For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बृजेश नीरज's Blog – August 2013 Archive (6)

सॉनेट/ साँझ ढली

साँझ ढली तो आसमान से धीरे-धीरे

रात उतर आई चुपके-चुपके डग भरती

स्याह रंग से भरती कण-कण वह यह धरती

शांत हुआ माहौल और सब हलचल धीरे

 

कल-कल करती धारा का स्वर नदिया तीरे

वरना तो, सब कुछ शांत, भयावह रूप धरे

जीव सभी चुप हैं सहमे, दुबके और डरे

कुछ अनजानी आवाज़ें खामोशी चीरे

 

मन सहमा जब भीतर यह काली पैठ हुई

लोभ और मोह कितने उसके संग उपजे

भ्रम के झंझावातों में पग पल-पल बहके

साथ सभी छूटे, आभा सारी भाग…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 25, 2013 at 10:00pm — 38 Comments

तुम सोई

तुम सोई

सपनों में खोई

अधर मंद मुस्काते हैं

ये सपने

चुपके से आकर

आखिर क्या कह जाते हैं।

 

बागों में

चंपा महकी है

मंद हवा

बहकी बहकी है

घनी रात को, तारे आकर

रूप नया दे जाते हैं।

 

रंग भरे

यह श्वेत चांदनी

कण कण में

इक मधुर रागिनी

नींद भरे बोझिल ये नयना

सुध बुध सब हर जाते हैं।

.

 - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by बृजेश नीरज on August 24, 2013 at 11:00am — 42 Comments

आज़ादी

तिरंगे को लहराता देख

लगता है

हम आज़ाद हैं

 

आज़ादी सापेक्ष होती है

 

आज़ाद हैं अंग्रेजों से

 

जिंदगी तो अब भी वैसी ही है

वही साँसें

वही चीथड़े

वहीं चाँद

टूटता तारा

वही कुआँ खोदना

फटी जेबें

वही बिवाइयाँ।

 

कहाँ बदला कुछ

राजाओं के रंग बदल गये

भाषा वही है

 

सत्ता का चेहरा बदलता है

चरित्र नहीं

आजादी का मतलब

निरंकुशता की समाप्ति तो…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 16, 2013 at 7:00am — 18 Comments

पत्थर

पत्थर चुप हैं

वे ज्यादा बोलते नहीं

ज्यादा खामोश रहते हैं

 

खामोश रहना

जीवन की

सबसे खतरनाक क्रिया होती है

आदमी पत्थर हो जाता है

 

खामोशी का कोई भेद नहीं

कोई वर्गीकरण नहीं

बस,

दो शब्दों के

उच्चारण के बीच का अन्तराल

जहां कोई ध्वनि नहीं,

दो अक्षरों के बीच की

खाली जगह

जहां कुछ नहीं लिखा;

कोरा

 

ऐसे ही पत्थर होते हैं

जहां कुछ नहीं होता

वहां पत्थर…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 11, 2013 at 5:00pm — 28 Comments

चेहरा

बार बार भीड़ में

ढूँढता हूँ

अपना चेहरा

 

चेहरा

जिसे पहचानता नहीं

 

दरअसल

मेरे पास आइना नहीं

पास है सिर्फ

स्पर्श हवा का

और कुछ ध्वनियाँ

 

इन्हीं के सहारे

टटोलता

बढ़ता जा रहा हूँ

 

अचानक पाता हूँ 

खड़ा खुद को

भीड़ में

अनजानी, चीखती भीड़ के

बीचों बीच

 

कोलाहल सा भर गया

भीतर तक

कोई ध्वनि सुनाई नहीं देती

शब्द टकराकर…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 5, 2013 at 11:30am — 34 Comments

दिया द्वार पर जूझ रहा

कितने कितने सूरज चमके

पर अँधियारा शेष रहा

तेरे मेरे मन के अंदर

इक संशय फल फूल रहा।।

 

सरपत के ढेरों झाड़ उगे

तन छू ले कट जाता है

इन बबूल के काँटों से भी

भीतर तक छिल जाता है

सावन की बौछारों में भी

मन उपवन सब सून रहा।।

 

तुम मिलते हो मुझको जैसे

इक गुजरी तरुणाई सी

भाव खिलें डाली पर कैसे

वह रूखी मुरझाई सी

साज संवार व्यर्थ रहा सब

धूल भरा यह रूप रहा।।

 

चिड़ियों ने…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 4, 2013 at 3:00pm — 28 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service