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    औरत

 

मैंने  

औरत बन जन्म लिया

हाँ मैं हूँ

एक औरत 

और औरत ही

बनी रहना चाहती हूँ

क्यूंकि

मैं इक बेटी हूँ

मैं इक बहन हूँ

मैं इक पत्नी हूँ

सर्वोपरि इक माँ हूँ

मैं इक पूरी कौम हूँ

 

एवं

इनसे जुडे हर रिश्ते

की बिन्दू हूँ मैं

वो सभी घूमते रहते हैं

मेरे चारों ओर

एक वृत्त की तरह

 

और मैं

चाहे नाचाहे

जाने अनजाने

जुड़ जाती हूँ

इन सबसे

एक सीधी सरल रेखा से

 

सरल रेखा

जो वृत्त के हर एक बिन्दू को

समेट लेती है अपने में  

इसलिए मैं बिन्दू हूँ

और बिन्दू ही बनी

रहना चाहती हूँ

 

क्योंकि

बिन्दू ही है

औरत रूपी धूरी

जो है सारे वृतों का समास

जिसमे समाया है

पूर्ण तुष्टि का आभास

 

विजयाश्री

१८.०७.२०१३

( मौलिक और अप्रकाशित )

 

 

 

 

 

Views: 616

Comment

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Comment by vijayashree on August 8, 2013 at 9:44pm

हार्दिक आभार 

annapurna bajpai जी 

Comment by vijayashree on August 8, 2013 at 9:41pm

आ. डॉ. प्राची जी 

रचना का आपके द्वारा सराहा जाना ....रचना पूर्ण हुई 

हार्दिक आभार 

Comment by vijayashree on August 8, 2013 at 9:39pm

आ. केतन परमार जी 

रचना  सराहना हेतु शुक्रिया 

Comment by vijayashree on August 8, 2013 at 9:37pm

आ. कुंती मुख़र्जी जी 

आप द्वारा सराहना पाकर बहुत ख़ुशी महसूस हुई ..आभार 

Comment by vijayashree on August 8, 2013 at 9:35pm

हार्दिक आभार

जीतेन्द्र गीत जी 

अजय यादव जी 

Comment by vijayashree on August 8, 2013 at 9:33pm

हौंसलाफ्जाही के लिए शुक्रिया 

आ. बृजेश नीरज जी 

     गीतिका वेदिका जी 

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 7:44pm

adarniya vijayashri ji , is sundar rachna ke liye badhai , aapne bahut hi sudar dhang se aurat ke jajbaton ko prastut kiya hai . badhai .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2013 at 9:58am

इनसे जुडे हर रिश्ते

की बिन्दू हूँ मैं

वो सभी घूमते रहते हैं

मेरे चारों ओर

एक वृत्त की तरह...............ये धुरी सा जीवन होना अपने आप में एक गौरव है.

सुन्दर भाव 

हार्दिक बधाई आदरणीया विजयाश्री जी 

Comment by Ketan Parmar on July 22, 2013 at 7:28pm

मैं इक पूरी कौम हूँ

bahut hi sachi baat kahi aapne

na jaane ye behra samaj kab isko sweekarega

aur bhrud hatya jaisa ye ghor paap mere desh

se dur kahi bahut dur kahi kho jayega

Comment by Ketan Parmar on July 22, 2013 at 7:26pm

sunder mam daad sweekare

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