For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यंग्य - जूते और थप्पड़ का कमाल

जूता, जितना भी महंगा हो, हम सब की नजर में मामूली ही होता है और उसकी कीमत कुछ नहीं होती। जूता चाहे विदेश से भी खरीदकर लाया गया हो, फिर भी उसे सिर पर न तो पहना जाता है और न ही रखा जाता है। जूते तो बस, पैर के लिए ही बने हैं। जैसे, ओहदेदार लोगों के लिए कुछ लोग जूते के समान होते हैं,। वैसे भी जूते का वजन, कहां कोई तौलता है। अभी देश में खास किस्म के जूते कभी-कभी नजर आ जाते हैं, जिनकी अहमियत के साथ पूछपरख भी होती है। यह जूते भी उतना ही मामूली होते हैं, जितना बाजार में मिलने वाले जूते। ऐसे कुछ जूतों की खासियत होती हैं कि उसकी पहचान, कुछ विशेष लोगों से जुड़ जाती हैं। जूते की प्रसिद्धि इसकदर बढ़ जाती है, जिसके सामने नामी-गिरामी कंपनी के जूते भी बौने साबित होते हैं।
पहली बार जब विदेशी धरती पर जूता उछला, उसके बाद जूते, जूते नहीं रहे, बल्कि रातों-रात ही यह ऐसे महान वस्तु बन गया, जिसका अब तक किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। मीडिया ने तो जूते की महिमा ही बढ़ा दी। जूता उछलने के बाद इस तरह महिमामंडन किया गया, उसके बाद जूता, जूता नहीं रहा। अब तो जूते का धमाका हर कहीं होने लगा है। जूते की खुमारी ऐसी छाई कि हमारे देश मंे एक नहीं, बल्कि कई जूते उछाले गए व फेंके गए। देखिए, जूते जमाने से मामूली माने जाते रहे हैं, उछालने वाला भी मामूली व्यक्ति होता है, लेकिन जिन पर उछाला जाता है, वह नामचीन होते हैं। जूते के साथ ही मीडिया की मेहरबानी से वे व्यक्ति भी दिन-दूनी, रात-चौगनी की तर्ज पर इतना नाम कमा लेते हैं, जिसके बाद उन जैसों का नाम जुबानी याद हो जाता है। इस तरह वे ‘जूता वाला बाबा’ साबित होते हैं।
जूते की कहानी तो सुन ही रहे थे, अब थप्पड़ की धुन चल रही है। किसी को एक थप्पड़ पड़ी नहीं कि दूसरा कहता है, बस एक ही...। थप्पड़ का दर्द वही जान सकता है, जिसने महसूस किया हो। जिस तरह महंगाई का दर्द आम जनता सहती है, मगर उसका अहसास कहां किसी को होता है ? गरीब, गरीबी में मरता है और उसकी आने वाली पीढ़ी भी बरसों सिसकती रहती है। कई तरह की मार गरीब भी खाते हैं, भ्रष्टाचार व महंगाई की मार ने तो लोगों का जीना ही हराम कर दिया है। इतना जरूर है कि आम जनता, थप्पड़ का दर्द को नहीं जानती, क्योंकि वह पहले से ही गरीबी, महंगाई से कराहती रहती है, उसके बाद दर्द बढ़ने का पता कहां चल सकता है ?, दर्द सहने की आदत जो बन गई है।
जिन्ने कभी दर्द ही नहीं सहा हो, वह जान सकता है कि वास्तव में किसी तरह की मार की पीड़ा क्या होती है ?
देश में पहले जूते का शुरूर सवार था, अब थप्पड़ ने अपनी खूब पैठ जमा ली है। जनता भी थप्पड़ की धमक को हाथों-हाथ ले रही है। जूते व थप्पड़ का कमाल ऐसा चल पड़ा है कि महंगाई व भ्रष्टाचार की मार का दर्द भी सुन्न पड़ गया है। अब क्या करें, माहौल ही ऐसा बन गया है, जहां केवल जूते व थप्पड़ के ही चर्चे हैं।


राजकुमार साहू
लेखक व्यंग्य लिखते हैं।

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा . - 074897-57134, 098934-94714, 099079-87088

Views: 443

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 5, 2011 at 11:38pm

इस व्यंग्य-धार पर बहुत-बहुत साधुवाद.  रचना कथ्य का ढंग मजेदार है.

वाक्य-विन्यास सम्बन्धी दोषों को दूर कर लिया जाना भी जरूरी है.  निर्दोष वाक्य व्यंग्य भाव की धार और सान को और चढ़ा देते हैं.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
8 hours ago
Admin posted discussions
11 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
23 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
yesterday
AMAN SINHA posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
Wednesday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service