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SudhenduOjha's Blog – June 2016 Archive (5)

(देवी गीत) दे शरण मुझे, कर वरण मुझे हे माँ

दे शरण मुझे,

कर वरण मुझे हे माँ



है जगत तेरी बस छाया

सब कुछ तुझ में है समाया

इस भूल-भुलैया दुनिया में

सब समझ मुझे अब आया



मैं याचक हूँ

नत मस्तक हूँ

कर चरण मुझे

दे शरण मुझे हे माँ



दे शरण मुझे,

कर वरण मुझे हे माँ



हे जग जननी हे माता

त्रैलोक्य तुम्हें है ध्याता

नाम तुम्हारा हे जग माता

तव, कष्ट सभी हर जाता



मैं मूढ़ मति, बिगड़ी है गति

कर स्मरण मुझे

दे शरण मुझे हे माँ



दे शरण… Continue

Added by SudhenduOjha on June 13, 2016 at 12:36pm — No Comments

(देवी सरस्वती वंदना) स्नेह का सागर अनन्तिम प्रेम हो सौहार्द्य हो

स्नेह का सागर अनन्तिम

प्रेम हो सौहार्द्य हो

कातर धरा पर गूँजता सा

तुम मनोहर काव्य हो



दान कर हमें ज्ञान की

तू सम्पदा

धीरज धरें आगे बढ़ें

हे मात देवी शारदा



मन में अटल विश्वास हो

हर पल नया उच्छ्वास हो

विपदा से चाहे हम घिरें हों

आप हरदम पास हों



किस तरह व्यापेगी

हम पर कोई आपदा

दान कर हमें ज्ञान की

तू सम्पदा

धीरज धरें आगे बढ़ें

हे मात देवी शारदा



सुन हे मुक्तिदायिनी

हे मातु… Continue

Added by SudhenduOjha on June 13, 2016 at 12:31pm — 1 Comment

स्वप्न, बच्चों की आँखों में पलना चाहिए : आगया है समय, हमको बदलना चाहिए॥

स्वप्न, बच्चों की आँखों में

पलना चाहिए।

आगया है समय, हमको

बदलना चाहिए॥

जर्जरावस्था है,

बता दो तन को।

उसे, झुक-झुक के

चलना चाहिए॥

 

बदल रहा है अब,

मौसम का मिजाज़।

उन्हें दरख्तों पर

उतरना चाहिए॥

कुछ परिंदे,

सारी हदों को तोड़ते हैं।

बुलंद हौसलों को

करना चाहिए॥

मेरा सच,

दुनिया के सच से ख़ूब है।

‘आप’ को इसे

समझना चाहिए॥

‘निर्भया’ से…

Continue

Added by SudhenduOjha on June 12, 2016 at 7:30pm — 2 Comments

गान मेरा स्वांस है, यह अजब विश्वास है

गान मेरा स्वांस है,

यह अजब विश्वास है

 

दूरियाँ ही दूरियाँ हैं

लक्ष्य तक,

तम ही तम है

सूर्य के द्वार तक

 

पाँव में

सर्पदंशी फांस है

गान मेरा स्वांस है,

यह अजब विश्वास है

 

ओस में कागज़ों से

मुस गए हैं आदमी

भय अजब सा लिए घरों में

घुस गए हैं आदमी

 

दीप उज्ज्वल

एक मेरे पास है

गान मेरा स्वांस है,

यह अजब विश्वास है

 

हाशिये से उतर…

Continue

Added by SudhenduOjha on June 12, 2016 at 2:32pm — 2 Comments

कह के तो नहीं गया था, -पर सामान रह गया था

कह के तो नहीं गया था,

-पर सामान रह गया था

 

समय का ऐसा सैलाब,

-वजूद भी बह गया था

क्या आए हो सोच कर,

-हर चेहरा कह गया था

बाद रोने के यों सोचा,

-घात कई सह गया था

गिरा, मंज़िल से पहले,

-निशाना लह गया था

पुरजोर कोशिश में थी हवा,

-मकां ढह गया था

तुम आए, खैरमकदम!

-वरक मेरा दह गया था?

 

मौलिक है, अप्रकाशित भी

सुधेन्दु ओझा

Added by SudhenduOjha on June 9, 2016 at 7:30pm — 7 Comments

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