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तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

वैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर जावेंगे क्या

आप आ'ला हैं तो हमको हक़ हमारा दीजिये

आपके रहम-ओ-करम पे जीस्त जी पावेंगे क्या

इल्म का अब हाल ये है सोचते हैं नौजवाँ

डिग्रियाँ लेते रहे यूँ ही तो फिर खावेंगे क्या

आप अपने दर्द की बुनियाद भी तो देखिये

दर्द में ये चारागर कोई कमी लावेंगे क्या

दश्त भी वहशत में आ जाये है हिज़्र ऐसी ख़ला

मयकशी से इस ख़लिश में राहतें पावेंग क्या

ज़िंदगी प्यारी है ग़र तो राह से हट जाईये

ख़ुद से डरते हैं जुनूँ में जाने कर जावेंगे क्या

फिर वही दिल की तमन्ना फिर वही दिल की कशिश

हम उसी ग़लती को अबके फिर से दुहरावेंगे क्या

रास्ता रोके खड़ी हैं जाने कितनी आँधियाँ

आप तो झोका हैं अब झोके से घबरावेंगे क्या

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Aazi Tamaam 1 hour ago

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का

देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार का प्रयास किया है अगर सार्थक हो सका हो तो

कौन दे है नौकरी सिर्फ़ इल्म की अस्नाद पर

डिग्रियाँ लेते रहे यूँ ही तो फिर खावेंगे क्या

Comment by Nilesh Shevgaonkar 7 hours ago

आ. आज़ी तमाम भाई,
अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.
जैसे 

इल्म का अब हाल ये है सोचते हैं नौजवाँ

डिग्रियाँ लेते रहे यूँ ही तो फिर खावेंगे क्या... यहाँ इल्म और डिग्री का खाने से सीधा सम्बन्ध नहीं है .. नौकरी न मिलने का रेफरेंस होना था.
दश्त भी वहशत में आ जाये है हिज़्र ऐसी ख़ला.. अलिफ़ वस्ल के बाद भी मिसरा अटकता सा लग रहा है 
दश्त भी वहशत में आए हिज़्र है ऐसी ख़ला
.
बस ऐसे ही 
सादर 
 

Comment by Aazi Tamaam 17 hours ago

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी इस ज़र्रा नवाज़ी का

Comment by Aazi Tamaam 17 hours ago

बहुत शुक्रिया आदरणीय भंडारी जी इस ज़र्रा नवाज़ी का

Comment by surender insan 19 hours ago

आदरणीय आज़ी भाई आदाब।

बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी 23 hours ago

आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए 

कृपया ध्यान दे...

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