For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल ये बेईमान सताता है.....................

दिल ये बेईमान सताता है
हर पल भटकना चाहता है
डोरी है प्यार की नाजुक सी
कच्ची है कह धमकाता है
हलकी सी भी हवा मिले तो 
हवा के संग बह जाता है


लग जाये ना गैरों की नजर
इस डर से छुपाकर रखा है
मैं लाख सम्हालूँ जतन करूँ
मुझको ही भ्रम दे जाता है


देखूं तो दुनिया फरेबी है
देता चाहतों का हवाला है
रस्मों का बड़ा सा ताला है
जिसे द्वार पे मैंने डाला है


लगती है आँच जमाने की
मैंने आँसुओं से पाला है
सूख रहे दिल के सोते
चाहतों का बोलबाला है


तेरे ही दिल के सागर में
मेरे प्यार का लंगर डाला है
दिल ये बेइमान सताता है
हर पल भटकना चाहता है    

@सरिता पन्थी

 "मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohinder Kumar on November 7, 2014 at 4:07pm
मन चँचल मन बाँवरा, मन ठहरा चितचोर

मन की मति चलिये नहीँ पलक पलक मन और

पर कभी कभी मन को फेरा लगाने के लिये छोड देना चाहिये... लोट के तो घर ही आयेगा.

सुन्दर भाव भरी रचना
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 6, 2014 at 8:18am

बहुत सुंदर भाव उभर कर आये, आपकी रचना में. बधाई आदरणीया सरिता जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 5, 2014 at 4:21pm

कविता  आपकी कोशिश बयां करती  है i यह कोशिश जारी रहे i  कवि धीरे-धीरे निखरता है i

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 4, 2014 at 12:30pm

सुंदर गीत रचना के लिए बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on November 4, 2014 at 11:16am

सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई 

Comment by sarita panthi on November 4, 2014 at 8:28am

शुक्रिया सोमेश जी और सुशील जी मुझे आप सभी की संगत में काफी कुछ सिखने को मिलेगा ऐसी मेरी आशा है .

Comment by sarita panthi on November 4, 2014 at 8:26am

जी शुक्रिया प्रधान सम्पादक जी दिल तो बेईमान है पर दिमाग ने तो उसे लंगर लगाया हुआ है ये कहना चाहती थी शायद अच्छा नही बन पाया पर कोशिश करुँगी की और अच्छा बन सके 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 3:02pm

गीत कहने का अच्छा प्रयास है. लेकिन जैसा कि आ० सुशील सरना जी ने भी कहा है कि यह प्रयास और बेहतर हो सकता था।  बहरहाल, प्रयासरत रहे और अभिनन्दन स्वीकार करें।

Comment by Sushil Sarna on November 3, 2014 at 1:04pm

आदरणीय सुंदर गीत और भी सुंदर हो सकता था। प्रयास के लिए बधाई और सोमेश जी से सहमत।

Comment by somesh kumar on November 3, 2014 at 7:38am

आप ने जिस भी अर्थ में लिखा हो पर ये कविता आप के विचारों का विरोध अंत में स्वयं करती है,दिल अगर बेईमान और आवारा है तो तेरे ही दिलके सागर में लंगर कैसे डाल सकता है ,मुझे यहाँ भ्रम लग रहा है ,पूरी रचना विषय के अनुकूल चलती है पर यहीं पर आकर अपने विरुद्ध हो रही है ,पर अगर आप को सही लग रही है तो कोई दिक्कत नहीं 
कोशिश के लिए बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
15 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service