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Annapurna bajpai's Blog – December 2013 Archive (4)

ज्वार भाटा (अन्नपूर्णा बाजपेई)

वो हिरनी सी चंचल आंखे

कभी मुसकुराती हुई 

खामोश है अब ...... 

एक ज्वार भाटा आकर  

बहा ले गया है सब ...

  वो रिक्त आंखे

अब नहीं देखती

कोई सपना मधुर

क्योंकि उनसे छीना है

किसी ने हक़

स्वप्न देखने का । 

वे  अब नहीं ताकती

किसी की राह

क्योंकि वे खामोश है

शायद पत्थर हो गई है........ 

किसी ने छीना है 

उनसे जीने की खुशी

उनकी मुस्कुराहट

उनकी चंचलता  

किसी व्याघ्र…

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Added by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:30pm — 10 Comments

लाड़ली चली.. (अन्नपूर्णा बाजपेई)

बाबा की दहलीज लांघ चली

वो पिया के गाँव चली

बचपन बीता माँ के आंचल

सुनहरे दिन पिता का आँगन

छूटे संगी सहेली बहना भैया

मिले दुलारी को अब सईंया

मीत चुनरिया ओढ़ चली  

बाबा की ................

माँ की सीख पिता की शिक्षा

दुलार भैया का भाभी की दीक्षा

सखियों का स्नेह लाड़ बहना का

वो रूठना मनाना खेल बचपन का

भूल सब मुंह मोड चली

वो पिया के ...............

परब त्योहार हमको  बुलाना

कभी तुम न मुझको…

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Added by annapurna bajpai on December 23, 2013 at 5:30pm — 32 Comments

कुछ ऐसे पुकारा तुमने (अन्नपूर्णा बाजपेई)

कुछ इस तरह पुकारा तुमने

कदम भी मेरे लगे बहकने 

कुछ इस .........

दामिनी दमक उठी नैनो मे

सरगम छनक उठी साँसों मे

हृद वीणा सी  झंकृत कर दी

जागे से लगने लगे सपने 

कुछ .......................

अन्तर्भावों की सुरवलियों मे

उद्गारों की हारावलियों मे

शब्द सुशोभित सज्जित कर दी

मन-कानन सब लगे महकने 

कुछ .....................

अप्रकाशित एवं…

Continue

Added by annapurna bajpai on December 21, 2013 at 9:00pm — 22 Comments

अकुला रही सारी मही .(अन्नपूर्णा बाजपेई)

अकुला रही सारी मही

किसको पुकारना है सही ।

 

सोच रही अब वसुंधरा

कैसा कलुषित समय पड़ा 

बालक बूढ़े नौजवान

गिरिवर तरुवर आसमान

किसको पुकारना .........

अखंड भारत का सपना

देखा था ये अपना

खंडित हो कर बिखर रहा

न जन मानस को अखर रहा

अकुला रही .................

ढूँढने पर भी अब मिलते नहीं 

राम कृष्ण से पुरुषोत्तम कहीं 

गदाधर भीम अर्जुन धनु सायक नहीं 

गांधी सुभाष भगत  से नायक…

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Added by annapurna bajpai on December 3, 2013 at 11:00am — 10 Comments

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