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Naveen Mani Tripathi's Blog – August 2018 Archive (6)

अब तीरगी से जंग कोई आर पार हो

221 2121 1221 212

कुछ दिन से देखता हूँ बहुत बेकरार हो।।

कह दूँ मैं दिल की बात अगर ऐतबार हो ।।

परवाने  की ख़ता थी  मुहब्बत चिराग  से ।

करिए न ऐसा इश्क़ जहां जां निसार हो ।।

रिश्तों की वो इमारतें ढहती जरूर हैं ।

बुनियाद में ही गर कहीं आई दरार हो ।।

कीमत खुली हवा की जरा उनसे पूँछिये ।

जिनको अभी तलक मयस्सर…

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Added by Naveen Mani Tripathi on August 28, 2018 at 6:40pm — 13 Comments

आना मेरे दयार में कुर्बत अगर मिले

221 2121 1221 212

कुछ रंजो गम के दौर से फुर्सत अगर मिले ।

आना मेरे दयार में कुर्बत अगर मिले ।।1

यूँ हैं तमाम अर्जियां मेरी खुदा के पास ।

गुज़रे सुकूँ से वक्त भी रहमत अगर मिले ।।2

आई जुबाँ तलक जो ठहरती चली गयी ।

कह दूँ वो दिल की बात इजाज़त अगर मिले ।।3…

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Added by Naveen Mani Tripathi on August 22, 2018 at 1:25pm — 16 Comments

तेरे आने से आये दिन सुहाने ।

1222 1222 122

.

तेरे आने से आये दिन सुहाने ।

हैं लौटे फिर वही गुजरे ज़माने ।।

भरा अब तक नही है दिल हमारा ।

चले आया करो करके बहाने ।।

हमारे फख्र की ये इन्तिहाँ है ।

वो आये आज हमको आजमाने ।।

बड़ी शिद्दत से तुझको पढ़ रहा था ।

हवाएं फिर लगीं पन्ने उड़ाने ।।

शिकायत दर्ज जब दिल में कराया ।

अदाएँ तब लगीं पर्दा हटाने ।।

नज़र से लूट लेना चाहते हैं ।

हैं मिलते लोग अब कितने…

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Added by Naveen Mani Tripathi on August 19, 2018 at 8:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222 

बड़ी उम्मीद थी उनसे वतन को शाद रक्खेंगे ।

खबर क्या थी चमन में वो सितम आबाद रक्खेंगे ।।

है पापी पेट से रिश्ता पकौड़े बेच लेंगे हम।

मगर गद्दारियाँ तेरी हमेशा याद रक्खेंगे ।।

हमारी पीठ पर ख़ंजर चलाकर आप तो साहब ।

नये जुमले से नफ़रत की नई बुनियाद रक्खेंगे ।।

विधेयक शाहबानो सा दिये हैं फख्र से तोहफा ।

लगाकर आग वो कायम यहां उन्माद रक्खेंगे ।।

इलक्शन आ रहा है दाल गल जाए न फिर उनकी।

तरीका…

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Added by Naveen Mani Tripathi on August 14, 2018 at 8:06pm — 8 Comments

ग़ज़ल

122 122 122 122 

न जाने मुहब्बत में क्या चाहते हैं ।

जरा सी वफ़ा पर वो दिल मांगते हैं ।।

जिन्हें कुछ खबर ही नहीं दर्द क्या है ।

वही ज़ख़्म मेरा बहुत देखते हैं ।।

अगर वास्ता ही नहीं आपसे है ।

मेरा हाले दिल आप क्यूँ पूछते हैं ।।

असर चाहतों का दिखा फिर है उनका ।

अदाओं में चिलमन से जब झांकते हैं ।।

जो ठुकरा दिए थे मेरी बन्दगी को ।

मेरे घर का वो भी पता ढूढते हैं ।।

जुदाई में हमको ये तोहफ़ा…

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Added by Naveen Mani Tripathi on August 6, 2018 at 10:33pm — 7 Comments

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22

कुछ धुंआ घर के दरीचों से उठा हो जैसे ।

फिर कोई शख्स रकीबों से जला हो जैसे ।।

खुशबू ए ख़ास बताती है पता फिर तेरा ।

तेरे गुलशन से निकलती ये सबा हो जैसे ।।

बादलों में वो छुपाता ही रहा दामन को ।

रात भर चाँद सितारों से ख़फ़ा हो जैसे ।।

जुल्म मजबूरियों के नाम लिखा जायेगा ।

बन के सुकरात कोई ज़ह्र पिया हो जैसे ।।

खैरियत पूँछ के होठों पे तबस्सुम आना ।

हाल ए दिल मेरा तुझे खूब पता हो जैसे…

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Added by Naveen Mani Tripathi on August 4, 2018 at 9:03pm — 14 Comments

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