For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )

२१२२    २१२२      २१२

गुफ़्तगू चुप्पी इशारा सब ग़लत

बारहा तुमको पुकारा सब ग़लत

 

ये समंदर ठीक है, खारा सही

ताल नदिया वो बहारा सब ग़लत

 

रोज़ डूबे, रोज़ लाया खींच कर

एक दिन क़िस्मत से हारा, सब ग़लत

 

एक क्यारी को लबालब भर दिये

भोगता जो बाग़ सारा, सब ग़लत

 

मान  जायेंगे  ग़लत वो  हैं, अगर

आप जो कह दें दुबारा, सब ग़लत

 

तुम रहे कुछ ठीक, कुछ मैं भी रहा

जो बचा  बाक़ी  हमारा, सब ग़लत

 

एक वो ही ठीक, जो  दिखता नहीं

वो कहे  कर के इशारा, सब ग़लत

************************************ 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

Views: 97

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 20, 2025 at 6:43am

आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 15, 2025 at 6:33pm

आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 15, 2025 at 6:32pm

आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार 

ये समंदर ठीक है, खारा सही

ताल नदिया वो बहारा सब ग़लत - 
इस शेर में मैंने केवल अनुपयोगी ( खारा समंदर प्यासों के लिए ) की स्वीकार्यता और ताल -नदिया और बहार  उपयोगी होते हुए अस्वीकार्यता , जैसी मानसिकता पर  प्रश्न उठाने का प्रयास किया है 
बहारा के स्थान पर  नीर सारा  किया जा सकता था , 

रोज़ डूबे, रोज़ लाया खींच कर

एक दिन क़िस्मत से हारा, सब ग़लत   --   ये हर किसी के लिए है ,  लगातार्र अच्छा करने के बाद एक गलत परिणाम के कारण सभी अच्छाइयां भुला दी  जातीं है 

एक क्यारी को लबालब भर दिये

भोगता जो बाग़ सारा, सब ग़लत..   --  इसमे भी क्यारी - और  लबालब  के बात समझ में आ जाती है , ऐसा मुझे लगता है 
 फिर भी बेहतर को  मैं  हमेशा स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ , अगर आप कुछ सुझाव दें तो स्वागत है |

सादर 



Comment by Ravi Shukla on May 15, 2025 at 3:42pm

आदरणीय  गिरिराज भाई जी आपकी ग़ज़ल का ये शेर मुझे खास पसंद आया बधाई 

तुम रहे कुछ ठीक, कुछ मैं भी रहा

जो बचा  बाक़ी  हमारा, सब ग़लत

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 15, 2025 at 3:28pm

आ. गिरिराज जी 

मैं आपकी ग़ज़ल के कई शेर समझ नहीं पा रहा हूँ.
.

ये समंदर ठीक है, खारा सही

ताल नदिया वो बहारा सब ग़लत... यहाँ समंदर, ताल नदी के साथ बसन्त ऋतु (बहारा) का सम्बन्ध मैं नहीं समझ पा रहा.
.

रोज़ डूबे, रोज़ लाया खींच कर

एक दिन क़िस्मत से हारा, सब ग़लत... किस के बारे में बताया जा रहा है, आप ही स्पष्ट करें.
.

एक क्यारी को लबालब भर दिये

भोगता जो बाग़ सारा, सब ग़लत.... क्या भर दिए ..उससे बाग़ कैसे प्रभावित हो रहा है?
.
एक बहुत उम्दा रदीफ़ और बेहतर ढंग से निभाया जा सकता था. इस ज़मीन की ख़ोज करने के लिए बधाई.
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2025 at 5:00pm

अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2025 at 12:09pm

वाह-वाह आदरणीय भंडारी जी क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है। और रदीफ़ ने तो दीवाना कर दिया।हार्दिक बधाई....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2025 at 5:31pm

आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2025 at 4:37pm

आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की ’नेति-नेति’ के दर्शन से प्रभावित है. इस नजरिये से गजल के सभी शेर सचेत, गंभीर पाठकों को अद्वितीय मायना बताते दिखेंगे, इसमें शक नहीं. 

इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई, आदरणीय. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service