बह्रे रमल मुसम्मन सालिम(2122 2122 2122 2122)
संग तेरे मैंने कोई पल गुज़ारा ही न होता
ऐ खुशी तूने अगर मुझको पुकारा ही न होता
तूने ऐ जज़्बा-ए-दिल मुझको सँवारा ही न होता
आइने में लफ़्ज़ के तुझको उतारा ही न होता
रह गया था मैं कहीं खो कर जहां की वुसअतों मे वुसअत= व्यापकता
गर मुहब्बत की न होती तो सहारा ही न होता
रात की जल्वागरी होती अधूरी रौनकें भी
चाँद की जो बज़्म…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 4, 2013 at 4:00pm — 31 Comments
अकीदत का करो रौशन चिरागाँ काम से पहले
खुदा को याद कर लेना कभी आलाम से पहले आलाम =तकलीफों
तुम्हारे दम से कायम ज़िन्दगी का है निशां यारब
झुके सजदे में सर मेरा किसी ईनाम से पहले
छुपा आगोश में माँ हमपे ममता की करे बारिश
हमें करुणा की ठण्डक दे कभी आराम से पहले
दुआओं की तेरी तासीर इतनी फ़ैज़ इतना माँ तासीर =प्रभाव, फ़ैज़= अनुकम्पा
महक जायें मेरी ये रहगुज़र हर गाम से…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2013 at 11:53pm — 14 Comments
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