For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता -

कवि कहते हैं,

होना चाहिए प्रेम प्रतिज्ञा अपने महबूब के प्रति.

वर्णन हो, उसके अंग-प्रत्यंग का

नख से शिख तक.

कलात्मकता निहित हो,

उसके सुखमय आलिंगन में !

परन्तु,

कविता एक परम्परा भी है,

मेहनतकशों के प्रति प्रतिबद्धता का भी है.

जहां यह सब नहीं होता.

कविता कल्पना में नहीं

थाने के लाॅकअप में भी हो सकता है,

जहां थानेदार की बूट लिखती है कविता, हमारे कपाड़ पर.

जहां गर्दन तोड़कर लुढ़का दी जाती है

और बन जाती है कविता.

यह शासक वर्ग -

रोज लिखती है कविता,

भूख से बिलबिलाते लोगों के मूंह में

रायफल की नाल ठंूस कर.

आईयेे -

मैं भी सुनाता हूँ एक कविता,

भूख से बिलबिलाते लोगों के हिंसक प्रतिरोध का.

मैं कवि नहीं, भुक्तभोगी हूँ.

नहीं ! मैं तो निमित्त मात्र हूँ,

भूख से बिलबिलाते लोगों का

एक प्रतिनिधि मात्र हूँ...

कवि चिल्लाते हैं -

यह कविता नहीं है...

पर, चीखने दो उसे,

नहीं चाहिए मुझे उसका नपुंसक समर्थन.

मैं तो भुक्तभोगी हूँ,

मैं अपनी आवाज हूँ,

इसे तुम कोई भी नाम दो,

मैं ही भविष्य हूँ -

तुम्हारे आने वाली कल की कविता का.

Views: 532

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rohit Sharma on April 20, 2012 at 11:46am

रचना पसंद करने के लिए आप सबों को धन्यवाद

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2012 at 11:21pm

मैं अपनी आवाज हूँ,

इसे तुम कोई भी नाम दो,

मैं ही भविष्य हूँ -

तुम्हारे आने वाली कल की कविता का.

bahut sundar, badhai.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 17, 2012 at 11:46pm

कविता कल्पना में नहीं

थाने के लाॅकअप में भी हो सकता है,

जहां थानेदार की बूट लिखती है कविता, हमारे कपाड़ पर.

जहां गर्दन तोड़कर लुढ़का दी जाती है

और बन जाती है कविता.

यह शासक वर्ग -

रोज लिखती है कविता,

भूख से बिलबिलाते लोगों के मूंह में

रोहित जी बहुत खूब .सटीक ..कविता तो कहीं भी जन्म ले लेती हैं सुख में गम में दर्द में भीड़ में मेले में झमेले में ... ...खूबसूरत ...जय श्री राधे 

मुख्य पृष्ठ पर आप के अक्षर बड़े हलके लग रहे थे श्वेत ...

भ्रमर ५ 
Comment by Abhinav Arun on April 17, 2012 at 1:13pm

मैं भी सुनाता हूँ एक कविता,

भूख से बिलबिलाते लोगों के हिंसक प्रतिरोध का.

मैं कवि नहीं, भुक्तभोगी हूँ.

नहीं ! मैं तो निमित्त मात्र हूँ,

भूख से बिलबिलाते लोगों का

एक प्रतिनिधि मात्र हूँ...

bahut sundar pravaah maan kavita rohit ji hardik badhai aapko !!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 17, 2012 at 12:21pm

क्या ख़ूब भाव प्रस्तुत किये आपने श्री रोहित जी! बधाई आपको!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2012 at 8:16pm

कवि कह कुछ रहा है किन्तु कहना कुछ चाहता है, इस अभिव्यक्ति पर क्या कहू  , बहुत खूब !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service