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सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार. आदरणीय योगराज भईया द्वारा ओ बी ओ में प्रस्तुत विलुप्त प्राय छंद "छन्न पकैया" सचमुच मन को भाता है... तभी से  -

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छन्न पकैया, छन्न पकैया, देख देख ललचाऊं,

छंद सुहावन मनभावन ये, मैं भी कुछ रच पाऊं ||

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सादर प्रस्तुत है "छन्न पकैया" पर एक अनगढ़ प्रयास....

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छन्न पकैया, छन्न पकैया, पग पग में भरमाये,

अपने घर की राजनीत को, कोई समझ न पाये ||१||

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छन्न पकैया, छन्न पकैया, पांच बरस का फेरा,

अमावस्य का कैदी बनकर, तडपा जाय सवेरा ||२||

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छन्न पकैया, छन्न पकैया, नाच रही महंगाई,

दिल्ली बैठी ताक रही है, 'श्री - वाहन' की नाईं ||३||

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छन्न पकैया, छन्न पकैया, चारा खा धमकायें,

जाने कब खुश हो पाएंगी, पटना की सब गायें ||४||

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छन्न पकैया, छन्न पकैया, कितने और तिहाडी.

सभी जुटे हैं आज बचाने, अपनी अपनी बाडी ||५||

__________________________________

छन्न पकैया, छन्न पकैया, हेमचिडा था न्यारा,

पंख सुनहरे तोड़ तोड़ कर, करते सब बँटवारा ||६||

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छन्न पकैया, छन्न पकैया, छन्न बजा था चांटा,

रीत पुरातन सीख निकालें, कांटे से अब काँटा ||७||

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छन्न पकैया, छन्न पकैया, बूढा एक पुकारे,

सारा भारत साथ खडा हो, अम्बर में ज्यों तारे ||८||

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छन्न पकैया, छन्न पकैया, बचे न भ्रष्टाचारी,

दिल्ली की संसद पर भैया, जनसंसद हो भारी ||९||

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छन्न पकैया, छन्न पकैया, तीन रंग लहरायें,

विश्व विजयी तिरंगा प्यारा, मिलके सारे गायें ||१०||

__________________________________

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- संजय मिश्रा 'हबीब'

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 7, 2012 at 11:39am

भाई हबीब जी, आदरणीय योगराज जी के प्रयास को आपने इस रचना द्वारा बहुत ही आगे बढाया है, कथ्य और शिल्प बहुत ही बढ़िया लगे बधाई स्वीकार करें |

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on January 4, 2012 at 5:12pm

सर्वादरणीय सौरभ भैया जी, मोहिनी जी, योगराज भईया जी, नीरज जी, धरम भाई जी... आप सब की सराहना उत्साह का संचार कर रही है... अत्यंत आभार आदरणीय दादा मुनि जी का इस मनभावन छंद को पुनर्जीवित कर मंच पर प्रस्तुत करने और एक नई धरातल प्रदान करने हेतु....

छन्न पकैया, छन्न पकैया, छन्न छन्न गिरधारी,

अपनी किरपा रखे सभी पर, सरस्वती महतारी ||

जय ओ बी ओ | जय गिरधारी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2012 at 4:20pm

बहुत सुन्दर और सफल प्रयास ! ’छन्न पकैया’ का कलेवर कितना सजा-निखरा है कि कई विन्दु समाहित होते चले गये  हैं. संजय भाई , आपकी रचना विषय-आयाम के कारण मुग्ध करनेवाली तो है ही, यह पद्य रूप के लिहाज से भी गठी हुई है.  इस हेतु विशेष बधाई.

Comment by mohinichordia on January 4, 2012 at 3:25pm

 छन्न-पैकया  की पकड़  घर की राजनीति से देश की राजनीति तक पहुँच गई ,बेटी की किलकारी को भी स्वर मिल गया |बधाई आदर णीय योगराज प्रभाकर जी को ,सभी सदस्यों को इस विधा  से परिचित कराने के लिये |


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 4, 2012 at 11:04am

छन्न पकैया, छन्न पकैया, झूमूँ, नाचूँ, गाऊँ,

संजय भाई हरेक छंद पे, वारी वारी जाऊँ


प्रिय संजय भाई, इस बेहद दिलकश लोक काव्य विधा पर आपको कलम आजमाई करते देख मन झूम झूम जा रहा है. इतनी प्रसन्नता हो रही है कि ब्यान नहीं कर पा रहा हूँ. विश्वास करें कि मैं एक एक छंद को कई कई बार पढ़ चुका हूँ, लेकिन दिल नहीं भर रहा. आपने जिस संजीदगी से विभिन्न विषयों पर छंद कहे हैं वह अपनी मिसाल आप हैं. दरअसल इस मृतप्राय: विधा को यदि नवजीवन देना है तो ऐसे ही संजीदा प्रयासों की आवश्यकता होगी. १० छंदों में १० अलग अलग रंग और कलेवर लेकर आपनी बात को कहना आपनी प्रौढ़ साहित्यक सोच का परिचायक है. मैं इस सद्प्रयास के आपने तह-ए-दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ.

Comment by धर्मेन्द्र शर्मा on January 3, 2012 at 8:21pm

आदरणीय संजय मिश्रा हबीब जी, आपके इन छन्न पकैया ने तो कमाल कर दिया. एक से बढ़ कर एक. चाहे दूषित राजनीति हो, कुत्सित मानसिकता हो या फिर बढती महंगाई....सभी को अपनी चपेट में ले गयी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये मित्र. जय गिरधारी.

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