at 5:35pm

बहुत बहुत शुक्रिया प्रदीप कुमार कुशवाह जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 29, 2012 at 2:22pm

तेरे इस गूंगे घर से तो खंडहर ही बेहतर हैं वहां कम से कम पत्थर तो बाते करते हैं |

bahut khoob kaha aapne. badhai. aadarniya mahodaya ji saadar abhivadan ke saath.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 29, 2012 at 8:26am

सुरेंदर कुमार शुक्ल जी सराहना के लिए हरदे से आभारी हूँ 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 28, 2012 at 4:33pm
ऐ तितली जरा संभल के उड़ना 
घात में बैठे है कांटे फूलों की आड़ में 
चीर देंगे तेरे कोमल पर 
तेरे इस गूंगे घर से तो 
खंडहर  ही बेहतर हैं 
वहां कम से कम पत्थर तो बाते करते हैं |
आदरणीया राजेश कुमारी जी ..बहुत सुन्दर जज्बात और सटीक ..सचेत करते हुए .....जय श्री राधे ..भ्रमर ५ 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 27, 2012 at 9:54pm

बहुत हार्दिक    आभार प्राची जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 27, 2012 at 3:38pm


अम्बरीश जी आपकी अमूल्य टिपण्णी सर आँखों पर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आपको।"
8 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय रिचा यादव जी, तरही मिसरे पर अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकार करें।"
12 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, तरही मिसरे पर अति सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
16 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"ग़ज़ल - 2122 1122 1122 22 काम मुश्किल है जवानी की कहानी लिखनाइस बुढ़ापे में मुलाकात सुहानी लिखना-पी…"
23 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इतना काफ़ी भी नहीं सिर्फ़ कहानी लिखना तुम तो किरदार सभी के भी म'आनी लिखना लिख रहे जो हो तो हर…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"२१२२ ११२२ ११२२ २२ बे-म'आनी को कुशलता से म'आनी लिखना तुमको आता है कहानी से कहानी…"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मैं इस मंच पर मौजूद सभी गुनीजनों से गुज़ारिश करता हूँ कि ग़ज़ल के उस्ताद आदरणीय समर गुरु जी को सह…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"2122 1122 1122 22 इतनी मुश्किल भी नहीं सच्ची कहानी लिखनाएक राजा की मुहब्बत में है रानी लिखना…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"भूलता ही नहीं वो मेरी कहानी लिखना।  मेरे हिस्से में कोई पीर पुरानी लिखना। वो तो गाथा भी लिखें…"
12 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

"मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२*****पसरने न दो इस खड़ी बेबसी कोसहज मार देगी हँसी जिन्दगी को।।*नया दौर जिसमें नया ही…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर

1222-1222-1222-1222जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया…See More
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service