212 /212/ 212 /212
*
बच पवन से सँभलना नये साल में
हमको दीपक सा जलना नये साल में।१।
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मेट अन्याय और कालिमा चाहिए
न्याय विश्वास फलना नये साल में।२।
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छोड़ना है हमें देश हित में सहज
नफरतों से उबलना नये साल में।३।
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सिर्फ रिश्तों की खातिर भुला द्वेष को
मन से मन तक टहलना नये साल में।४।
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होगा उन्नत बहुत देश अपना तभी
सब जिएँ छोड़ छलना नये साल में।५।
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कर रहा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2024 at 8:56am — No Comments
२१२/२१२/२१२/२१२
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जो चले कर्म में सिलसिला राम का
लौट आये सनम काफ़िला राम का।१।
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एक विनती करें भोले शंकर से हम
देश ही क्या जगत हो जिला राम का।२।
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धन्य जीवन हमारा भी होता बहुत
देख लेते अगर मुख खिला राम का।३।
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जो भी वंचित सदा दुख रहे भोगते
हैं सुखी साथ जिनको मिला राम का।४।
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दोष मढ़ते बहुत वो अधम राम पर
भेद पाये नहीं जो किला राम का।५।
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राम पाना कठिन शेष जीवन में पर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 29, 2024 at 2:00pm — No Comments
२१२२/२१२२/२
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जिन्दगी भर बे-पता रहना
हर जुबा पर हाँ लिखा रहना।१।
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हर तरफ मौसम विषम होंगे
बस कुटज सा तू जगा रहना।२।
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सन्त बिच्छू की कथा कहती
जात में अपनी बना रहना।३।
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झूठ चाहे चल रहा जग भर
सत्य मन तू बोलता रहना।४।
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माँ पिता के छिन गये साये
सीख उससे बे-ख़ुदा रहना।५।
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धीरता कुछ सीख धरती से
हर समय क्या जलजला रहना।६।
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क्या है करना बेबफा जग…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2024 at 2:00pm — No Comments
तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।
बिना राम के नाम के, कुन्दन-हीरा काँच।१।
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तपते दुख की धूप में, जब जीवन के पाँव।
तन-मन तब शीतल करे, राम नाम की छाँव।२।
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राम नाम की नित सुधा, पीते हैं जो लोग।
सन्तापित होते नहीं, चाहे दुख का योग।३।
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चाहे दाता राम पर, मिलता सब कर कर्म।
जो समझा इस बात को, करता नहीं अधर्म।४।
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राम नाम का मर्म जो, समझ हुआ निष्काम।
उसको लगती भोर सी, ढलती जीवन शाम।५।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2024 at 10:57pm — 2 Comments
क्षणभंगुर है आजकल, शीशे सा संकल्प।
राम सरीखा कौन अब, सारे मन के अल्प।।
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जो आगन को लड़ रहे, भाई से हर शाम
कमतर देखो लग रहा, उन्हें राम का काम।।
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सूपनखा की कट गयी, लछमन हाथों नाक
बनी रही फिर भी वही, तीन पात का ढाक।।
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जनमर्यादा को करे, कौन राम सा त्याग
ढूँढा करते किन्तु सब, राम काज में दाग।।
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दण्ड लखन को मृत्यु का, सीता को वनवास
सहा न क्या-क्या राम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2024 at 8:57am — No Comments
कितना भी दुविधा का क्षण हो
मन में केवल रामायण हो।।
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बनना जितना राम असम्भव
उससे बढ़कर भरत कठिन है।
जीवन में चहुँ ओर मंथरा
जब उकसाती हर पलछिन है।।
कलयुग के सिर दोष न मढ़ना
देख स्वयम् को निज दर्पण हो।।
*
इच्छाओं के कुरुक्षेत्र में
भीष्म सरीखा जब हो घायल।
और ज्ञान के नभ मण्डल में
शंकाओं के छायें बादल।।
पर तुम विचलित कभी न होना
आस-पास कितना भी रण हो।।
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गोवर्धन नित पड़े …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2024 at 12:21pm — 4 Comments
२१२/२१२/२१२/२१२
कह रही है बहुत ये हवा आग से
तिश्नगी हर नगर की बुझा आग से।१।
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जागते लोग बाधा सियासत कहे
चैन की नींद सब को सुला आग से।२।
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ईश औषध बना बोल देते रहे
लोग चलने लगे विष बना आग से।३।
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दूर से हाथ जोड़ो कि सपनों छिपा
जब पड़े आप का वास्ता आग से।४।
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जल गये हाथ बच्चे के बूढ़ा कहे
खुश हुआ दोस्ती कर युवा आग से।५।
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भूप अंधा हुआ आग हाथों में ले
झोपड़ी को भुला खेलता आग से।६।
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इश्क…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 16, 2024 at 4:10am — No Comments
नभ पर लकदक चाँद दे, रोटी का आभास
बिन रोटी कब प्रीत भी, करती कहो उजास।१।
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सभ्य जगत में है भले, हर वैज्ञानिक योग
रोटी खातिर आज भी, भटक रहे पर लोग।२।
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भूखे प्यासे प्राण को, बासी रोटी खीर
लगता बस धनहीन को, मँहगाई का तीर।३।
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रोटी ने जिसको किया, विवश और कमजोर।
उसकी सबने खींच दी, हर इज्जत की डोर।४।
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पहली रोटी गाय को, अन्तिम देना स्वान।
पुरखों की इस सीख को, कौन रहा अब…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2024 at 10:31pm — No Comments
गर्दभ का हर युग रहे, गर्दभ सा ही हाल
बनता नहीं तुरंग वह, भले लगा ले नाल।१।
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भूला पुरखे थे कभी, चेतक से बेजोड़
करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़।२।
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कहते लोग तुरंग को, कब होता घर दूर
चाहे हो वो काठ का, जय लाता भरपूर।३।
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क्या पौरुष के रंग वो, दिखलाता संसार।
मोड़ न पाया रास जो, बनकर अश्व सवार।४।
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रथ में जोते चल रहा, सूरज सात तुरंग
इसीलिए लड़ पा रहा, तम से लम्बी जंग।५।
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घोड़े पर जो वायु के, होता बहुत सवार
छिन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2024 at 6:09am — 4 Comments
आँखों तक ही रूप का, होता है संसार
किंतु गुणों से आत्मा, पाती है झंकार।१।
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रखने तन को छरहरा, देते भोजन त्याग।
कोई कहता हैं नहीं, लेकिन गुण से जाग।२।
*
गुण की चिंता है किसे, दिखता रहे गँवार
अब तो केवल रूप को, सब ही रहे सँवार।३।
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जाना जिसने रूप से, गुण का गुण है खास
उस के जीवन से कभी, जाती नहीं उजास।४।
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गुण है गुण गुणवान को, अवगुण गुण है दुष्ट
जिस को भाता जो रहा, करता उसको पुष्ट।५।
*
गुण से बढ़कर रूप का, जो करता गुणगान
करता गुण…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 9, 2024 at 4:15am — 4 Comments
जूते तो शोरूम में, पुस्तक अब फुटपाथ।
कैसे लोगो फिर लगे, कहो तरक्की हाथ।२।
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कलयुग में उलटा हुआ, मानव का आचार
महल बनाता श्वान को, गायों को दुत्कार।२।
*
पढ़ो धर्म के साथ ही, नित नूतन विज्ञान
तब जाकर होगा कहीं, सुंदर सकल जहान।३।
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केवल कोरा ज्ञान ही, कब सुख का आधार
साथ चाहिए सीख में, नैतिकता संस्कार।४।
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दिखते पग पग खूब हैं, होते नित सतसंग
फिर भी करते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 8, 2024 at 9:25am — No Comments
पतझड़ छोड़ वसन्त में, उग जाते हैं शूल
जीवन में रहता नहीं, समय सदा अनुकूल।१।
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सावन सूखा बीतता, कभी डुबोता जेठ
बिना भूल के भी समय, देता कान उमेठ।२।
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करते सुख की कामना, मिलते हैं आघात
जब बोते सूखा पड़े, पकने पर बरसात।३।
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अनचाही जो हो दशा, दुखी न होना मीत
देना मुट्ठी बंद ही, रही समय की रीत।४।
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रहा निराला ही सदा, यहाँ समय का खेल
जीवन कटे बिछोह में, मरण कराता मेल।५।
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छुरी बगल में मीत के, दुश्मन के कर फूल
कैसे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2024 at 9:23am — 2 Comments
किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।
प्रश्न खड़ा हर द्वार पर, आजादी के बाद।।
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कहने को तो भर गये, अन्नों से गोदाम।
फिर भी भूखे पेट हैं, इतने क्योंकर राम।।
गर्म आज भी खूब है, क्यों काला बाजार।
हर चौराहे लुट रही, बहुत आज भी नार।।
अन्तिम जन है आज भी, पहले जैसा दीन।
चोर उचक्के हो गये, खुशियों में तल्लीन।।
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हाथ लिए जो लाठियाँ, अब भी पाता दाद।
किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।।
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देशभक्ति अब गौंण है, गद्दारी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 14, 2024 at 2:53pm — 8 Comments
जिस को भी कड़वे लगे, बाबू जी के बोल
उसने समझो खो दिया, हर अमृत अनमोल।१।
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बाबू जी ने क्या किया, कह दे जो औलाद
समझो उसने कर लिया, सकल पुण्य बर्बाद।२।
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बाबू जी करते कहाँ, भौतिक सुख की आस
उन के मन में चाह बस, सन्तानें हों पास।३।
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सोचा सब के चैन की, खुद रहकर बेचैन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2024 at 6:24am — 6 Comments
विरही मन कहता फिरे, समझे पीड़ा कौन
आँगन,पनघट, राह सह, हँसी उड़ाये भौन।१।
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करते हैं दो चार जो, परदेशी से नैन
जले विरह की आग में, उन का मन बेचैन।२।
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घुमड़ी बदली देखकर, मन में भड़की आग
जिस के पिय परदेश में, फूटे उस के भाग।३।
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जब साजन परदेश में, शृंगारित ना केश
सावन दावानल लगे, जलता हर परिवेश।४।
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पिया मिलन की प्यास जो, तन मन करे अधीर
रूठी-रूठी भूख को, लगती विष सी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 3, 2024 at 11:30am — 2 Comments
पसीना बोलता है (गीत)
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चन्द सूखी रोटियाँ खाकर
कष्ट में हँस गीत नित गाकर
खुशी वो घोलता है।
पसीना बोलता है।।
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देह मैली, पर जगत चमका
सब सुधारा, आ जहाँ धमका
हाथ की छैनी कुदालों से
नित द्वार सुख के खोलता है।
पसीना बोलता है।।
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स्वप्न जो है पोषता सब का
राह आगन देखता उस का
शौक से कब छोड़ घर अपना
परदेश में वह डोलता है।
पसीना बोलता है।।
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खेत हों …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2024 at 2:35pm — 2 Comments
पड़ते दुख के घाट पर, कभी न जिनके पाँव
समझ न आता है उन्हें, जग में रोता गाँव।१।
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चल आती है जो खुशी, दुख बैठा जिस राह
पुरखों से सुनते वही, टिकती बहुत अथाह।२।
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सुख से सुख की कब हुई, तुलना जग में बोल
सुख का करते मान हैं, बजकर दुख के ढोल।३।
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दुख आकर देता सदा, सुख को रंग हाजार
उस बिन फीका ही रहे, सुख का घर संसार।४।
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दुख तो ऐसा बौर है, जिस भीतर सुख बीच
जोर-जबर से कब इसे, कोई सका उलीच।५।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 22, 2024 at 6:00am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कानों से देख दुनिया को चुप्पी से बोलना
आँखों को किसने सीखा है दिल से टटोलना ।१।
*
कौशल तुम्हें तो आते हैं ढब माप तौल के
जब चाहो खूब नींद को सपनों से तोलना।२।
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कब जाग जाये कौन सा बदज़ात जानवर
सीमा के हर कपाट को खुलकर न खोलना ।३।
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करना हमेशा अन्न का जीवन में मान तुम
चाहे पड़े भकोसना या फिर कि चोलना।४।
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चक्का समय का घूम के लौटा है फिर वहीं
जिस में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2024 at 5:44am — No Comments
निभाकर रीत होली में
दिलों को जीत होली में।१।
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भरें जीवन उमंगों से
चलो गा गीत होली में।२।
*
सभी सुख दुश्मनी छीने
बनो सब मीत होली में।३।
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बहुत विरही तड़पता है
सफल हो प्रीत होली में।४।
*
किसी को याद मत आये
गयी जो बीत होली में।५।
*
लगे अब रोग कहते हैं
दुखों को पीत होली में।६।
*
गिरा दो रंग बरसाकर
खड़ी हर भीत होली में।७।
*
यही अरदास है पिघलें
दिलों की शीत होली…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2024 at 6:55am — No Comments
नगर भर चले दौड़ काली हवा
है खुश खूब झकझोर डाली हवा।१।
*
गिरे फूल कलियाँ विवश भूमि पर
बजा पात कहती है ताली हवा।२।
*
कभी दान जीवन सभी को दिया
हुई आज लेकिन सवाली हवा।३।
*
कहाँ से प्रदूषण धरा का मिटे
नहीं सीख पायी जुगाली हवा।४।
*
कँपा शीत में नित बढ़ी जब तपन
गयी लौट कुल्लू मनाली हवा।५।
*
तनिक तो कहीं बात होती है कुछ
किसी की चली कब है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2024 at 11:04am — 6 Comments
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