२२१/२१२२/२२१/२१२२
हँसना सिखाया हमने आँखों के आँसुओं को
सम्बल दिया है हरपल कमजोर बाजुओं को।१।
*
कहती है रूह उन की बलिदान जो हुए थे
पहचान कर हटाओ जयचन्द पहरुओं को।२।
*
शठ लोग अब पहनकर चोला ये गेरुआ सा
करने लगे हैं निशिदिन बदनाम साधुओं को।३।
*
उनको तमस भला क्यों जायेगा ऐसे तजकर
बैठे जो बन्द कर के दिन में भी चक्षुओं को।४।
*
कैसे वसन्त आये पतझड़ को रौंद के फिर
हर डाल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 26, 2021 at 10:19pm — 14 Comments
छीन के उनका पूरा बचपन कैसे कैसे लोग यहाँ
काट रहे हैं अपना जीवन कैसे कैसे लोग यहाँ।२।
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पाने को यूँ नित्य शिखर को साथी देखो दौड़े जो
कर बैठे औरों को साधन कैसे कैसे लोग यहाँ।२।
*
स्वार्थ सधे तो अपनों से भी झूठ छिपाने साथी यूँ
कीचड़ को कह देते चन्दन कैसे कैसे लोग यहाँ।३।
*
साध न पाये यार सियासत उस खुन्नस में देखो तो
बाँट रहे हैं मन का …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 3, 2021 at 6:30am — 12 Comments
१२२/१२२/१२२/१२
न दे साथ जग तो अकेला बना
नया अपने दम पर जमाना बना।१।
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थका हूँ जतन कर यहाँ मैं बहुत
कि घर मेरा तू ही शिवाला बना।२।
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तुझे अपना कहते बितायी सदी
न ऐसे तो पल में पराया बना।३।
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यहाँ सच की बातें तो अपराध हैं
यही सोच खुद को न झूठा बना।४।
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बड़ों के दिलों में भरा दोष अब
स्वयं को तनिक एक बच्चा बना।५।
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बहुत दम है साथी कहन में मगर
नहीं अपने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 27, 2021 at 6:45am — 7 Comments
परत घटे ओजोन की, बढ़े धरा का ताप
काटे हम ने पेड़ जो, बने वही अभिशाप।१।
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छन्नी सा ओजोन ही, छान रही है धूप
घातक किरणें रोक जो, करती सुंदर रूप।२।
*
गोला सूरज आग का, विकिरण से भरपूर
पराबैंगनी ज्वाल को, ओजोन रखे दूर।३।
*
जीवन है ओजोन से, करो न इस को नष्ट
बिन इसके धरती सहित होगा सबको कष्ट।४।
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क्लोरोफ्लोरोकार्बन, है जिन की सन्तान
एसी फ्रिज ये उर्वरक, दें उसको नुकसान।५।
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कर इनका उपयोग कम, करना अच्छा काम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 15, 2021 at 5:30pm — 4 Comments
निज भाषा को जग कहे, जीवन की पहचान
मिले नहीं इसके बिना, जन जन को सम्मान।१।
*
बड़ा सरल पढ़ना जिसे, लिखना भी आसान
पुरखों से हम को मिला, हिन्दी का वरदान।२।
*
हिन्दी के प्रासाद का, वैज्ञानिक आधार
तभी बनी है आज ये, भाषा एक महान।३।
*
जैसे धागा प्रेम का, बाँध रखे परिवार
उत्तर से दक्षिण तलक, एका की पहचान।४।
*
नियमों में बँधकर रहे, हिन्दी का हर रूप
भाषाओं में हो गयी, इस से यह विज्ञान।५।
*
गूँजे चाहे विश्व में, हिन्दी कितना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2021 at 11:08pm — 3 Comments
एक दोहा गज़ल - प्रीत -(प्रथम प्रयास )
छूट गयी जब से यहाँ, सहज प्रेम की रीत
आती तन की वासना, बनकर मन का मीत।१।
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चलते फिरते तन करे, जब तन से मनुहार
मन को तब झूठी लगे, मन की सच्ची प्रीत।२।
*
एक समय जब स्नेह में, जाते थे जग हार
आज सुवासित वासना, चाहे केवल जीत।३।
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भरे सदा ही प्रीत ने, ताजे तन मन घाव
प्रेम रहित जो हो गये, खोले घाव अतीत।४।
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मण्डी जब से देह को, कर बैठे हैं लोग
मन से मन के मध्य में, आ पसरी है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2021 at 11:25am — 6 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
नफरत ने जो दिया वो मुहब्बत न दे सकी
हमको सफलता यार इनायत न दे सकी।१।
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चर्चा प्रलय की करती हैं धर्मों की पुस्तकें
पापों को किन्तु अन्त कयामत न दे सकी।२।
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बूढ़े हुए हैं लोग जो चाहत में स्वर्ग के
कह दो उन्हें कि मौत भी जन्नत न दे सकी।३।
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सोचा था एक हम ही हैं इसके सताये पर
सुनते खुशी उन्हें भी सराफत न दे सकी।४।
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जो बन के सीढ़ी खप गये सत्ता के वास्ते
उनको कफन भी यार सियासत न दे सकी।५।
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चाहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2021 at 8:39pm — 3 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
चिढ़ा मौत से पर हँसा जिन्दगी पर
अँधेरों से डर कर चढ़ा रौशनी पर।१।
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किये कैद बैठा हवाओं को जो भी
बहस कर रहा है वही ताजगी पर।२।
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बना सन्त बैठा मगर है फिसलता
कभी मेनका पर कभी उर्वशी पर।२।
*
खड़े देवता हैं सभी कठघरे में
करो चर्चा थोड़ी कभी बंदगी पर।४।
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सभी खीझते हैं जले दीप पर तो
उठा क्रोध यारो कहाँ तीरगी पर।५।
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अजब देवता जो डरे आदमी से
हुआ द्वंद भारी यहाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 9, 2021 at 9:45pm — 8 Comments
पर्व गुरुओं का मनाते आज हम
और मन के पास आते आज हम।१।
*
पुष्प भावों के चढ़ाते आज हम
शीष श्रद्धा से झुकाते आज हम।२।
*
है मिला हर ज्ञान उन से ही हमें
मान उनको दे जताते आज हम।३।
*
सीख उनकी आचरण में ढालकर
कर्ज किंचित यूँ चुकाते आज हम।४।
*
आब भर कर है सितारों सा किया
हर चमक उन से, बताते आज हम।५।
*
ज्ञान दाता बढ़ बिधाता से हैं तो
यश उन्हीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 4, 2021 at 1:35pm — 13 Comments
वाणी ने आकाश से, किया यही उद् घोष
सँभलो पापी कंस अब,घट से बाहर दोष।१।
*
मथुरा में पर कंस का, घटा न अत्याचार
विवश हुए अवतार को, जग के पालनहार।२।
*
बहन देवकी, तात को, मिला कंस से कष्ट
हरे सकल दुख ईश ने, बन कर पुत्र अष्ट।३।
*
लीला अंशों की तजी, लिया पूर्ण अवतार
स्वयं खुल गये तेज से, कारागृह के द्वार।४।
*
हुई विवश माँ देवकी, तज ने को मजबूर
छोड़ यशोदा गेह में, किया कंस से दूर।५।
*
गोकुल आकर कृष्ण ने, दिया सभी को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 26, 2021 at 12:43pm — 6 Comments
झेलती मझधार अपनी जिन्दगी
कब लगेगी पार अपनी जिन्दगी ।१।
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आटा-चावल शाक-सब्जी के लिए
खप गयी बस यार अपनी जिन्दगी ।२।
*
शब्द इस में है न कोई हर्ष का
बस दुखों का सार अपनी जिन्दगी।३।
*
यूँ कमी उल्लास की होती न फिर
होती गर त्यौहार अपनी जिन्दगी।४।
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हम ने ही जन्जीर बाँधी पाँव को
कैसे ले रफ्तार अपनी जिन्दगी ।५।
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सोच मत आकर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2021 at 7:26am — 4 Comments
सनातन धर्म का गौरव सहज त्योहार है राखी
समेटे प्यार का खुद में अजब संसार है राखी।१।
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हैं केवल रेशमी धागे न भूले से भी कह देना
लिए भाई बहन के हित स्वयं में प्यार है राखी।२।
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पुरोहित देवता भगवन सभी इस को मनाते हैं
पुरातन सभ्यता की इक मुखर उद्गार है राखी।३।
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बुआ चाची ननद भाभी सखी मामी बहू बेटी
सभी मजबूत रिश्तों का गहन आधार है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 12:00am — 21 Comments
२१२२/२१२२/२१२
होंठ हँसते हैं तो मन में पीर है
जिन्दगी की अब यही तस्वीर है।२।
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जो सिखाता था कलम ही थामना
वो भी हाथों में लिए शमशीर है।२।
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झूठ को आजाद रक्खा नित गया
सच के पाँवों में पड़ी जंजीर है।३।
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हाथ जन के वो न आयेगा कभी
उसका वादा सिर्फ उड़ता तीर है।४।
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रास नेताओं से करती है बहुत
रूठी जनता की सदा तक़दीर है।५।
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इक दफ़अ बोला तो फिर छूटा नहीं
झूठ की भी क्या गजब तासीर है।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 6:30am — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
तकरार करते करते ही सावन गुजर गया
मनुहार करते करते ही सावन गुजर गया।१।
*
बाधा मिलन में उनसे जो हालात थे उलट
अनुसार करते करते ही सावन गुजर गया।२।
*
हम खुद में व्यस्त और वो औरों में व्यस्त थे
व्यवहार करते करते ही सावन गुजर गया।३।
*
इस पार हम थे बैठे तो उस पार थे सजन
नद पार करते करते ही सावन गुजर गया।४।
*
उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन
तैय्यार करते …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2021 at 10:00pm — 13 Comments
तुम्हारी कुर्सी का जब है यही आधार नेता जी
कहो फिर देश की जनता लगे क्यों भार नेता जी।१।
*
सिकुड़ती देश की सीमा तुम्हें दिखती नहीं है पर
लगे करने में कुनबे का सदा अभिसार नेता जी।२।
*
जिताकर वोट से जनता बनाती दास से मालिक
जताते क्यों नहीं उस का कभी आभार नेता जी।३।
*
बने केवल धनी का ही सहारा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 7, 2021 at 5:30am — 14 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
शीशा भी लाया आज वो लोहे में ढालकर
बोलो करोगे आप क्या पत्थर उछाल कर।१।
*
जिन्दा ही दफ्न सत्य जो कल था किया गया
लानत समय ने आज दी मुर्दा निकालकर।२।
*
वो बिक गयी है वस्तु सी बेहाल भूख से
अब क्या रखोगे बोलिए उस को सँभालकर।३।
*
केवल किसान जानता मौसम की मार को
हम ने तो देखा बीज न खेतों में डालकर।४।
*
रोटी का मोल जानते बचपन से ही बहुत
माँ ने …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 31, 2021 at 1:18pm — 15 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2021 at 12:30pm — 12 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कहते है लोग प्रीत की हमको समझ नहीं
दुश्मन के साथ मीत की हमको समझ नहीं।१।
*
नफरत ही नित्य बँट रही सरकार इसलिए
आँगन में उठती भीत की हमको समझ नहीं।२।
*
न्योतो न आप मंच से महफिल बिगाड़ने
कविता गजल या गीत की हमको समझ नहीं।३।
*
हम ने सदा ही धूप का रस्ता बुहारा पर
रिश्तों में पसरी शीत की हमको समझ नहीं।४।
*
समझा नहीं है खेल मुहब्बत को इसलिए
इस में ही…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 25, 2021 at 5:17am — 4 Comments
२१२/२१२/२१२ /२२
जिसका अपना यहाँ दायरा कम है
आसमाँ को भी वो मानता कम है।१।
*
मुझसे कहता है क्यों पूजता कम है
देख तुझ में भी तो देवता कम है।२।
*
जो ठहरना नहीं चाहता साथी
उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है।३।
*
बात औरों के सिर डालकर देखो
अपने ईमान को तौलता कम है।४।
*
पास बैठा है लेकिन अबोला ही
कौन कहता है अब फासला कम है।५।
*
हर बुराई …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2021 at 9:43am — 12 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
आँखों में नींद ला के जगाती है रात भर
पाकर अकेला याद जो आती है रात भर।१।
*
कैसे हो चैन देह को मन को सुकून तब
शोलों सी चाँदनी ये जलाती है रात भर।२।
*
होने लगी है जुल्फ जो उसकी सफेद यूँ
आँखों के आँसुओं से नहाती है रात भर।३।
*
बजती हवा से दूर जो मंदिर की घन्टियाँ
आवाज दे के लगता बुलाती है रात भर।४।
*
आता है याद माँ का वो दामन हमें बहुत
जब रात सर्दियों की सताती है रात…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2021 at 7:30am — 5 Comments
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