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Manan Kumar singh's Blog (279)

गजल(ताप मसीहे...)

22 22 22 22
ताप मसीहे हरने आते
प्यार दिलों में भरने आते।1

फूल टपकते झोली-झोली
बेमौसम वे मरने आते।2

पाँव पखाड़ेंगे बाबा के
नेता जी बस धरने आते।3

पाँच बरस अहिवात बनें बस
नेता नर को वरने आते।4

सूखी प्यासी रहती धरती
बादल प्लावित करने आते।5

हार गये जो दाँव जुआरी
जन-मंडल में तरने आते।6

बिन पानी के जो बदरा,वे
बेमतलब के टरने आते।7
@मौलिक व अप्रकाशित

Added by Manan Kumar singh on September 1, 2017 at 10:00am — 10 Comments

गजल(फिर गजल होगी....)

2122 2122 2122 222



फिर गजल होगी भली रुत को जरा आने तो दो

बंद छितराये पड़े हैं,और जुड़ जाने तो दो।1



राख में चिनगारियाँ भी चिलचिलाती रहती हैं,

बस हवा का एक झोंका अब गुजर जाने तो दो।2



भागता जाता बखत भी बेकली के रस्ते से

गुनगुनायेंगी दिशाएँ मीत अब गाने तो दो।3



ज़ोर है तनहाइयों का , मानता, डरना भी क्या?

दूरियाँ क्या साहिलों की?यार अकुलाने तो दो।4



चाहतों का सिलसिला कब माँगने से मिलता है?

तिश्नगी बढ़ती गयी अब और रिरियाने तो… Continue

Added by Manan Kumar singh on August 27, 2017 at 11:27am — 16 Comments

गजल(आज चढ़ता जा रहा पारा बहुत)

2122 2122 212

आज चढ़ता जा रहा पारा बहुत

मौसमों ने भी लिया बदला बहुत।1



बर्फ पिघली,बह गया पानी कहाँ?

हो गया ऊँचा शिखर बौना बहुत।2



फिर चिरागों ने दबोची रोशनी

वक्त गुजरा याद है आता बहुत।3



नाचघर-सी हो गयी संसद भली

भांड ढुलमुल नाचता-गाता बहुत।4



आसमानों में चढ़ीं दुश्वारियाँ

भाव हीरों का लगा पौना बहुत।5



बदगुमानी का सबब हैं कुर्सियाँ

कर्मियों ने भाड़ ही झोका बहुत?6



पार उतरे वे समंदर के,उड़े,

रह गया है… Continue

Added by Manan Kumar singh on August 10, 2017 at 9:30am — 20 Comments

गजल(गदहा बोला......)

22 22 22 22

*---------------*

गदहा बोला--- हाँक लगायें,

आओ लोगों को भड़कायें।1



मोर बना बैठा है राजा

उसकी कुर्सी को खिसकायें।2



हम भी हो सकते हैं मंत्री

आगे बढ़कर हाथ मिलायें।3



भैंस भली,जब अक्ल मरी हो

कुत्तों को माला पहनायें।4



'चीं चीं' कर दे सकती, चलकर,

'सोन चिरैया' को सहलायें।5



'नीति' नहीं अब प्रीत समझती

कितनी बार गले लग जायें?6



'भालू-कालू' !भेद भुलाकर

आओ एक जमात… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 6, 2017 at 7:30pm — 17 Comments

आजादी(लघुकथा)

जंगल आजाद हुआ।पशु-पक्षियों को शासन की कमान मिली।आदमी काफी दूर निकल चुके थे। नृत्य-कला की प्रवीणता से मोर को सबसे बड़ी कुर्सी मिली।विभिन्न जानवरों और परिंदों को मंत्री पद मिले।लक्ष्मी जी की सवारी को वित्त का जिम्मा सौंपा गया।खान-पान के सामान और महंगे हो गये।लूट तरक्की का सामान बन गयी।छोटे-छोटे जीवों की बचत बड़े-बड़े दिग्गज जानवर गटकने लगे।माद्दा होता कर्ज लेने का,फिर सारी राशि हड़प जाने का।उधर सरकारी ऐलान होता कि तिजोरी खाली है,जनता सरकार का का सहयोग करे।खर्च कम करे,कर चुकाये।उधर जंगल(देश-जनता) की… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 1, 2017 at 9:29pm — 12 Comments

गजल(क्या करेगा...)

2122 2122 212

---------------

क्या करेगा माँद का मारा हुआ

बन गया मुजरिम अभी हारा हुआ।1



लोग कसते फब्तियाँ,बेजार वह

'लाल' कल का आज बेचारा हुआ।2



मौसमों की मार खाकर शीत जल

पर्वतों से भी ढुलक खारा हुआ।3



दी हवा जब,थरथरायीं चोटियाँ,

छटपटाता आज,नक्कारा हुआ।4



बंदगी में थे खड़े सब लोग तब

अब ठिठोलीबाज जग सारा हुआ।5



जो मिली कुर्सी,सलामत भी रहे

हर दिशा में आज यह नारा हुआ।6



सीढियाँ दी तोड़ जब ऊपर… Continue

Added by Manan Kumar singh on June 23, 2017 at 8:53am — 3 Comments

गजल(अक्ल के मारे हुए हैं..)

2122 2122

अक्ल के मारे हुए हैं

हम सभी हारे हुए हैं।1



आज मसले बेवजह के

देखिये नारे हुए हैं।2



जो नहीं थोड़ा सुहाये,

आँख के तारे हुए हैं।3



लूटते हैं जिस्म-ईमां

जान हम वारे हुए हैं।4



दान कर दीं कश्तियाँ भी

आज बेचारे हुए हैं।5



कान देते, बात बनती

वे उबल पारे हुए हैं।6



बाग भर मैं देख आया,

तिक्त फल सारे हुए हैं।7



सब लिये हैं गीत अपने

भाव को टारे हुए हैं।8



हंस ढूँढ़े, मिल… Continue

Added by Manan Kumar singh on June 2, 2017 at 8:24pm — 13 Comments

गजल(झूठ बहुत ...)

22 22 22 22

झूठ बहुत तुमने बोले हैं

भाव सभीने ही तोले हैं।1



नासमझी का दामन पकड़े

छोड़े तुमने बस गोले हैं।2



कर्त्ता हो,बलिहारी समझो,

शब्दों के पीछे झोले हैं।3(झटके)



निज करनी मत पर्दा डालो,

राज कहाँ हमने खोले हैं?4



लिंग-वचन नियमित रहने दो,

कथ्य बहुत क्यों कर डोले हैं?5



चाहे कुछ भी कर लोगे क्या?

तथ्यों के अपने झोले हैं।6(झोलियाँ)



तुमने कुछ समझा है?,बोलो-

शेर बने क्या मुँहबोले हैं?7

@'मौलिक… Continue

Added by Manan Kumar singh on May 28, 2017 at 10:30pm — 9 Comments

गजल( वह जमीं पर आग यूँ बोता रहा)

2122  :    2122         212 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

वह जमीं पर आग यूँ बोता रहा

और चुप हो आसमां सोया रहा।1



आँधियों में उड़ गये बिरवे बहुत

साँस लेने का कहीं टोटा रहा।2



डुबकियाँ कोई लगाता है बहक

और कोई खा यहाँ गोता रहा।3



पर्वतों से झाँकती हैं रश्मियाँ

भोर का फिर भी यहाँ रोना रहा।4



हो…

Continue

Added by Manan Kumar singh on May 22, 2017 at 8:27am — 7 Comments

गजल(आइये,आज का चलन.....)

212 212 212 212

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

आइये,आज का जो चलन,देखिये,

सच हुआ झूठ का जो कथन,देखिये।1



मैं सही,वह गलत,घोषणा हो रही,

जिंस बन बिक रहे वे,रटन देखिये।2



देख लें सूट-बूटी वदन आज कल

फट गयी जेब चमके बटन देखिये।3



बेतरह ढूँढ़ते आपकी गलतियाँ

ढूँढ़ते आप, फटता गगन देखिये।4



नेमतें खुद गिनाते , हुए मौन कब?

लग रहा, बढ़ गया है वजन, देखिये।5



चाँद पर थूकना है मुनासिब कहीं?

दाग लगता नहीं क्या? फलन… Continue

Added by Manan Kumar singh on May 14, 2017 at 8:00am — 14 Comments

गजल( बेखुदी में यार मेरे....)

2122   2122  2122  212

बेखुदी में यार मेरे याद आना छोड़ दो

मुस्कुराने की अदा है कातिलाना, छोड़ दो।1

 

सूखती-सी जो नदी उम्मीद की, बहती रही

कान में पुरवाइयों-सी गुनगुनाना छोड़ दो।2

 

ख्वाहिशों के दौर में थमती नहीं है जिंदगी 

उँगलियों पर अब जरा मुझको नचाना छोड़ दो।3

 

चाँद ढलता जा रहा फिर है पड़ी सूनी गली

बेबसी में अब कभी मुझको बुलाना छोड़ दो।4

राह अपनी मैं चलूँ तुमको मुबारक रास्ते

अनकही बातें बता रिश्ते…

Continue

Added by Manan Kumar singh on May 10, 2017 at 9:11pm — 10 Comments

गजल(कुर्सी के हाथ हुए पीले)

22 22 22 22

***********

कुर्सी के हाथ हुए पीले

साहब जी अब पड़ते ढ़ीले।1



पानी उतरा जाता उनका

दीख रहे टीले ही टीले।2



बिकते आये घोड़े माफिक

रंग रहे काफी चटकीले।3



याद सताती कुर्सी की तो

हो जाते हैं खूब हठीले।4



ढूँढ रहे वे रोज सनद ही

उम्मीद बँधे तो हैं फुर्तीले।5



कुर्सी ढ़ाढ़स देती,कहती-

पाँच बरस कैसे भी जी ले।6



रक्त पिये जायेगा कितना

थोड़ा-थोड़ा आँसू पी ले।7



अँधियारे में वस्त्र फटा… Continue

Added by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 7:00am — 12 Comments

गजल(कुछ भी कह पाना है मुश्किल)

कुछ भी कह पाना है मुश्किल
चुप भी रह जाना है मुश्किल।1

जो बात बयारों की करते
उनको समझाना है मुश्किल।2

वे अक्स छुपाये चलते हैं
पहचान बताना है मुश्किल।3

इतिहास गढ़ा भी जाता है
इतिहास मिटाना है मुश्किल।4

वे काँटे खूब बिछा सकते
बस पीर घटाना है मुश्किल।5

अरमां की लूट मची रहती
हाँ, ख्वाब सजाना है मुश्किल।6
'मैलिक व अप्रकाशित'

Added by Manan Kumar singh on May 5, 2017 at 9:41am — 9 Comments

बाल ग ज ल

22 22 22 22 2
ढ़ेरों रंगों के गोल टमाटर
होते हैं कितने लोल टमाटर!1

पककर वे लाल हुए जाते हैं
गिरते,कहते ले तोल, टमाटर।2

अपने अंदर हैं लौह-विटामिन
कहते,खा दिल खोल टमाटर।3

वे खूब चहकते हैं डालों पर
झूलते हैं झूला डोल टमाटर।4

झोंके लगते हैं जोर हवा के
गिरते हैं ढ़म -ढ़म ढ़ोल टमाटर।5
'मौलिक व अप्रकाशित'

Added by Manan Kumar singh on April 26, 2017 at 7:31pm — 3 Comments

गजल(पा लिया , खोया किसीने.....)

2122  2122  2122 212 

पा लिया, खोया किसीने,चल रहा यह सिलसिला

ख्वाहिशें अनजान थीं जो कुछ मिला अच्छा मिला।1



गर्दिशों के दौर में अरमान मचले कम नहीं

पर सरे पतझड़ यहाँ उम्मीद का अँखुआ खिला।2



घाव देकर हँस रहे हैं आजकल बेख़ौफ़ वे

कौन अपनों से करेगा बोलिये फिर से गिला?3



डर गये जीते शज़र सब आँधियों के जोर से

सूखता-सा जो खड़ा है कब सका कोई…

Continue

Added by Manan Kumar singh on April 9, 2017 at 10:30am — 18 Comments

गजल(जब हवा बदली हुई है)

2122 2122
जब हवा बदली हुई है
साँस उनकी क्यूँ थमी है?1

अश्क के थे रश्कजादे
अब नजर में क्यूँ नमी है?2

क्या हुआ अबतक पता सब
ढूँढ़ ली जाती कमी है।3

ओहदे सेवा की' सूरत
शोहदों का सच यही है।4

आसमां भर तार माफिक
आरजू होती रही है।5

जो किया जाता रहा तब
लग रहा था सच वही है।6

जो सँजोये धन चुराकर
खुल रही उनकी बही है।7
@मौलिक व अप्रकाशित

Added by Manan Kumar singh on March 29, 2017 at 7:31am — 13 Comments

गजल(दूर कहीं से कौड़ी आई)

22 22 22 22
दूर कहीं से कौड़ी आई-
आओ साथ बनाओ भाई।1

बाल बचे जो मुड़ जायें मत
डरता रहता टकलू नाई।2

जीत दिलाने में पिछड़ी हैं
बरबोलों की माई-जाई।3

सहमी जातीं समता-ममता
माया ने सब नाच नचाई।4

खेत चरे क्यूँ बतलायेंगे
चिल्लाते सब 'राम दुहाई'।5

माथा पीट रहे मुँहझौंसे
निज करनी ने लंका ढ़ाई।6

योग लगन ग्रह वार जुटे सब
किसको किसकी बाजी भाई?7
@मौलिक व अप्रकाशित

Added by Manan Kumar singh on March 28, 2017 at 1:30pm — 5 Comments

गजल(कुर्सियाँ किसकी हुईं हैं बोलिये भी)

#गजल#-103

.

कुर्सियाँ किसकी हुई हैं बोलिये भी
गाँठ में क्या-क्या छिपा है खोलिये भी।1

आपको भी क्या न करना पड़ गया है
हो न सकते साथ जिनके,हो लिये भी।2

जानते सब कुर्सियों की कीमतें हैं
हम भुला खुद को जरा-सा तोलिये भी।3

घोलते आये फ़िजां में क्या नहीं कुछ
अब जहर फिरसे यहाँ मत घोलिये भी।4

कुर्सियों के ताव में कुछ कर गये थे
चोट खायी खूब हमने गो लिये। भी।5
@मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Manan Kumar singh on March 27, 2017 at 9:30am — 9 Comments

गजल(पूछते लोग सब.....)

212 212 212 212
 लोग सब पूछते,  हम कहाँ जा रहे
आ गये दिन भले या अभी आ रहे।2

कौन क्या कह गया याद अब है कहाँ
रेवड़ी देखकर खूब ललचा रहे।2

कुल जमा देखिये बादलों की कला
हर बरस बूँद में खार बरसा रहे।3

रात के हाथ से बुझ गयीं बत्तियाँ
बोलते भी जरा कौन दिन ला रहे।4

जोर से पीटते ढ़ोर सब ढ़ोल हैं
कोकिला चुप हुई काग बस गा रहे।5
मौलिक व अप्रकाशित@

Added by Manan Kumar singh on March 7, 2017 at 8:00pm — 20 Comments

गजल(जैसे तैसे आगे आता))

     #गजल#

       ***

 22 22 22 22

जैसे-तैसे आगे आता

मैं भी जनसेवक हो जाता!1

 

सेवा के आयाम बहुत हैं

अपनी सब करतूत गिनाता!2

 

नकली आँसू के छींटे दे

मन के माफिक मेवे खाता!3

 

पाँच बरस मुझको मिल जाते

चार पहर रोते फिर दाता!4

 

भाषा को हथियार बनाकर

जोर लगा मैं शोर मचाता!5

 

जात-धरम के पेड़ फफनते

थोड़े बिरवे और बढ़ाता!6

 

मेरी खातिर भींग कहें…

Continue

Added by Manan Kumar singh on February 26, 2017 at 11:08am — 4 Comments

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