For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – August 2019 Archive (10)

क्षणिकाएँ ....

क्षणिकाएँ ....

लील लेती है
एक ही पल में
कितने अंतरंग पलों का सौंदर्य
विरह की
वेदना

...............

उड़ती रही
देर तक
खिन्न सी एक तितली
मृदा में गिरे
मृत पुष्प में
जीवन ढूँढती

..........................

कह रहे थे दास्ताँ
बेरहम आँधियों की
बिखरे तिनके
घौंसलों के

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on August 30, 2019 at 7:10pm — 4 Comments

बेसुरी खाँसी ....

मन ढूँढता रहा

नीरवता में

खोये हुए कोलाहल को

साथ ले गई

अपनी बेसुरी आवाज़ें

खाँसी की

जीवन के अंतिम पहर में

अपने साथ

जाने कितने सपने,

कितने दर्द छुपे थे

बूढ़ी माँ की

उस बेसुरी खरखरी

खाँसी में

पहले…
Continue

Added by Sushil Sarna on August 24, 2019 at 6:30pm — 2 Comments

ऐ हवा ....

ऐ हवा .............

कितनी बेशर्म है

इसे सब खबर है

किसी के अन्तःकक्ष में

यूँ बेधड़क चले आना

रात की शून्यता में

काँच की खिड़कियों को बजाना

पर्दों को बार बार हिलाना

कहाँ की मर्यादा है

कौमुदी क्या सोचती होगी

क्या इसे ज़रा भी लाज नहीं

इसका शोर

उसे मुझसे दूर ले जायगा

मेरा खयाल

मुझसे ही मिलने से शरमाएगा

तू तो बेशर्म है

मेरी अलकों से टकराएगी

मेरे कपोलों को

छू कर निकल जाएगी

मेरे…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 23, 2019 at 7:00pm — 4 Comments

चले आओ .....

चले आओ .....

जाने कौन

बात कर गया

चुपके से

दे के दस्तक

नैनों के

वातायन पर

दौड़ पड़ा

पागल मन

मिटाने अपने

तृषित नैनों की

दरस अभिलाषा

पवन के ठहाके

मेरे पागलपन का

द्योतक बन

वातायन के पटों को

बजाने लगे

अंतस का एकांत

अभिसार की अनल को

निरंतर

प्रज्वलित करने लगा

कौन था

जिसका छौना सा खयाल

स्पर्शों की आंधी बन

मेरी बेचैनियों को…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 21, 2019 at 12:56pm — 2 Comments

तिरंगे तुझे सुनानी है ....

तिरंगे तुझे सुनानी है ....

सन ४७ की रात में

आज़ादी की बात में

दर्दीले आघात में

छुपी जो एक कहानी है

तिरंगे तुझे सुनानी है

आज़ादी के शोलों में

रंग बसन्ती चोलों में

जय हिन्द के बोलों में

छुपी जो एक कहानी है

तिरंगे तुझे सुनानी है

राजगुरु सुखदेव भगत

और मंगल पण्डे लक्ष्मी बाई

गाँधी शेखर और शिवा की

छुपी जो एक कहानी है

तिरंगे तुझे सुनानी है

आज़ादी के दीवानों की

सरहद के जवानों की…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 16, 2019 at 6:44pm — 2 Comments

संतान (क्षणिकाएं ) ....

संतान (क्षणिकाएं ) ....

बुझ गए बुजुर्ग
करते करते
रौशन
अपने ही चिराग

.....................

कर रही
वृक्षारोपण
वृद्धाश्रम में
वृद्धों की हाथों
उनकी ही संतान

.......................

हो गया
संस्कारों का
दाहसंस्कार
मौन बिलखता रहा
कहकहों में
संतान के


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on August 8, 2019 at 12:57pm — 6 Comments

अभिव्यक्ति का संत्रास ...

अभिव्यक्ति का संत्रास ...

वरण किया
आँखों ने
यादों का ताज
पूनम की रात में

होती रही स्रावित
यादें
नैन तटों से
अविरल
तन्हा बरसात में

वीचियों पर
यादों की
तैरती रही
परछाईयाँ
देर तक
तन्हा अवसाद में

कर न सके व्यक्त
अधरों से
अन्तस् के
सिसकते जज्बातों की
अव्यक्त अभिव्यक्ति का संत्रास
शाब्दिक अनुवाद में

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on August 6, 2019 at 5:06pm — 10 Comments

वो मेरा था तारा ...

वो मेरा था तारा ...

यादों के बादल से

नैनों के काजल से

लहराते आँचल से

जिसने पुकारा

वो

मेरा था तारा



महकती फिजाओं से

परदेसी हवाओं से

बरसाती राहों से

जिसने पुकारा

वो

मेरा था तारा

सपनों के अम्बर से

खारे समंदर से

मन के बवंडर से

जिसने पुकारा

वो

मेरा था तारा

यादों के नीड से

महकते हुए चीड से

ख्वाबों की भीड़ से

जिसने पुकारा

वो

मेरा था…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 5, 2019 at 3:35pm — 6 Comments

चंद हाइकु ...

चंद हाइकु ...

संग दामिनी
धक-धक धड़के
प्यासा दिल

तड़पा गई
विगत अभिसार
बैरी चपला

लुप्त भोर
पयोद घनघोर
शिखी का शोर

छुप न पाया
विरह का सावन
दर्द बहाया

खूब नहाई
रूप की अंगड़ाई
रुत लजाई

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on August 3, 2019 at 5:07pm — 4 Comments

ले बाहों में सोऊँगी ....

ले बाहों में सोऊँगी ....

सावन की बरसात को

प्रथम मिलन की रात को

धड़कते हुए जज़्बात को

संवादों के अनुवाद को

ले बाहों में सोऊँगी

अस्तित्व अपना खोऊँगी

अपनी प्रेम कहानी को

भीगी हुई जवानी को

बारिश की रवानी को

नैन तृषा दिवानी को

ले बाहों में सोऊँगी

अस्तित्व अपना खोऊँगी

उस नशीली रात को

उल्फ़त की बरसात को

अजनबी मुलाक़ात को

हाथों में थामे हाथ को

ले बाहों में सोऊँगी

अस्तित्व अपना…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 2, 2019 at 5:19pm — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
34 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service