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Rajkumar sahu's Blog – September 2011 Archive (7)

व्यंग्य - गरीबी के झटके

देखिए, गरीबों को गरीबी के झटके सहने की आदत होती है या कहें कि वे गरीबी को अपने जीवन में अपना लेते हैं। पेट नहीं भरा, तब भी अपने मन को मारकर नींद ले लेते हैं। गरीबों को ‘एसी’ की भी जरूरत नहीं होती, उसे पैर फैलाने के लिए कुछ फीट जमीन मिल जाए, वह काफी होती है। गरीब, दिल से मान बैठा है कि अमीर ही उसका देवता है, चाहे जो भी कर ले, उसमें उसका बिगड़े या बने। गरीबी का नाम ही बेफिक्री है। फिक्र रहती है तो बस, दो जून रोटी की। रोज मिलने वाले झटके की परवाह कहां रहती है ?

गरीबों को झटके पर झटके लगते हैं।… Continue

Added by rajkumar sahu on September 29, 2011 at 11:54pm — No Comments

व्यंग्य - ‘मौन-मोहन’ से मिन्नतें

हे ‘मौन-मोहन’, आपको सादर नमस्कार। आप इतने निराश मन से क्यों अपना राजनीतिक चक्र घुमा रहे हैं। जिस ताजगी के साथ आपने देश में नई बुलंदी को छू लिए और लोगों के दिल में समाए, आखिर अब ऐसा क्या हो गया, जो आप एकदम से थके-थके से नजर आ रहे हैं। जिस जनता-जनार्दन के सिर पर अपना ‘हाथ’ होने की दुहाई देकर आप सत्ता तक पहुंचे, उसी हाथ की आज क्यों जनता से दूरी बढ़ गई है। ’आम आदमी के साथ’ का जो नारा था, वो तो शुरू से ही साथ छोड़ गया है। निश्चित ही आपकी छवि, दबे-कुचले जनता के बीच अच्छी है, लेकिन आपके द्वारा उन्हीं… Continue

Added by rajkumar sahu on September 27, 2011 at 3:15pm — No Comments

व्यंग्य - महंगाई ‘डायन’ है कि सरकार

महंगाई पर हम बेकार की तोहमत लगाते रहते हैं। अभी जब बाजार में सामग्रियां सातवें आसमान में महंगाई की मार के कारण उछलने लगी, उसके बाद महंगाई एक बार फिर हमें ‘डायन’ लगने लगी। इस बार तंग आकर महंगाई ने भी अपनी भृकुटी तान दी और कहा कि उसने कौन सी गलती कर दी, जिसके बाद उसे ऐसी जलालत बार-बार झेलनी पड़ती है। महंगाई को बार-बार की बेइज्जती बर्दास्त नहीं हो रही है। उसने सोचा, अब वह कहीं और जाकर अपनी बसेरा तय करेगी, मगर सरकार मानें, तब ना।

सरकार ने जैसे दंभ भर लिया हो कि जो भी हो जाए, महंगाई को साथ रखना… Continue

Added by rajkumar sahu on September 25, 2011 at 1:13am — 1 Comment

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - ड्रीम गर्ल हेमामालिनी ने गुजरात पहुंचकर कहा - नरेन्द्र मोदी विकास के लिए जाने जाते हैं।

पहारू - और गोधरा कांड के लिए...



2. समारू - गृहमंत्री कहते हैं - छत्तीसगढ़ के एनजीओ नक्सलियों की मदद कर रहे हैं।

पहारू - ये तो वही हुआ, हमारी बिल्ली और हमहीं से म्याऊ ???



3.समारू - अमरकंटक स्थित सोनकुण्ड में एक साधु के समाधि लेने की खबर है।

पहारू - नित्यानंद के ‘नित्य-आनंद’ की खबर अब सुनने में नहीं आ रही है।



4. समारू - छग के आधे एनजीओ, नेताओं व अफसरों… Continue

Added by rajkumar sahu on September 19, 2011 at 9:00pm — No Comments

ये कैसी अंध भक्ति ?

हर बरस यह बात सामने आती है कि प्रतिमाओं के विसर्जन तथा श्रद्धा में लोग कहीं न कहीं, अंध भक्ति में दिखाई देते हैं और अन्य लोगों को होने वाली दिक्कतों तथा प्रकृति को होने वाले नुकसान से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता। अभी कुछ दिनों पहले जब गणेश प्रतिमाएं विराजित हुईं, उसके बाद कान फोड़ू लाउडस्पीकरों ने लोगों को परेशान किया। प्रशासन की सख्त हिदायत के बावजूद फूहड़ गाने भी बजते रहे। श्रद्धा-भक्ति के नाम पर जिस तरह तेज आवाज में गानें दिन भर बजते रहे या कहें कि दिमाग के लिए सरदर्द बने ये भोंपू रात…

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Added by rajkumar sahu on September 17, 2011 at 9:35pm — No Comments

भारतीय शिक्षा में खामियों की बढ़ती खाई

यह तो सही है कि भारत में न पहले प्रतिभाओं की कमी रही और न ही अब है। पुरातन समय से ही यहां की शिक्षा व्यवस्था की अपनी एक साख रही है। कहा भी जाता है, जब शून्य की खोज नहीं हुई रहती तो फिर हम आज जो वैज्ञानिक युग का आगाज देख रहे हैं, वह कहीं नजर नहीं आता। भारत में विदेशों से भी प्रतिभाएं अध्ययन के लिए आया करते थे, मगर आज हालात बदले हुए हैं। स्थिति उलट हो गई है। भारत से प्रतिभाएं पलायन कर रही हैं, उन्हें नस्लभेद का जख्म भी मिल रहा है, लेकिन यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। यहां कहना है कि…

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Added by rajkumar sahu on September 2, 2011 at 1:41am — 2 Comments

व्यंग्य - उपाधि मिलने की वाहवाही

‘उपाधि’ देने की परिपाटी बरसों से है। बदलते समय के साथ यह परिपाटी अब पूरे रंग में है। पहले आप कुछ नहीं होते हैं। उपाधि मिलते ही आप रातों-रात उपलब्धि की सभी उंचाई पार लगा लेते हैं। हर तरफ बस वाहवाही रहती है। जब हर कहीं सम्मान मिले और नाम के आगे चार चांद लग जाए। ऐसी स्थिति में कौन नहीं चाहेगा, किसी उपाधि से सुशोभित होना। उपाधि पाने का कीड़ा जब काटता है, उसके बाद उपाधि छिनने की करामात भी करनी पड़ती है। माथे पर उपाधि की मुहर लगते ही एक अलग पहचान बनती है। आने वाली पीढ़ी भी उपाधि के सहारे ही जानती हैं कि… Continue

Added by rajkumar sahu on September 1, 2011 at 1:32am — 2 Comments

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