बदल रहा समाज बदल रहा कल आज
बीच चौराहे आ जाती अक्सर घर को लाज
सामान्य से हो रहे विवाहेत्तर सम्बन्ध
धुंधले से पड़ गये, दिल के सब अनुबंध
हर किसी को चाहिए जरुरत से ज्यादा "मोर"
भौतिकता जागी है सारे बंधन तोड़
जितना मिले उतना जगे, ज्यादा पाने की आस
कम हो गयी सहनशीलता बढ़ गयी है प्यास
हर किसी को चाहिए अस्तित्व की खोज
कमजोर हो रहे है रिश्ते, दरक रहे है रोज
आया नया ज़माना है कुछ खोकर कुछ पाना…
ContinueAdded by sarita panthi on December 21, 2014 at 8:02pm — 13 Comments
मेरी खिड़की से दीखता है एक पेड़
उसका हाल भी मेरे जैसा ही है
ना जाने कब प्यार कर बैठे हम
जब भी खिड़की खोलती हूँ
उसे अपने इन्तजार में ही पाती हूँ
कोई तो है जिसे हर पल मेरा इन्तजार है
मेरा साथी मेरा सहारा मेरा दोस्त
एक अनजाना सा बंधन बंध गया है
हम दोनों के बीच में
हर पल मुझे ही निहारा करता है
जब भी उसके सामने से गुजरती हूँ
कहता है जल्दी आना
में तुम्हारा यही इन्तजार कर रहा हूँ
दिल खुश हो…
ContinueAdded by sarita panthi on December 2, 2014 at 10:00am — 13 Comments
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