For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (851)

मन पर कुछ दोहे ......

मन पर कुछ दोहे : ......

मन को मन का मिल गया, मन में ही विश्वास ।

मन में भोग-विलास है, मन में है सन्यास ।।

मन में मन का सारथी, मन में मन का दास ।

मन में साँसें भोग की, मन में है बनवास ।।

मन माने तो भोर है, मन माने तो शाम ।

मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम । ।

मन मंथन करता रहा, मिला न मन का छोर ।

मन को मन ही छल गया, मन को मिली न भोर । ।

मन सागर है प्यास का, मन राँझे का तीर ।

मन में…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 3, 2021 at 9:28pm — 4 Comments

मौसम को .......

मौसम को .....

सुइयाँ

अपनी रफ्तार से चलती रहीं

समय

घड़ी के बाहर खड़ा खड़ा काँपता रहा

मौसम

समय के काँधे पर

अपनी उपस्थिति की दस्तक देता रहा

बदले मौसम की बयार को छूकर

झुकी टहनियाँ

स्मृतियों में

पिछले मौसम के स्पर्श का रोमांच

सुनाती रहीं

मौसम को

वायु वेग से

रेत पर छोड़े पाँव के निशान

उड़- उड़ कर

अपनी व्यथा सुनाने लगे

मौसम को

झील के पानी में निस्तब्धता

दिखाती रही…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 2, 2021 at 1:59pm — 17 Comments

सावन के दोहे : ..........

सावन के दोहे :.........

गुन -गुन गाएँ धड़कनें, सावन में मल्हार ।

पलक झरोखों में दिखे, प्यारी सी मनुहार ।।

सावन में अक्सर करे , दिल मिलने की आस।

हर गर्जन पर मेघ की, यादें करती रास ।।

अन्तस में झंकृत हुए, सुप्त सभी स्वीकार।

तन पर सावन की करे, वृृष्टि   मधुर  शृंगार ।।

सावन में अच्छे लगें, मौन मधुर स्वीकार ।

मुदित नयन में हो गई, प्रतिबन्धों की हार।।

अन्तर्मन को छू गये, अनुरोधों के ज्वार ।

इन्कारों…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 28, 2021 at 3:30pm — 6 Comments

प्रश्न .....

प्रश्न ......

प्रश्न प्रश्न प्रश्न

स्वयं को तलाशते

सैंकड़ों प्रश्न

क्या मैं

सदियों से वीरान किसी पूजा गृह की

काल धूल के आवरण से लिपटी

कोई खंडित प्रतिमा हूँ

या फिर

किसी हवन कुंड में

किसी मनोरथ की सिद्धि के लिए

झोंकी जाने वाली सामग्री हूँ

या फिर

विषधरों के दंश झेलता

कोई चंदन का विटप हूँ

या फिर

काल की आँधी में अपने अस्तित्व से जूझता

धीरे-धीरे विघटित होता

शिला खंड…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 26, 2021 at 12:54pm — 6 Comments

फ़र्ज़ ......

फ़र्ज़ ......

निभा दिया फ़र्ज़
संतान ने
भेजकर माँ - बाप को
वृद्धाश्रम

........................

आजकल फ़र्ज़ भी
निभाए जाते हैं
कर्ज़ की तरह

.........................

गुजर गए
गुजरना था उनको
जिन्दगी की आखिरी पायदान से
बदल कर
पुरानी नेम प्लेट अपने नाम से
निभा दिया फ़र्ज़
अपने वारिस होने का

सुशील सरना / 23-7-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on July 23, 2021 at 5:37pm — 2 Comments

दोहा त्रयी. . . .

अन्तस में नर्तन करें, विगत रैन के द्वन्द ।
मुदित नैन रचने लगे, प्रीत गंध के छन्द । ।

नैनों से नैना करें , गुपचुप- गुपचुप बात ।
रैन तिमिर में हो गए, अलबेले उत्पात ।।

थोड़े से इंकार थे, थोड़े से इकरार ।
भली  लगी संघर्ष में, भोली भाली हार ।।

सुशील सरना / 20-7-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on July 20, 2021 at 12:00pm — 10 Comments

अभिव्यक्ति .......

अभिव्यक्ति ......

कैसे व्यक्त करूँ

अपने प्रेम की गहराई को

अभिव्यक्ति के अवगुंठन में

एक खीज है

तुम्हें छूने की

अबोले स्पर्शों से

कब तक लड़ूँ मैं

तुम ही कहो न

अपने प्रेम की गहराई को

कैसे व्यक्त करूँ मैं

हां! मैं तुम्हें प्यार करूँगी

भोर की उजास में

साँझ की प्यास में

तृप्ति की आस में

हर हलाहल पी जाऊँगी

मर के भी जी जाऊँगी

बस मेरी तन्हाई में

कुछ देर और जी जाओ

तुम ही कहो

तुम्हारे प्यार में आखिर…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 15, 2021 at 3:32pm — 10 Comments

सुलगते अँधेरे . . .

सुलगते अँधेरे  .......

न जाने आज

मन इतना उदास क्यों है

लगता है

स्मृतियों की सीलन से

मन की दीवारें

भुरभुरा सी गई हैं

यादों के पारदर्शी प्रतिबिम्ब

जैसे गिरती दीवारों पर

मन की बेबसी पर

अट्टहास लगा लगा रहे हों

कितनी ढीठ है

ये बरसाती हवा

जानती है मेरी आकुलता को

फिर भी मुझे छू कर

मुझसे मेरा हाल पूछती है

अब अच्छी नहीं लगतीं मुझे

आहटें

मन के वातायन पर गूँजती…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 13, 2021 at 8:00pm — 8 Comments

मन का साहिल. . . .

मन का साहिल ......

जाने कब मेरे अन्तस में

भावनाओं का सागर उफान मारने लगा

भावों की वीचियों पर

चाहत की कश्ती

अठखेलियां करने लगी

दिल के किसी कोने में

एक चाहत उभरी

कि मैं हौले से छू लूँ

फिर वही

अधर दलों पर ठहरी

उल्फ़त की गंध

चुपके से

डूब जाऊँ

किसी मदहोश भंवरे की तरह

पुष्प आगोश में

पराग का रसपान करते हुए

आकंठ तक

और मिल जाए

मेरी चाहत की कश्ती को

मेरे मन का…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 10, 2021 at 2:57pm — 10 Comments

आशा ......



आशा .......

बहुत कोशिश की

मगर हार गई मैं

उस अनुपस्थिति से

जो हर लम्हा मेरे जहन में जीती है

एक खौफ के लिबास में

मुझे ठेंगा दिखाते हुए

भोर से लेकर साँझ तक

दिनभर की व्यस्ततम गतिविधियों के बीच

हमेशा झकझोरती है

किसी ग़ैर की मौजूदगी

मेरे अंतःस्थल को

उस की अनुपस्थिति के लिए

निराशा की स्वर वीचियों के बीच कहाँ लुप्त होते हैं

आशा को प्रज्वलित करते अनुपस्थिति के स्वर

थकान की पराकाष्ठा पर

जब बदन निढाल होकर…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 30, 2021 at 4:15pm — 3 Comments

पाकीज़गी .......

पाकीज़गी ......

मैं

जिस्म से रूह तक

तुम्हारी हूँ

मेरी नींदें तुम्हारी हैं

मेरे ख़्वाब तुम्हारे हैं

मेरी आस भी तुम हो

मेरी प्यास भी तुम हो

मेरी साँसों का विश्वास भी तुम हो

मेरे प्राणों का मधुमास भी तुम हो

मगर ख़याल रहे

मेरे जिस्म को

दिखावटी पर्दों से नफ़रत है

मेरे पास आना तो

ज़माने के बेबस लिबास को

ज़माने में ही छोड़ आना

क्योंकि

मेरे जिस्म को

पाकीज़गी पसंद है

सुशील सरना

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 28, 2021 at 12:57pm — No Comments

काँटा

मैं काँटा हूँ
जाने कितने काँटे चुभा दिये लोगों ने
मेरे बदन में अपने शूल शब्दों के
जमाने ने देखी तो सिर्फ
मुझसे मिलने वाली वेदना को देखा
मेरी तीक्ष्ण नोक को देखा…
Continue

Added by Sushil Sarna on April 19, 2021 at 8:30pm — 4 Comments

कहानी.........

कहानी ..........

पढ़ सको तो पढ़कर देखो

जिन्दगी की हर परत

कोई न कोई कहानी है

कल्पना की बैसाखियों पर

यथार्थ की हवेलियों में

शब्दों की खोलियों में

दिल के गलियारों में

टहलती हुई

कोई न कोई कहानी है

पत्थरों के बिछौनों पर

लाल बत्ती के चौराहों पर

बसों पर लटकी हुई

रोटी के लिए भटकी हुई

आँखों के बिस्तर पर बे-आवाज

कोई न कोई कहानी है

सच

पढ़ सको…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 16, 2021 at 5:09pm — 2 Comments

मन पर दोहे ...........

मन पर दोहे ...........

मन माने तो भोर है, मन माने तो शाम ।
मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम । 1।
हर मन को मिलता नहीं, मन वांछित परिणाम ।
मन फल की चिन्ता करे, मन अशांति का धाम ।2।…
Continue

Added by Sushil Sarna on April 13, 2021 at 1:30pm — 6 Comments

गरीबी ........

गरीबी..........
कैसी होती है गरीबी
शायद
तिमिर के गहन आवरण को
भेदने में असफल होती
जुगनू की
क्षीण सी रोशनी…
Continue

Added by Sushil Sarna on April 11, 2021 at 12:00pm — 4 Comments

लौट भी आओ न ....

लौट भी आओ न ....
लौट भी आओ न
देखो !
प्रतीक्षा की सीढ़ियों पर
साँझ उतरने लगी है
भोर अपने वादे से मुकरने लगी है
आँखों की मुट्ठियों से तन्हाई फिसलने लगी है
मेरी…
Continue

Added by Sushil Sarna on March 11, 2021 at 8:00pm — 10 Comments

चाँदनी

चाँदनी ,,,,,,,
चमकने लगे हैं
केशों में चाँदी के तार
शायद
उम्र के सफर का है ये
आखिरी पड़ाव
थोड़ा जलता
थोड़ा बुझता
साँसों का अलाव…
Continue

Added by Sushil Sarna on March 2, 2021 at 7:30pm — 4 Comments

दोहा त्रयी : वृद्ध

दोहा त्रयी : वृद्ध


चुटकी भर सम्मान को, तरस गए हैं वृद्ध ।
धन-दौलत को लालची, नोचें बन कर गिद्ध । ।


लकड़ी की लाठी बनी, वृद्धों की सन्तान ।
धू-धू कर सब जल गए, जीवन के अरमान ।।


वृक्षहीन आँगन हुए, वृद्धहीन आवास ।
आशीषों की अब नहीं, रही किसी में प्यास ।।


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on February 23, 2021 at 8:24pm — 6 Comments

नारी

हृदय की अनन्त गहराईयों में
प्रतिबिंबित करती है
प्रेम में बुद्ध हो जाने वाले
उस आदि पुरुष को
जो उसे पूर्णता प्रदान करे
नर
अपने हृदय लोक में
रेखांकित करता…
Continue

Added by Sushil Sarna on February 13, 2021 at 8:30pm — 8 Comments

अर्थ

कहाँ इतना आसान होता है
किसी बात का अर्थ निकालना
हर भाव की व्याकरण अलग होती है
हर कोई अपने हिसाब से
हर भाव के अर्थ साधने का प्रयास करता है
किसी के लिए जिन्दगी का अर्थ
साँसों का चलायमान होना है
किसी के लिए साँसों के बाद है जिन्दगी
अधरों की…
Continue

Added by Sushil Sarna on February 7, 2021 at 2:30pm — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी । नववर्ष की…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।नववर्ष की हार्दिक बधाई…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।।"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लेखन के विपरित वातावरण में इतना और ऐसा ही लिख सका।…"
Dec 31, 2024

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service